भारत यात्रा का एजेंडा

भारत यात्रा का एजेंडा

नेपाल के प्रधानमंत्री पुष्प कमल दहल बुधवार को चार दिवसीय भारत यात्रा पर दिल्ली पहुंचे। इस यात्रा पर न सिर्फ चीन की लॉबी की नजर है, बल्कि अमेरिका भी समीक्षा करेगा कि नेपाल किस दिशा में आगे बढ़ रहा है। उनकी यह यात्रा बतौर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की पहली नेपाल यात्रा के लगभग नौ वर्ष बाद हो रही है।

मोदी जून 2014 में नेपाल गए थे। मोदी की यात्रा के कुछ ही दिन बाद भारत और नेपाल ने ऐतिहासिक बिजली खरीद समझौते पर हस्ताक्षर किए। यह मोदी सरकार की 2014 में घोषित नीति के तहत था जिसके मुताबिक पड़ोसी देशों को प्राथमिकता दी जानी थी।

दहल के प्रधानमंत्री बनने पर चीन को नेपाल में स्थितियां अपनी तरफ झुकती महसूस हुईं। जबकि पूर्व प्रधानमंत्री शेर बहादुर देउबा के शासनकाल में नेपाल में अमेरिकी प्रभाव बढ़ने के साफ संकेत मिल रहे थे। 2015 में नेपाल के नए संविधान में मधेशियों (भारतीय मूल के नेपाली नागरिकों) को सांस्कृतिक और भाषाई सुरक्षा देने से इनकार किया गया, नेपाल-भारत की सीमा में बदलाव और नेपाल द्वारा उत्तराखंड के कुछ हिस्सों पर दावा किया गया।

विदेश मंत्रालय की ओर से नेपाल से आग्रह किया गया कि वह भारत की संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता का सम्मान करे। इस बीच एक नया मुद्दा सामने है: भारत की नई सैन्य भर्ती योजना, अग्निपथ। नेपाल को लग रहा है कि यह सन 1947 की भारत, नेपाल और ब्रिटेन के बीच हुई संधि का उल्लंघन है। क्योंकि योजना के तहत नेपाली नागरिकों की भर्ती में कमी आएगी। 

इस यात्रा से एक भूराजनीतिक संदर्भ भी जुड़ा हुआ है। भारत में यह धारणा है कि नेपाल भारत की कीमत पर चीन को बहुत अधिक महत्व दे रहा है, जिससे भारत  चिंतित है। हालांकि यह यात्रा इस बात को रेखांकित करती है कि सहयोग के सभी क्षेत्रों में भारत व नेपाल के बीच द्विपक्षीय रिश्ते मजबूत हुए हैं। चीन लगातार नेपाल को अपने पक्ष में झुकाने की कोशिश में है। पिछले दिनों समाचार आया कि चीन इन्फ्रास्ट्रक्चर निर्माण संबंधी परियोजनाओं पर खर्च के लिए नेपाल को 80 अरब (नेपाली) रुपये देगा।

पर्यवेक्षकों के मुताबिक नेपाल के प्रधानमंत्री के साथ 88 सदस्यीय जंबो शिष्टमंडल भारत यात्रा पर है। 29 मई को नेपाल में 17 खरब 51 अरब 31 करोड़ का बजट पास तो हो गया, पर उसके लक्ष्य पूरे करने के वास्ते उसे दिल्ली से भी आर्थिक मदद की जरूरत होगी। दहल की यात्रा का मुख्य एजेंडा बिजली, व्यापार, हवाई मार्ग और सीमा के मुद्दों सहित एक दर्जन से अधिक मुद्दों पर चर्चा रहेगा। मगर लिपुलेख जैसे जो विवादित विषय हैं, क्या सुलझा लिए जाएंगे?  

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