शायरी
मनोरंजन  साहित्य 

बच्चों पर शायरी न थोपें, उन्हें अपने साथ मुशायरों में ले जाएं : जावेद अख्तर

बच्चों पर शायरी न थोपें, उन्हें अपने साथ मुशायरों में ले जाएं : जावेद अख्तर कोलकाता।   जाने-माने शायर और गीतकार जावेद अख्तर का मानना है कि अगर माता-पिता चाहते हैं कि उनके बच्चे कविताओं को पसंद करें तो वे इसे उन पर थोपे नहीं, बल्कि उन्हें अपने साथ मुशायरों व कवि सम्मेलनों में लेकर अख्तर...
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साहित्य 

अकबर इलाहाबादी: शायरी जो भुला न पाएंगे  

अकबर इलाहाबादी: शायरी जो भुला न पाएंगे   खींचो न कमानों को, न तलवार निकालो जब तोप मुक़ाबिल हों तो अखबार निकालो. जब अपनी फितरत को बयान करने की बारी आती है तो इठला कर कहा जाता है: दुनिया में हूं दुनिया का तलबगार नहीं हूं बाज़ार से...
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साहित्य 

जावेद अख़्तर की कलम से… ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी

जावेद अख़्तर की कलम से… ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी जावेद अख्तर उर्दू गजलों के मशहूर नामों में से एक हैं और उन्होंने कई फिल्मी गीत भी लिखे हैं। पेश हैं जावेद अख्तर की गजलों से मशहूर शेर… ज़रा सी बात जो फैली तो दास्तान बनी वो बात ख़त्म हुई दास्तान बाक़ी है यह भी पढ़ें- सौभाग्य न सब दिन होता है, देखें आगे क्या …
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साहित्य 

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में…

ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में… ख़ुशबू जैसे लोग मिले अफ़्साने में एक पुराना ख़त खोला अनजाने में शाम के साए बालिश्तों से नापे हैं चाँद ने कितनी देर लगा दी आने में रात गुज़रते शायद थोड़ा वक़्त लगे धूप उन्डेलो थोड़ी सी पैमाने में जाने किस का ज़िक्र है इस अफ़्साने में दर्द मज़े लेता है जो दोहराने में दिल …
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साहित्य 

इतने ख़ामोश भी रहा न करो

इतने ख़ामोश भी रहा न करो इतने ख़ामोश भी रहा न करो ग़म जुदाई में यूँ किया न करो ख़्वाब होते हैं देखने के लिए उन में जा कर मगर रहा न करो कुछ न होगा गिला भी करने से ज़ालिमों से गिला किया न करो उन से निकलें हिकायतें शायद हर्फ़ लिख कर मिटा दिया न करो अपने रुत्बे का …
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उत्तराखंड  हल्द्वानी 

हल्द्वानी: धरने में व्यापारियों के समर्थन देने पहुंचा बुजुर्ग शायर, नगर निगम को शायरी से खूब धोया

हल्द्वानी: धरने में व्यापारियों के समर्थन देने पहुंचा बुजुर्ग शायर, नगर निगम को शायरी से खूब धोया हल्द्वानी, अमृत विचार। शनि बाजार को ठेके पर देने के विरोध में व्यापारियों का धरना-प्रदर्शन बुद्ध पार्क में जारी है। धरनास्थल पर डटे व्यापारियों ने इस सप्ताह भी बाजार का बहिष्कार करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि जब तक निगम प्रशासन ठेके को निरस्त नहीं करेगा, वह दुकानें नहीं लगायेंगे। वहीं व्यापारियों के …
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साहित्य 

आओ कभू तो पास हमारे भी नाज़ से

आओ कभू तो पास हमारे भी नाज़ से आओ कभू तो पास हमारे भी नाज़ से करना सुलूक ख़ूब है अहल-ए-नियाज़ से फिरते हो क्या दरख़्तों के साए में दूर दूर कर लो मुवाफ़क़त किसू बेबर्ग-ओ-साज़ से हिज्राँ में उस के ज़िंदगी करना भला न था कोताही जो न होवे ये उम्र-ए-दराज़ से मानिंद-ए-सुब्हा उक़दे न दिल के कभू खुले जी अपना क्यूँ …
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साहित्य 

फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी

फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी फूल थे बादल भी था और वो हसीं सूरत भी थी दिल में लेकिन और ही इक शक्ल की हसरत भी थी जो हवा में घर बनाए काश कोई देखता दश्त में रहते थे पर ता’मीर की आदत भी थी कह गया मैं सामने उस के जो दिल का मुद्दआ’ कुछ तो मौसम भी अजब …
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साहित्य 

मेरे जिस्म में ज़हर है तेरा

मेरे जिस्म में ज़हर है तेरा मेरे जिस्म में ज़हर है तेरा मेरा दिल है तेरा घर तू मौजूद है साथ हमेशा ख़ौफ़ सा बन कर शाम-ओ-सहर तेरा असर है मेरे लहू पर जैसे चाँद समुंदर पर इतनी ज़र्द है रंगत तेरी जम जाती है उस पे नज़र तू है सज़ा मिरे होने की या है मेरा ज़ाद-ए-सफ़र करेगा तू बीमार …
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उत्तर प्रदेश  बरेली 

बरेली: मशहूर शायर वसीम बरेलवी से प्रेरणा लेकर मथुरा के योगेश ने लिख डाली अनकहे लम्हे

बरेली: मशहूर शायर वसीम बरेलवी से प्रेरणा लेकर मथुरा के योगेश ने लिख डाली अनकहे लम्हे बरेली, अमृत विचार। मथुरा के रहने वाले लेखक ने बरेली के मशहूर शायर प्रोफेसर वसीम बरेलवी से प्रेरणा लेकर एक किताब लिख डाली। उन्होंने अपने स्कूली दिनों से ही शायरी व कविता लिखना शुरू कर दिया था। मथुरा के रहने वाले योगेश कुमार ने आज बरेली आ कर अपनी किताब अनकहे लम्हों का प्रोफेसर वसीम …
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साहित्य 

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है

पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है पत्ता पत्ता बूटा बूटा हाल हमारा जाने है जाने न जाने गुल ही न जाने बाग़ तो सारा जाने है लगने न दे बस हो तो उस के गौहर-ए-गोश को बाले तक उस को फ़लक चश्म-ए-मह-ओ-ख़ुर की पुतली का तारा जाने है आगे उस मुतकब्बिर के हम ख़ुदा ख़ुदा किया करते हैं कब मौजूद ख़ुदा …
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साहित्य 

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया

कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया वो लोग बहुत ख़ुश-क़िस्मत थे जो इश्क़ को काम समझते थे या काम से आशिक़ी करते थे हम जीते-जी मसरूफ़ रहे कुछ इश्क़ किया कुछ काम किया काम इश्क़ के आड़े आता रहा और इश्क़ से काम उलझता रहा फिर आख़िर तंग आ कर हम ने दोनों को अधूरा …
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