वाराणसी: तुलसीघाट पर जोरशोर से शुरू हुई नाग नथैया लीला की तैयारी, 400 साल पुरानी है परंपरा

वाराणसी: तुलसीघाट पर जोरशोर से शुरू हुई नाग नथैया लीला की तैयारी, 400 साल पुरानी है परंपरा

वाराणसी। वाराणसी में सात वार नौ त्योहारों वाली काशी में दीपावली पर्व के बाद अब लक्खा मेले में शुमार तुलसीघाट की नाग नथैया लीला की तैयारियां जोर शोर से शुरू हो गई हैं। इस बार तिथि अनुसार नाग नथैया 17 अक्टूबर दिन शुक्रवार को होगी। गोस्वामी तुलसीदास द्वारा भदैनी में लगभग 497 साल पहले कार्तिक माह में श्रीकृष्ण लीला की शुरुआत काशी के तुलसी घाट पर की गई थी।

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इस लीला में भक्ति और भाव का ही प्रभाव देखने को मिलता है। काशी का तुलसी घाट गोकुल और उत्तरवाहिनी गंगा यमुना में बदल जाती हैं। तुलसीदास द्वारा शुरू की गई इस 22 दिनों की लीला की परंपरा आज भी कायम है। भगवान राम के अनन्य भक्त संत गोस्वामी तुलसीदास ने शिव की नगरी काशी राम नाम के साथ भगवान कृष्ण को भी लीला के जरिए जन जन तक पहुंचाया।

इसमें भगवान कृष्ण के जन्मोत्सव से लेकर उनके द्वारा किए गए पूतना वध, कंस वध, गोवर्धन पर्वत सहित कई लीलाओं का मंचन किया जाता है। एक माह पहले कृष्ण बलराम और राधिका चयन किया जाता है। नाग नथिया लीला को लेकर तुलसी घाट पर तैयारी प्रारंभ हो गई है बता दे कि इस लीला के लिए पीपा फुल लाया जाता है तुलसी घाट पर बैरिकेडिंग किया जाता है और इसके साथ ही नाग का फैन और धड़ बनाया जाता है।

नाग के फन को रंग से रंगा जाता है इसमें लाइट भी लगाया जाता है इसके साथ इसके घर को बनाने के लिए कपड़े में पुआल को भर जाता है। वही इस लीला के दौरान सबसे अहम रोल कदम के पेड़ का होता है। इस कदम के पेड़ पर भगवान कृष्ण चाहते हैं लोगों को दर्शन देने के बाद गंगा रूपी यमुना में बाल निकालने के लिए कूद जाते हैं।

भगवान श्री कृष्णा 4:40 पर यमुना में झलांग लगते हैं। जैसे ही भगवान कृष्ण गंगा रूपी यमुना में कूदते हैं वैसे ही कृष्ण भगवान की जय हर हर महादेव का उद्घोष होने लगता है। इसके बाद भगवान कृष्ण कालिया नाग के ऊपर सवार होकर लोगों को दर्शन देते हैं जिसके बाद महंत और रामनगर के राजा द्वारा भगवान कृष्ण को माल्यार्पण कर आरती उतारा जाता है।

संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो विश्वंभरनाथ मिश्रा का कहना है कि या लीला सैकड़ो साल पुरानी है जिसका निर्वहन आज भी परंपरा के अनुसार किया जा रहा है। भगवान कृष्ण द्वारा यमुना में कदम के पेड़ से 4:40 पर झलांग लगाया जाता है। यहां पर लाखों की संख्या में दर्शनार्थी इस लीला को देखने पहुंचते हैं। तुलसीदास ने इस लीला में सभी धर्मों के भेदभाव को मिटा दिया है। सभी कलाकर अस्सी भदैनी के ही होते हैं।

सबसे प्रमुख दीपावली के चार दिन बाद होने वाली नागनथैया अपने आप में अनोखी लीला है। बता दें कि काशी के चार लक्खा मेला प्रसिद्ध हैं। इसमें रथयात्रा का मेला, नाटी इमली का भरत मिलाप, चेतगंज की नक्कटैया और तुलसी घाट की नाग नथैया शामिल है। इसमें से तीन लक्खा मेला तो संपन्न हो गए हैं, जबकि चौथा मेला 29 अक्टूबर को होगा। एक लाख से अधिक भीड़ आने के चलते इन्हें लक्खा मेला कहा जाता है।

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