DSG लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए दुनिया को अधिक तथा बेहतर कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत 

DSG लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए दुनिया को अधिक तथा बेहतर कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत 

नई दिल्ली। सतत विकास लक्ष्यों (एसडीजी) को हासिल करने और 2030 के बाद भी वैश्विक स्वास्थ्य क्षेत्र को मजबूती देने के लिए दुनिया को और भी अधिक तथा बेहतर कुशल स्वास्थ्यकर्मियों की जरूरत है।

कोविड-19 महामारी और ज्यादा समय तक सार्वजनिक स्वास्थ्य आपात स्थिति नहीं रह सकती है, लेकिन इसके बावजूद दुनिया अब भी स्वास्थ्य संकट का सामना कर रही है। यह सतत विकास लक्ष्य-तीन को हासिल करने के रास्ते में बाधा बन सकता है।

जलवायु परिवर्तन से स्वास्थ्य संबंधित कई चुनौतियां खड़ी हो गई हैं जैसे- अत्याधिक गर्मी के प्रभाव और मौसम के कारण हुई घटनाओं से मच्छर जनित बीमारियों और खाद्य पदार्थों का सकंट बढ़ा है। ऐसे में संक्रामक रोगों को खत्म करने में मिली पिछली कामयाबी पर भी असर पड़ सकता है। गैर-संचारी रोग भी बढ़ रहे हैं।

इसके अलावा कुपोषण के साथ अल्पपोषण और मोटापे की बढ़ती महामारी पर काबू पाने की जरूरत है। सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने के लिए निर्धारित 15 वर्ष में से सात वर्ष गुजर चुके हैं। ऐसे में लक्ष्यों की प्रगति का जायजा लेने, चुनौतियों का आकलन करने और लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए फिर से प्रतिबद्ध होने की जरूरत है। स्वास्थ्य पर 2015 में एसडीजी-3 को अपनाया गया था।

इसके तहत सभी उम्र के लोगों को स्वस्थ बनाने का लक्ष्य रखा गया था। आठ लक्ष्यों में से तीन लक्ष्य स्वास्थ्य पर केंद्रित थे, लेकिन फिर भी गैर-संचारी रोगों, मानसिक स्वास्थ्य विकारों, चोटों और मादक द्रव्यों के सेवन सहित स्वास्थ्य संबंधित कई प्रमुख चुनौतियों से निपटने में सफलता नहीं मिली है।

निम्न और मध्यम आय वाले देशों ने सतत विकास लक्ष्यों को हासिल करने की दिशा में 2015 और 2019 के बीच काम करना शुरू कर दिया था। हालांकि, कुछ मामलों में कामयाबी भी मिली है। भारत में मातृ मृत्यु दर में भारी गिरावट देखी गई (वर्ष 2000 में प्रति 100,000 बच्चों के जन्म पर 407 मातृ मृत्यु दर्ज की गई थी, जो 2018-20 के दौरान 97 रही)। इसी तरह वर्ष 2006 में शिशु मृत्यु दर प्रति 1,000 बच्चों पर 53.6 फीसदी थी जो 2023 में आधी होकर 26.6 रह गई। पांच साल से कम उम्र के बच्चों की मृत्यु दर में भी गिरावट दर्ज की गई है।

वर्ष 2005 में राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत के बाद गिरावट में और तेजी आई है। लेकिन गैर-संचारी रोगों और मानसिक स्वास्थ्य जैसी नई प्राथमिकताओं को हासिल करने के प्रयास गति नहीं पकड़ पाए हैं। गैर-संचारी रोग शहरी क्षेत्रों के बाद ग्रामीण आबादी को भी अपनी चपेट में ले रहे हैं।

पिछले कई वर्षों से भारत और अन्य दक्षिण एशियाई देशों में ऐसा देखने को मिल रहा है। कोविड-19 के कारण निम्न और मध्यम आय वाले देश एसडीजी-तीन को हासिल करने में पिछड़ गए। ऐसा इसीलिए क्योंकि इस दौरान ये देश वायरस से लड़ने और उसे नियंत्रित करने पर अधिक ध्यान केंद्रित कर रहे थे।

अन्य स्वास्थ्य सेवाओं को रोक दिया गया या कम कर दिया और एसडीजी से संबंधित महत्वपूर्ण स्वास्थ्य प्रयासों को प्राथमिकता नहीं दी गई। निम्न और मध्यम आय वाले देशों में यह मुद्दा गंभीर रहा।

एशिया-प्रशांत क्षेत्र में 14 देश हैं जहां मातृ मृत्यु दर क्षेत्रीय औसत से अधिक है। ऐसे में 2030 तक के लिए निर्धारित एसडीजी का लक्ष्य पिछड़ सकता है। इसके तहत प्रति 100,000 बच्चों के जन्म पर 70 से कम मातृ मृत्यु का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। अभी भी ज्यादातर देशों का ध्यान महामारी की रोकथाम, तैयारी पर केंद्रित है।

एसडीजी के लक्ष्य हासिल करने के लिए अब सिर्फ सात वर्ष ही बचे हैं। ऐसे में प्राथमिक देखभाल को लेकर सार्वभौमिक स्वास्थ्य कवरेज, स्वास्थ्य नीतियों और कार्यक्रमों के सभी चरणों में समुदायों की सक्रिय भागीदारी जैसे प्रयासों पर ध्यान केंद्र करने की जरूरत है। इसके लिए स्वास्थ्य कार्यबल को और अधिक कुशल बनाने की जरूरत है। 

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