बजट में कई लक्ष्यों को साधने की कोशिश

बजट में कई लक्ष्यों को साधने की कोशिश

वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने मोदी सरकार के दूसरे कार्यकाल के आखिरी पूर्ण बजट में कई लक्ष्यों को साधने की कोशिश है। सीतारमण का पांचवां बजट ऐसे समय में आया है जब वैश्विक विपरीत परिस्थितियों के कारण अर्थव्यवस्था धीमी हो रही है और सामाजिक क्षेत्रों पर खर्च बढ़ाने की आवश्यकता है। साथ ही स्थानीय विनिर्माण के लिए प्रोत्साहन बढ़ाने की आवश्यकता है। 

अगले साल अप्रैल-मई में होने वाले आम चुनाव से पहले यह अंतिम पूर्ण बजट है। एक अंतरिम बजट, जिसे वोट ऑन अकाउंट कहा जाता है, अगले साल फरवरी में पेश किया जाना है और नई सरकार जुलाई 2024 में पूर्ण बजट पेश करेगी। वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में कहा कि यह बजट पिछले बजट में रखी गई नींव और भारत @100 के लिए तैयार किए गए खाके के निर्माण की उम्मीद करता है। साथ ही प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने उम्मीद जताई है कि बजट विकसित भारत के संकल्प को पूरा करने के लिए एक मजबूत नींव का निर्माण करेगा। 

दावा किया जा रहा है कि बजट में समावेशी विकास, अंतिम छोर तक पहुंचना, बुनियादी ढांचा और निवेश, क्षमता को उजागर करना, हरित विकास, युवा शक्ति और वित्तीय क्षेत्र की प्राथमिकताओं का ध्यान रखा गया है। नई व्यवस्था से सभी करदाताओं को बड़ी राहत मिलेगी। नई कर व्यवस्था के तहत 1 अप्रैल से शुरू होने वाले वित्तीय वर्ष से व्यक्तिगत आयकर छूट की सीमा को पिछले 5 लाख रुपये से बढ़ाकर 7 लाख रुपये कर दिया गया है। टैक्स स्लैब को सात से घटाकर पांच कर दिया गया है। 

साथ ही, उच्चतम अधिभार को 37 प्रतिशत से घटाकर 25 प्रतिशत करने के बाद अधिकतम आयकर दर को 42.7 प्रतिशत से घटाकर लगभग 39 प्रतिशत कर दिया गया है। इसे चुनाव से ठीक पहले मध्यम वर्ग को लुभाने का कदम माना जा रहा है। सरकार ने कम कर दरों और श्रम सुधारों के माध्यम से निवेशकों को लुभाने और गरीब परिवारों का राजनीतिक समर्थन प्राप्त करने के लिए सब्सिडी की पेशकश करते हुए सड़कों और ऊर्जा सहित पूंजीगत व्यय में वृद्धि की है। विपक्षी दलों का कहना है कि इस बजट से महंगाई बढ़ेगी। सरकार के पास बेरोजगारी दूर करने की कोई ठोस योजना नहीं है। जो तीन चुनौतियां देश के सामने हैं,  सरकार उनका कैसे मुकाबला करेगी। बजट से स्पष्ट  है कि सरकार जमीनी हकीकत से मुंह फेरे हुए है।  

पूरे बजट में बेरोज़गारी,  महंगाई और गरीबी का कोई उल्लेख नहीं है। शिक्षा व स्वास्थ्य बजट घटाना दुर्भाग्यपूर्ण है। हालांकि बजट में कम घाटे का पूर्वानुमान लंबी अवधि की वित्तीय स्थिरता के लिए सरकार की प्रतिबद्धता को रेखांकित करता है।

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