चुनाव के बीच कच्चातिवु

चुनाव के बीच कच्चातिवु

लोकसभा चुनाव के बीच एक बार फिर कच्चातिवु द्वीप श्रीलंका को सौंपे जाने का मुद्दा गरमा गया है। कच्चातिवु भारत और श्रीलंका के बीच पाक जलसंधि में 285 एकड़ में विस्तृत एक निर्जन स्थान है, जो भारत के रामेश्वरम से लगभग 14 समुद्री मील की दूरी पर स्थित एक द्वीप है। वर्ष 1974 में भारत की प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और श्रीलंका की सिरिमा आरडी भंडारनायके ने एक समझौते पर हस्ताक्षर किए, जिससे कच्चातिवु को श्रीलंका क्षेत्र के हिस्से के रूप में मान्यता दी गई। समझौते के परिणामस्वरूप इस क्षेत्र के स्वामित्व में परिवर्तन हुआ।

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने रविवार को कहा कि कांग्रेस ने कच्चातिवु द्वीप ‘ संवेदनहीन’  ढंग से श्रीलंका को दे दिया था। गौरतलब है कि समझौते ने भारतीय मछुआरों को द्वीप के आस-पास मछली पकड़ने, वहां अपने जाल सुखाने की अनुमति के साथ भारतीय तीर्थयात्रियों को द्वीप पर स्थित कैथोलिक तीर्थ की यात्रा करने की अनुमति दी। इस निर्जन द्वीप पर मत्स्य पालन का अधिकार और संप्रभुता को लेकर यह भारत और श्रीलंका के बीच लंबे समय से विवाद का मुद्दा रहा है। जब इंदिरा गांधी ने श्रीलंका को यह द्वीप सौंपा तो सबसे ज्यादा विरोध तमिलनाडु में हुआ था।

तमिलनाडु के तत्कालीन मुख्यमंत्री करुणानिधि ने इसका पुरजोर विरोध किया था। इसको लेकर साल 1991 में तमिलनाडु विधानसभा में प्रस्ताव पास किया गया। प्रस्ताव में उस द्वीप को वापस लेने की मांग की गई। इसके बाद ये मामला उच्चतम न्यायालय में भी पहुंचा। हालांकि भारत सरकार ने 2013 में स्पष्ट किया कि पुनः प्राप्ति का सवाल ही नहीं उठता क्योंकि कोई भी भारतीय क्षेत्र हस्तांतरित नहीं किया गया था।

तत्कालीन केंद्र सरकार ने दावा किया कि कच्चातिवु भारत-श्रीलंका अंतर्राष्ट्रीय समुद्री सीमा रेखा के श्रीलंकाई हिस्से पर स्थित है। राजनीतिक कारणों और जनभावना के चलते  कच्चातिवु का स्थानांतरण भारत की संसद के दोनों सदनों में विरोध और बहस शुरू होने का कारण बना। ये विवाद इसलिए भी बना हुआ है क्योंकि श्रीलंका, भारत के मछुआरों को वहां पर सुस्ताने और अपने जाल सुखाने से लगातार रोकता आया है।

दूसरी ओर कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे ने आरोप लगाया कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु को ध्यान में रखकर कच्चातिवु द्वीप का मुद्दा उठाया, जबकि उनकी सरकार की विदेश नीति की विफलता के कारण नेपाल, भूटान और मालदीव जैसे  पड़ोसियों के कारण रिश्ते बिगड़ गए। राजनीति और सियासी मांगों से अलग, भारत के कई सामरिक विशेषज्ञों को भी इस बात की आशंका लगती है कि भारत की मुख्यभूमि के बेहद करीब स्थित द्वीप तक कहीं चीन किसी तरह से अपनी पहुंच न बना ले। ऐसे में भारत को श्रीलंका के साथ अपने पारंपरिक एवं सांस्कृतिक संबंधों को मज़बूत बनाने पर अधिक ध्यान देना चाहिए।