बहराइच: आधुनिकता की चकाचौंध में अब नहीं दिखते डोली और म्याना, अब लक्जरी वाहनों होती है दूल्हन की विदाई

बहराइच: आधुनिकता की चकाचौंध में अब नहीं दिखते डोली और म्याना, अब लक्जरी वाहनों होती है दूल्हन की विदाई

राजकुमार शर्मा/बाबागंज/बहराइच, अमृत विचार। जिले में सहालग खत्म होने के कगार पर है, कहीं भी अब पुराने जमाने में चल रहे डोली म्याना दिखाई नहीं पड़ रहे हैं। समय की नजाकत को समझिए कि आज के 30 वर्ष पहले भारत देश के ग्रामीण क्षेत्रों में जब सहालग शुरू में होता था तो डोली म्याना और कहार वालों की चांदी हो जाती थी। सहालग के दौरान अच्छी खासी कमाई भी होती थी। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में डोली म्यानाऔर कहार कहां चले गए कोई पता नहीं।

जिले के ग्रामीण क्षेत्रों में दशकों पहले डोली और म्याना से बारात जाने पर लोगों को देखने के लिए उत्सुकता होती थी। लेकिन अब यह सभी धीरे धीरे इतिहास बनकर रह गए हैं। कहने की बात यह है कि, जब डोली म्याना में सज कर दूल्हा बारात लेकर अपने ससुराल पहुंचता था तो बड़े भव्य तरीके से स्वागत किया जाता था और बैलगाड़ी में सवार होकर बाराती भी जाते थे।

सहालग शुरू होने के पहले ही कहार जो डोली म्याना लेकर चलते थे। वह अपनी डोली म्याना को दुल्हन की तरह सजाने का काम शुरू कर देते थे, ताकि यात्रा के दौरान किसी भी प्रकार की कोई परेशानी डोली म्याना से न हो। लड़की की विदाई भी पहले के जमाने में डोली म्याना में ही होती थी, और कहार डोली म्याना लेकर लड़की के ससुराल पहुंच जाते थे। जहां पर लड़की के ससुराल वालों के द्वारा डोली म्याना का पूजन किया जाता था, तथा डोली से उतारने के दौरान दुल्हन का नेग भी लिया जाता था।

लेकिन आज के आधुनिक समाज ने इन सब चीजों को गायब कर दिया, अब डोली म्याना की जगह नई-नई चमचमाती लग्जरीज गाड़ियों ने स्थान ले लिया। जिसमें अब भारी भरकम का खर्चा भी आता है और अनेकों प्रकार की दुर्घटनाएं भी होनी शुरू हो गई। पता नहीं कितने लोग अचानक काल के गाल में समा गए। ऐसे में डोली और म्याना की बारात और दुल्हन की विदाई अब इतिहास बन गई है।

हो रहा अधिक खर्च

आधुनिकता की चकाचौंध में लोग लग्जरी वाहनों का प्रयोग कर समय तो बचा रहे हैं। लेकिन उन्हें खर्च अधिक उठाना पड़ रहा है। ऐसे में ग्रामीणों को अपनी परंपरा को जीवंत बनाए रखने की जरूरत है।

कहारों ने चुन लिया दूसरा व्यवसाय

डोली और म्याना से दुल्हन को लाने और ले जाने का काम पहले कहार करते थे। लेकिन आधुनिकता की दौड़ में जैसे ही डोली और म्याना सड़ने लगे। वैसे ही कहार समुदाय के लोगों ने दूसरा काम पकड़ लिया। अब सभी मिट्टी के बर्तन बनाने में लगे हुए हैं।

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