गंभीर समस्या

गंभीर समस्या

उत्तराखंड के जंगलों में आग प्रमुख आपदाओं में से एक है। जंगलों में आग लगने का संकट इस बार ज्यादा गंभीर नजर आ रहा है। राज्य का 40 प्रतिशत हिस्सा जल रहा है। हर वर्ष उत्तराखंड में जंगल की आग से वन पारिस्थितिकी तंत्र, वनस्पतियों, जीवों की विविधता और आर्थिक संपदा को भारी नुकसान होता है। 

उच्चतम न्यायालय में एक याचिका पर सुनवाई के दौरान बुधवार को पीठ ने कहा कि ‘क्लाउड सीडिंग’ (कृत्रिम बारिश) या ‘इंद्र देवता पर निर्भर रहना’ इस मुद्दे का समाधान नहीं है। राज्य को निवारक उपाय करने होंगे। न्यायमूर्ति बीआर गवई और संदीप मेहता की पीठ को राज्य सरकार ने बताया कि पिछले साल नवंबर से उत्तराखंड में जंगल में आग लगने की 398 घटनाएं हुईं और ऐसी घटनाओं में पांच लोग मारे गए। राज्य के उप महाधिवक्ता ने बताया कि सभी आग मानव निर्मित थीं। 

एक अधिवक्ता ने पीठ को बताया कि राज्य एक ‘गुलाबी तस्वीर’ पेश कर रहा है, लेकिन मीडिया रिपोर्टों का दावा है कि जंगल की आग से निपटने में शामिल पूरी मशीनरी चुनाव-संबंधी काम में व्यस्त है। उधर मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी ने कहा कि सरकार पहाड़ों में लग रही आग को आपदा मानते हुए इस पर काबू पाने को जमीनी प्रयास कर रही है। प्रशासन जनसहभागिता से आग बुझाने के काम में लगा है। 

कुछ मामलों में वन विभाग की लापरवाही भी सामने आई है जिसके बाद 17 वन कर्मियों के विरुद्ध विभागीय कार्रवाई की गई है। जंगल की आग को कम करने के उद्देश्य से पिरुल (चीड़ के पत्तों) को एकत्र करने के लिए पिरुल लाओ-पैसे पाओ मिशन की शुरूआत की गई है। 

इस काम के लिए 50 करोड़ रुपये जारी कर दिए गए हैं। वास्तव में जंगल की आग एक गंभीर समस्या है। पिछले कुछ वर्षों में आग की घटनाओं में वृद्धि हुई है और इन घटनाओं से पर्यावरण को बड़े पैमाने पर नुकसान होता है। जंगल पहाड़ी इलाकों में लोगों के साथ सामाजिक और पर्यावरणीय रूप से जुड़े हुए हैं और क्षेत्र के आर्थिक कल्याण और विकास में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। 

साथ ही वन और वन्यजीव महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधन हैं और मानव जीवन व पर्यावरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। स्थिति दयनीय है। जो लोग आग बुझाने जाते हैं उनके पास उचित उपकरण तक नहीं हैं। दरअसल सरकारों की प्राथमिकता में पर्यावरण व वन संरक्षण शामिल ही नहीं हो पाया है।

ग्लोबल वार्मिंग के चलते वातावरण में तापमान बढ़ने से भी आग लगने की घटनाएं बढ़ी हैं। हमें बढ़ते तापमान के साथ प्रकृति संरक्षण के उपायों को बढ़ावा देना होगा। निस्संदेह जंगलों की आग पर ग्रामीणों के सहयोग के बिना काबू नहीं पाया सकता।

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