बच्चे से मुलाकात के लिए दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका सुनवाई योग्य नहीं: हाईकोर्ट

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज: अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने पिता द्वारा  अपनी नाबालिग बेटी से मिलने के लिए दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका पर सुनवाई करते हुए कहा कि बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका एक विशेषाधिकार है।

इसे व्यक्तिगत स्वतंत्रता की रक्षा और सुरक्षा के लिए कानून में शामिल किया गया है। इसका इस्तेमाल बच्चों के कस्टडी के केवल उन मामलों में होता है, जहां नाबालिग की कस्टडी ऐसे व्यक्ति को दे दी जाती है जो कानूनी रूप से उसका हकदार नहीं होता है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि बंदी प्रत्यक्षीकरण आमतौर पर मुलाकात का अधिकार देने के लिए जारी नहीं की जाती है, विशेषकर जब पक्षकारों के बीच वैवाहिक विवाद परिवार न्यायालय के समक्ष लंबित हो। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि जहां तक बच्चे से मुलाकात के अधिकार का संबंध है, ऐसी स्थिति में संबंधित पक्ष के लिए यह हमेशा खुला रहता है कि वह परिवार न्यायालय के समक्ष एक उचित आवेदन दाखिल करके उपाय का लाभ उठाए।

उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति डॉ.योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने मिथिलेश मौर्य द्वारा दाखिल बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका को खारिज करते हुए की, जिसमें उसने अपने एक महीने की बच्ची से मिलने का अधिकार मांगा था जो वर्तमान में उसकी पत्नी की कस्टडी में है। दरअसल पक्षकारों के बीच तलाक और भरण-पोषण को लेकर परिवार न्यायालय, आजमगढ़ के समक्ष आपराधिक मामला लंबित है।

अंत में कोर्ट ने माना कि हिंदू अप्राप्तवयता और संरक्षकता अधिनियम, 1956 की धारा 6(ए) के अनुसार किसी नाबालिग की उसकी मां के साथ हिरासत को अवैध नहीं माना जा सकता है। अतः पति नाबालिग की कस्टडी और मुलाकात के संबंध में राहत के आदेश प्राप्त करने के लिए धारा 26 के तहत परिवार न्यायालय के अधिकार क्षेत्र का इस्तेमाल कर सकता है।

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