Bareilly News: इफको की ज्यादती... मुआवजा दिया न नौकरी, मजदूर बन गए किसान

Bareilly News: इफको की ज्यादती... मुआवजा दिया न नौकरी, मजदूर बन गए किसान

बरेली, अमृत विचार। इफको प्लांट के निर्माण के लिए 1984 में आंवला के सेंथा गांव में 1132 किसानों की भूमि का अधिग्रहण किया गया था। तत्कालीन मुख्यमंत्री नारायण दत्त तिवारी ने घोषणा की थी कि भूमि की एवज में किसानों को मुआवजे के साथ फैक्ट्री में स्थाई नौकरी भी दी जाएगी। 

बरसों तक इफको के एमडी एमएच अवधामी भी यही वादा दोहराते रहे लेकिन फैक्ट्री शुरू होने के बाद सिर्फ 182 किसानों को नौकरी मिल पाई। साढ़े नौ सौ किसान अब तक नौकरी के लिए भटक रहे हैं। तमाम को मुआवजा भी नहीं मिल पाया।

इफको में नौकरी का वादा पूरा कराने के लिए कई किसान संगठन अब तक कई बार आंदोलन कर चुके हैं। तीन साल पहले इफको के खिलाफ धरने पर बैठे एक किसान की मौत हो गई थी। इसके बाद भी इफको प्रबंधन नौकरी के वादे पर लगातार झूठे आश्वासन देकर काम चलाता रहा। 

सेंथा के किसानों का यह भी कहना है कि प्लांट स्थापित होने के बाद राज्य में सत्ता में आई सपा, बसपा और भाजपा की सरकारों में वे लोग लगातार नौकरी दिलाने की फरियाद करते रहे लेकिन किसी ने उन्हें इंसाफ दिलाने की पहल नहीं की।

दिसंबर 2019 में भाजपा सरकार में जनता दर्शन के दौरान मुख्यमंत्री को भी शिकायती पत्र दिया था। उस पर भी कुछ नहीं हुआ। किसान कहते हैं कि इफको ने जमीन लेकर उन्हें कहीं का नहीं छोड़ा। तमाम किसान ऐसे हैं जिनके पास भूमि का अधिग्रहण होने के बाद रोजगार का कोई साधन नहीं बचा और वे मजदूरी करने के लिए मजबूर हो गए।

किसानों के हर धरने के बाद इफको का झूठा वादा
सन् 1993 में भोजीपुरा के केपीएल शर्मा के नेतृत्व में किसानों ने इफको जमीनदाता कर्मचारी संघर्ष समिति बनाकर इफको गेट पर 17 दिन धरना दिया था। इस धरने को इफको ने किसानों पर लाठीचार्ज कराकर खत्म करा दिया था। 34 लोगों को भी जेल भिजवा दिया। प्रशासन की इस कार्रवाई से किसानों का संगठन बिखर गया। 2005 में भाकियू के टिकैत गुट ने धरना शुरू किया तो 11वें दिन इफको ने नौकरी देने का आश्वासन देकर उसे खत्म करा दिया।

किसानों ने 2012 में फिर 26 दिन धरना दिया। इस पर इफको प्रबंधन ने महीने में 22 दिन का रोजगार देने की बात कही लेकिन कुछ समय बाद फिर मुकर गया। इससे नाराज किसानों ने 2018 में फिर डेढ़ महीने धरना दिया। इसके बाद रिक्तियां होने पर 50 प्रतिशत भूदाताओं से भरने की सहमति बनी लेकिन प्रबंधन इस वादे से भी पलट गया। किसान 11 दिसंबर 2021 को फिर आंदोलन की शुरुआत कर 13 महीने तक धरने पर बैठे रहे।

इसके बाद इफको ने 278 भूदाताओं को योग्यता के आधार पर महीने में 24 दिन रोजगार का वादा कर 27 दिसंबर 2022 को धरना समाप्त करा दिया। एक फरवरी 2023 को इफको ने एक महीने में 50 से सौ भूदाताओं को रोजगार, दूसरे महीने में सौ और तीसरे महीने में शेष सभी को रोजगार देने का वादा किया। समझौते पर इफको के अधिकारी, किसान संगठन के पदाधिकारी, एसडीएम और कुछ भूदाताओं से हस्ताक्षर कराए गए लेकिन इफको ने इस लिखित समझौते पर भी अमल नहीं किया।

नाराज किसानों ने नौ जनवरी को फिर इफको गेट पर धरना देकर प्रदर्शन किया। एसडीएम और सीओ ने तो मांगें पूरी कराने का आश्वासन देकर धरना खत्म करा दिया लेकिन इफको के अधिकारियों ने भूदाताओं को नौकरी दिलाने पर कोई ध्यान नहीं दिया। उल्टे 34 लोगों को रोजगार उपलब्ध कराने की फर्जी सूची उपलब्ध करा दी। इससे किसान फिर उखड़ गए। अब नौ फरवरी से वे तहसील कार्यालय के सामने धरने पर बैठे हुए हैं।

बरसों बोले झूठ, पहले तीन सौ, अब 1132 भूदाता
इफको के अधिकारी बरसों तक झूठ बोलते रहे और प्रशासन उस पर यकीन भी करता रहा। इफको अधिकारियों ने दावा किया था कि सिर्फ तीन सौ किसानों की जमीन ली गई थी जिनमें 208 को रोजगार दे दिया गया है जबकि भूमि अधिग्रहण के दौरान ही जिला भूमि अध्यापित अधिकारी बरेली की ओर से घोषित किया गया था कि इफको ने 2233 किसानों की जमीन का अधिग्रहण किया है। किसानों के 13 महीने के धरने के बाद इफको प्रबंधन ने 1132 किसानों को भूदाता माना था।

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