वृद्धि की राह पर भारत

वृद्धि की राह पर भारत

भू-राजनीतिक स्थितियों की वजह से उथल-पुथल के दौर में भारत ने स्वयं को जिस तरह हालात के अनुसार ढाला, उससे स्पष्ट हो गया कि भविष्य में वैश्विक बाजार को आकार देने में भारत मुख्य भूमिका निभाएगा। वास्तव में भारत दशक की सबसे बड़ी वृद्धि की राह पर है। 

चीन, जापान और यूरोपीय देशों में बढ़ती उम्र वाली आबादी के विपरीत भारत की आबादी बढ़ रही है। तेजी से बढ़ती जनसंख्या और तीव्र आर्थिक विकास की वजह से भारत में ऊर्जा की मांग बहुत ज्यादा है। दीर्घावधि में 1-2 प्रतिशत के स्तर तक पहुंचने से पहले प्राथमिक ऊर्जा मांग अगले 10 वर्षों में सालाना 3-4 प्रतिशत बढ़ने का अनुमान है। 

अहम सवाल यह है कि क्या भारत इस अवसर का लाभ उठा सकता है और किस हद तक? भारत ने काफी सावधानी से क्षेत्रीय जटिलताओं, चीन के साथ अपने संबंधों और इंडो-पैसेफिक क्षेत्र की रणनीतियों के मद्देनजर अपनी स्वायत्त नीति को बरकरार रखा। इसमें कोई शक नहीं कि भारत का ऊर्जा व्यापार क्षेत्र रूस-यूक्रेन युद्ध की वजह से बड़े स्तर पर प्रभावित हुआ है। भारत अपनी ऊर्जा जरूरतों को पूरा करने के लिए काफी हद तक आयात पर निर्भर है, खासकर तेल और गैस के मामले में। 

ऊर्जा असुरक्षा बहुआयामी है, इसलिए जीवाश्म ईंधन से चलने वाली ऊर्जा प्रणाली से सौर, पवन, बायोमास, हाइड्रोजन आदि जैसी नवीकरणीय ऊर्जा प्रणालियों में संक्रमण से जुड़ा एक सर्वव्यापी समाधान समय की मांग है। नवीकरणीय ऊर्जा प्रणाली न केवल ऊर्जा प्रणालियों की सामर्थ्य, सुरक्षा का वादा करती है, बल्कि वे टिकाऊ भी हैं। अधिक लचीली, समावेशी और स्वच्छ ऊर्जा प्रणाली बनाने में नवीकरणीय ऊर्जा एक निर्विवाद भूमिका निभाती है। 

भारत ने हाल के वर्षों में अपनी ऊर्जा आपूर्ति में विविधता ला दी है। यह वैकल्पिक ऊर्जा स्रोतों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है और गैस आधारित अर्थव्यवस्था, हरित हाइड्रोजन और इलेक्ट्रिक वाहनों के माध्यम से अपने ऊर्जा परिवर्तन को पूरा कर रहा है। नवीकरणीय ऊर्जा के प्रति सरकार की बिना शर्त प्रतिबद्धता के परिणाम स्वरूप, नवीन नीतियों और प्रोत्साहनों के साथ भारत ने धीरे-धीरे ऊर्जा के अधिक नवीकरणीय स्रोतों (सौर, बायोगैस, आदि) सहित हरित ऊर्जा परिदृश्य के लिए मंच तैयार किया है। 

भारत अभी भी अपनी 80 प्रतिशत से अधिक ऊर्जा जरूरतों को मुख्य रूप से तीन ईंधनों: कोयला, तेल और बायोमास से पूरा करता है। रूस-यूक्रेन संघर्ष की छाया वैश्विक ऊर्जा बाजार में स्पष्ट रूप से दिख रही है। रूस-यूक्रेन संघर्ष ने भारत के व्यापक आर्थिक परिदृश्य और ऊर्जा क्षेत्र पर काफी प्रभाव डाला है। इसलिए भारत को अभी भी एक लंबा रास्ता तय करना है।

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