बरेली: कब्जाई जाती रही नहर क्योंकि बिकते रहे अफसर

रुहेलखंड नहर के अफसरों ने 11 साल तक कब्जों की अनदेखी की, फिर इतना समय कार्रवाई को टालने में गंवाया

बरेली: कब्जाई जाती रही नहर क्योंकि बिकते रहे अफसर

बरेली, अमृत विचार। रुहेलखंड नहर खंड की जमीन कब्जे की कहानी दरअसल विभाग के अफसरों के बिल्डरों के हाथों लगातार बिकते रहने की भी कहानी है। इसीलिए अवैध कब्जाें का मामला एक तो 12 साल बाद खुल पाया और फिर इतना ही समय जमीन को कब्जामुक्त कराने की टालमटोल में गुजार दिया गया। दो साल पहले तत्कालीन सिटी मजिस्ट्रेट कोर्ट ने विभागीय अधिकारियों की भूमिका की जांच कर उनके खिलाफ कार्रवाई का आदेश दिया लेकिन वह भी फाइलों में दबकर रह गया। इसी पूरे घटनाक्रम में छह साल का वह अंतराल भी गुजर गया, जिसमें प्रदेश सरकार का एंटी भूमाफिया अभियान सुर्खियों में छाया रहा।

रुहेलखंड नहर खंड की बेहद कीमती जमीन पर अवैध कब्जे को लेकर सिंचाई विभाग और रुहेलखंड नहर खंड के अफसर दशक भर से ज्यादा समय तक जानकर अनजान बने रहे। इस बीच जमीन को कब्जामुक्त कराने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की गई। पूरा एक दशक सिर्फ कागजों का पेट भरने में गुजर गया। 2021 में तत्कालीन नगर मजिस्ट्रेट मदन कुमार ने सरकार बनाम केसी पंत वाद में रुहेलखंड नहर खंड के पक्ष में फैसला सुनाते हुए कब्जेदार को बेदखल करने का आदेश सुनाया फिर भी रुंहेलखंड नहर खंड ने जमीन को कब्जे में लेने के लिए कोई कार्रवाई नहीं की।

सिटी मजिस्ट्रेट की कोर्ट के इसी आदेश में सिंचाई और रुहेलखंड नहर खंड के अफसरों की संलिप्तता की भी बात कही गई थी और जांच कराकर उनके खिलाफ कार्रवाई के निर्देश दिए गए थे। सिटी मजिस्ट्रेट के फैसले में स्पष्ट तौर पर कहा गया था कि नहर विभाग ने वाद में उल्लेख किया है कि बिल्डरों ने रुहेलखंड नहर खंड की गाटा नंबर -96 की 0.5889 हेक्टेयर भूमि में से 1528.66 वर्ग मीटर भूमि पर सन् 2000 में कब्जा किया है, यह तथ्य खुद नहर विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों की कार्यशैली पर संदेह पैदा करता है। इस पर उत्तरदायित्व निर्धारित करने के साथ विभागीय कार्रवाई की जानी चाहिए।

सिटी मजिस्ट्रेट के आदेश में इस गंभीर टिप्पणी के बावजूद नहर की भूमि पर कब्जा होने के दौरान तैनात रहने वाले अफसरों के विरुद्ध काेई जांच की गई न कार्रवाई। 17 सितंबर 2021 को सिटी मजिस्ट्रेट कोर्ट से जारी यह आदेश फाइलों में दब गया।

न समीक्षा करते डीएम तो दबा ही रहता प्रकरण
जिलाधिकारी रविंद्र कुमार अगर आठ नवंबर को रुहेलखंड नहर खंड की नहर भूमि पर अतिक्रमण/बेदखली के साथ निर्णीत वादों में आरसी वसूली की समीक्षा न करते तो शायद अब भी भूमि को कब्जे में लेने के लिए टीम गठित न होती। इस बैठक में जिलाधिकारी ने रुहेलखंड नहर खंड के एक्सईएन को विभाग के पक्ष में निर्णीत वादों में कब्जे और बेदखली की कार्रवाई कराने का आदेश दिया था। 

यह भी कहा था कि जो गाटा मिन जुमला नहीं हैं, उनकी बेदखली के लिए एसडीएम से समन्वय स्थापित कर संपत्तियों पर जल्द कब्जा लिया जाए। एडीएम वित्त को भी इन वादों में लगी पेनल्टी के सापेक्ष आरसी की धनराशि की वसूली करने को कहा गया था। डीएम की बैठक के बाद ही रुहेलखंड नहर खंड के एक्सईएन मुकेश कुमार ने एडीएम प्रशासन से जमीन पर कब्जा लेने के लिए तिथि घोषित करने का आग्रह किया है। कुर्मांचलनगर बसाने वाले बिल्डर केसी पंत के विरुद्ध तहसीलदार सदर के स्तर से आरसी कई महीने पहले ही जारी की जा चुकी है।

बिल्डरों ने भी अफसरों पर लगाए थे गंभीर आरोप
नहर की जमीन पर अवैध कब्जे के केस की सुनवाई के दौरान बिल्डरों ने भी सिटी मजिस्ट्रेट के कोर्ट में कई शपथ पत्र देकर अधिकारियों-कर्मचारियों पर गंभीर आरोप लगाए थे। इनमें कहा गया था कि अगर नहर भूमि पर सन् 2000 से कब्जा बताया जा रहा है तो रुहेलखंड नहर खंड के अधिकारी इतने लंबे समय तक खामोश क्यों रहे। 2011 में अचानक कैसे पता चला कि कब्जा है। बिल्डरों ने यह भी आरोप लगाया था कि कुर्मांचल नगर कॉलोनी चार बिल्डरों ने बसाई थी, लेकिन वाद में नाम सिर्फ केसी पंत का ही जोड़ा गया।

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