प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा- मातृत्व लाभ अधिनियम महिलाओं को प्रदान करता है स्वायत्त जीवन जीने की स्वतंत्रता

प्रयागराज: इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक अहम फैसले में कहा- मातृत्व लाभ अधिनियम महिलाओं को प्रदान करता है स्वायत्त जीवन जीने की स्वतंत्रता

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक अहम फैसले में कहा कि बच्चे के जन्म को जीवन की प्राकृतिक घटना और मातृत्व के प्रावधानों के रूप में रोजगार के संदर्भ में समझा जाना चाहिए। उक्त आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकलपीठ ने जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, एटा द्वारा पारित आदेशों को रद्द करने की सरोज कुमारी की याचिका पर सुनवाई करते हुए दिया। जिसके तहत मातृत्व अवकाश की मंजूरी को ठुकरा दिया गया है। मौजूदा मामले में याची प्राथमिक विद्यालय में प्रधानाध्यापिका के पद पर कार्यरत है। याची की सेवा शर्तें उत्तर प्रदेश बेसिक शिक्षा (शिक्षक) सेवा नियम,1981 के प्रावधानों द्वारा शासित हैं।

याची ने एक बच्ची को जन्म दिया और अस्पताल से छुट्टी मिलने के बाद उसने तुरंत 18 अक्टूबर 2022 से 15 अप्रैल 2023 (180 दिनों के लिए) की अवधि के लिए मातृत्व अवकाश हेतु आवेदन किया, लेकिन आवेदन इस आधार पर खारिज कर दिया गया कि मातृत्व अवकाश के समर्थन में संलग्नक अधूरे थे। 

इसके बाद याची ने निर्धारित प्रोफार्मा पर 30 अक्टूबर 2022 को फिर से मातृत्व अवकाश के लिए आवेदन किया, लेकिन आश्चर्यजनक रूप से इसे भी जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी द्वारा इस टिप्पणी के साथ खारिज कर दिया गया कि प्रसव के बाद मातृत्व अवकाश की अनुमति नहीं है और अब आप नियम के अनुसार सीएल के लिए पात्र हैं और मैटरनिटी लीव आउट ऑफ डेट हो चुका है। अब आप क्रमशः चाइल्ड केयर लीव के लिए आवेदन कर सकती हैं। पीठ ने कहा कि मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 महिलाओं के गर्भावस्था और मातृत्व अवकाश के अधिकार को सुरक्षित करने और महिलाओं को स्वायत्त जीवन जीने के लिए जितना संभव हो, उतना लचीलापन प्रदान करने के लिए अधिनियमित किया गया था। कोर्ट ने मुख्य रुप से कहा कि जिला बेसिक शिक्षा अधिकारी, एटा ने याची के दावे को खारिज करते हुए मातृत्व लाभ अधिनियम, 1961 के प्रावधानों की अनदेखी की है। अतः बेसिक शिक्षा अधिकारी, एटा द्वारा पारित आदेश टिकाऊ नहीं है। अंत में उक्त टिप्पणी के साथ याचिका स्वीकार कर ली गई|


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