नैनीताल: शुष्क मौसम के चलते वनों को आग से नुकसान का अंदेशा

नैनीताल: शुष्क मौसम के चलते वनों को आग से नुकसान का अंदेशा

चन्द्रेक बिष्ट, नैनीताल, अमृत विचार। इस बार अब तक शीतकालीन वर्षा व बर्फबारी नहीं होने के कारण अभी से सूखे की स्थिति बन चुकी है। इस बार इसका असर पहाड़ के वनों में पड़ने  की पूरी आशंका बन गई है। नैनीताल सहित पर्वतीय क्षेत्रों के चीड़ वनों में नमी भी समाप्त हो रही है। कई स्थानों से जंगल की आग की घटनाओं की सूचनाएं मिलने लगी हैं।

उत्तराखंड में मौसम की बेरुखी वन विभाग की भी चिंता बढ़ा रही है। 71 प्रतिशत वन क्षेत्र वाले प्रदेश में चीड़ के जंगलों मे आग का खतरा भी अधिक रहता है। वर्षा कम होने के कारण इस बार चुनौती और बड़ी होने की आशंका है।

वन विभाग के अधिकारिक सूत्रों के अनुसार इस वर्ष पर्याप्त बर्फबारी नहीं होने से चीड़ जंगलों में नमी की कमी होने लगी है। वनों को आग से बचाने के लिए कंट्रोल वर्निंग व फायर ड्रिल का कार्य कराया जा रहा है। इसके साथ ही जागरूकता अभियान चलाने, कंट्रोल रुम भी स्थापित करने व अतिरिक्त कर्मी तैनात करने की कार्ययोजना तैयार की गई है। मालूम हो कि 2016 में पर्वतीय क्षेत्र के सर्वाधिक 4470 हेक्टेयर वनों में भीषण आग से भारी नुकसान हो गया था। 2022 में जंगल की आग की 22 सौ घटनाएं हुईं।

जिनमें करीब 35 सौ हेक्टेयर वन क्षेत्र को नुकसान पहुंचा, जबकि वर्ष 2021 में करीब 2800 घटनाएं हुई थीं। मालूम हो कि बीते वर्ष समय-समय पर हो रही वर्षा के कारण वन अफसरों को इंद्रदेव से राहत मिल रही थी। वही इस बार 2016 की पुनरावृत्ति होने की आशंका बनी हुई है। जंगलों में नमी नही होने के कारण आग और अधिक भयानक होती है। पहाड़ों में चीड़ के जंगलों में भारी पतझड़ होने के बाद आग की घटनाएं शुरू होती है। मार्च माह से शुरू होने पतझड़ तक वन विभाग को पूरी तैयारी करनी पड़ती है।

आग के दायरे में आते हैं प्रदेश के 23 हजार हेक्टेयर जंगल
नैनीताल। मिली रिपोर्टों के मुताबिक प्रदेश के 23 हजार हेक्टेयर जंगल आग के दायरे में आते है। रूद्रप्रयाग, बागेश्वर, अल्मोड़ा, चमोली व पौड़ी जिला के वन सवाधिक संवेदनशील है। पहाड़ों के चीड़ जंगलों में गर्मियों में आग लगना आम बात है। लेकिन सूखे व सरकारी मशीनरी की उदासीनता के कारण यह आग भीषण रूप रख लेती है। जंगलों में नमी नही होने के कारण आग और अधिक भयानक होती है। पहाड़ों में चीड़ के जंगलों में भारी पतझड़ होने के बाद आग की घटनाएं शुरू होती है। मार्च माह से शुरू होने पतझड़ तक वन विभाग को पूरी तैयारी करनी पड़ती है। 

जंगलों की आग को लेकर हाई कोर्ट के हैं कड़े निर्देश
नैनीताल। वर्ष 2016 में उत्तराखंड के पर्वतीय जनपदों में भीषण आग का मामला उत्तराखंड हाई कोर्ट में पहुंच गया था। इस मामले हाई कोर्ट ने गम्भीर रूख आख्तियार कर लिया था। इसके साथ ही कड़े निर्देश भी जारी कर दिये। कोर्ट ने शासन को जहां एसडीआरएफ, एनडीआरएफ फोर्स तैनात करने के निर्देश दिये थे। वहीं 24 घंटे आग नहीं बुझने पर डीएफओ, 48 घंटे में वन संरक्षक व 72 घंटे जंगल की आग नहीं बुझने पर प्रमुख वन संरक्षक को सस्पेंड करने तक के कड़े आदेश जारी किये थे। लेकिन बाद में सुप्रीम कोर्ट ने सस्पेंड मामले पर स्टे दिया था। लेकिन अफसरों को अन्य आग को रोकने संबंधित आदेशों का पालन करने को लेकर इस बार भी डर बना हुआ है।

जंगलों को आग से बचाने के लिए कंट्रोल वर्निंग का कार्य शुरू : बीजू लाल 
नैनीताल। दक्षिणी कुमाऊं वृत नैनीताल बीजू लाल का कहना है कि लम्बे समय तक वर्षा नहीं होने से चीड़ वनों में नमी की कमी हो जाती है, लिहाजा गर्मियों में आग लगने की आशंकाएं बढ़ जाती हैं। जंगलों को आग से बचाने के लिए कंट्रोल वर्निग व फायर ड्रील का कार्य कराया जा रहा है। इसके साथ ही जागरूकता अभियान चलाने, कन्ट्रोल रूम भी स्थापित करने, फायर वाचर व अतिरिक्त कर्मी तैनात करने की कार्य योजना तैयार की जा रही है। इसके लिए विभाग से अतिरिक्त बजट देने का प्रावधान है।