जीतने के लिए कोई शत्रु नहीं, सभी मित्र हैं, तो यह तुलसी का राम राज्य या Ideal State है…

जीतने के लिए कोई शत्रु नहीं, सभी मित्र हैं, तो यह तुलसी का राम राज्य या Ideal State है…

सूर का एक कूट पद और तुलसी का आदर्श राज्य सूरदास का (व्रज भाषा में ) एक ‘कूट’ पद देखिए: “कहत कत परदेसी की बात। मंदिर अर्ध अवधि बदि हमसों, हरि अहार चरि जात। नखत वेद ग्रह जोरि अर्ध करि, को बरजे हम खात। मघ पंचक हरि लियो सांवरो, ताते हैं अकुलात। सूरदास प्रभु बिनु …

सूर का एक कूट पद और तुलसी का आदर्श राज्य
सूरदास का (व्रज भाषा में ) एक ‘कूट’ पद देखिए:

“कहत कत परदेसी की बात।
मंदिर अर्ध अवधि बदि हमसों, हरि अहार चरि जात।
नखत वेद ग्रह जोरि अर्ध करि, को बरजे हम खात।
मघ पंचक हरि लियो सांवरो, ताते हैं अकुलात।
सूरदास प्रभु बिनु दुख पावत, कर मीजत पछतात।।

आप पोस्ट आगे पढ़ने के बजाय इसका अर्थ लगाने की कोशिश करें…
नहीं हुआ ? मुझसे भी नहीं हुआ था। हो जाए तो कूट किस लिए?
जैसा मुझे बताया गया था:

पहली पंक्ति:
परदेशी की बात क्या कहना !

दूसरी पंक्ति:
मंदिर अर्ध = घर का आधा अर्थात पाख, यानी महीने का एक पक्ष (15 दिन)
अवधि = समय
बदि हमसों = हमसे वादा करके
हरि अहार = हरि माने सिंह, हरि अहार माने सिंह का आहार अर्थात मांस। मांस को मास समझिए— परंपरानुसार कविता में इतनी छूट चलती है। यानी एक मास या तीस दिन।
चरि जात = चला गया , बीत गया।

तीसरी पंक्ति:
नखत = नक्षत्र 27 होते हैं। तो यहाँ 27 समझिए।
वेद = चार होते हैं । तो यहाँ 4 समझिए।
ग्रह = 9 होते हैं । यहाँ 9 समझिए।
जोरि = जोड़कर। तीनों संख्यायों का जोड़ हुआ 27+4+9= 40.
अर्ध करि = इस संख्या का आधा कीजिए। वह आया 20 (बीस)। यहाँ अर्थ हुआ बिस यानी विष।
को बरजे हम खात = कौन रोकेगा, हम खाने जा रहे हैं।

चौथी पंक्ति:
मघ पंचक यानी मघा से पाँचवां नक्षत्र–चित्रा यानी चित्त. कृष्ण ने चित्त हर लिया है, इससे हम आकुल हैं।
तो अर्थ हुआ:-
“परदेशी की बात क्या कहना ! 15 दिन में आने का वादा करके गए थे। 30 दिन बीत गए। कौन रोकेगा, अब हम विष खाने जा रहे हैं। हमारे चित्त को साँवरे कृष्ण ने हर लिया है, इससे हम आकुल हैं। सूरदास कहते हैं, हम प्रभु कृष्ण के बिना दुःख पा रहे हैं, हाथ मलते हुए पछता रहे हैं।“
इसके विपरीत तुलसी का एक कूट पद तो बहुत आसान है। वह बस कहने को कूट है।
दंड जतिन कर भेद जहँ नर्तक नृत्य समाज।
जीतहुं मनहि सुनी अस रामचन्द्र के राज ।।
[ऐसा सुना है कि राम के राज्य में दंड केवल दंडी सन्यासियों के हाथ में दिखता है, भेद केवल नर्तकों के नृत्य समाज में (ताल, नृत्य, लय में ) दिखता है और जीतने को केवल मन है।]

अर्थात्
राम-राज्य में अपराध होते ही नहीं, इसलिए किसी को दंड देने की आवश्यकता नहीं पड़ती, समाज में कोई भेद नहीं, पूरी समरसता है। जीतने के लिए कोई शत्रु नहीं, सभी मित्र हैं। तो यह तुलसी का राम राज्य या Ideal State है। Ideal हमेशा एक concept होता है, जो मानदंड का, पैमाने का काम करता है। यह अवधारणा नहीं बदलेगी, चाहे राजतंत्र हो, चाहे जनतंत्र। इस पैमाने पर खरा उतरता है, आस-पास भी है, तो ठीक। जितना ही पैमाने के निकट होगा, उतना ही ठीक। जितना ही दूर होगा, उतना ही बुरा। तंत्र कोई भी हो।

  • कमलकांत त्रिपाठी

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