Bareilly News: मधुमक्खी पालकों के जीवन में कड़वाहट घोल रही शहद की मिठास

लागत अधिक और मुनाफा घटने से परेशान हैं मधुमक्खी पालक, शहद की बिक्री भी घटी

Bareilly News: मधुमक्खी पालकों के जीवन में कड़वाहट घोल रही शहद की मिठास

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अनुपम सिंह, बरेली, अमृत विचार। जिले में मधुमक्खी पालकों का हाल बेहाल है। दिन पर दिन स्थिति दयनीय होती जा रही है। हाड़तोड़ मेहनत के बाद भी शहद का कारोबार घाटे का सौदा बनता जा रहा है। 

लागत अधिक और मुनाफा कम होने से मधुमक्खी पालकों का इस कारोबार से मोह भंग होता जा रहा है। काफी मशक्कत के बाद तैयार होने वाले शहद की बिक्री भी समय से नहीं हो पा रही है। औने-पौने दामों में ट्रेडर्स के हाथों मधुमक्खी पालक शहद बेचने को मजबूर हैं, लेकिन इसके बाद भी उनकी समस्या को कोई सुनने वाला नहीं है।

भोजीपुरा क्षेत्र के टांडा इनायतुल्ला गांव के आलोक पाल, आर्यन पाल, सुरजीत कुमार, जगपाल, द्वारिका प्रसाद आदि मधुमक्खी पालकों के मुताबिक आठ-दस साल पहले इस कारोबार में काफी मुनाफा था। शहद तैयार होने से पहले डिमांड आ जाती थी, लेकिन तीन वर्षों से स्थिति खराब है। दिन-रात मेहनत कर शहद को तैयार करते हैं, मगर इसके बाद भी बिक्री नहीं हो पा रही है। पहले शहद प्रति किलो 160 रुपये में बिकता था, अब 100 रुपये के दाम भी नहीं मिल पा रहे हैं।

घर में कई-कई क्विंटल शहद डंप है। न तो कोई संपर्क कर रहा है और न ही कहीं से डिमांड आ रही है। आलोक पाल के अनुसार ट्रेडर्स शहद लेना तो चाहते हैं, लेकिन उचित दाम नहीं देते हैं। वे मधुमक्खी पालकों की मजबूरी का फायदा उठाकर औने-पाैने दामों में शहद को खरीदने के फिराक में हैं। कारोबार में घाटा हो रहा है। मधुमक्खी को पालने में लागत कई गुना बढ़ गई है। मजदूरी भी बढ़ी है, मगर शहद का उचित दाम नहीं मिलने से किसान दूरी बनाने लगे हैं।

केस-1
जहां 30 से 35 लोग करते थे कारोबार, वहां आधी रह गई संख्या
भोजीपुरा के गांव टांडा इनायतुल्ला में तीन साल पहले अकेले 30 से 35 लोग मधुमक्खी पालने काम करते थे, लेकिन मौजूदा समय में ऐसे लोगों की संख्या 17-18 ही बची है। बहेड़ी के सेंतरा गांव में भी काफी लोग मधुमक्खी पालन का काम करते थे। यहां भी संख्या काफी कम हो गई है। शाही और मीरगंज क्षेत्र में भी काफी लोग इस काम को करते थे।

कुरुक्षेत्र से लेकर उत्तराखंड तक में मिठास घोलता था बरेली का शहद
बरेली में बनने वाला शहद न सिर्फ प्रदेश के तमाम जिलों में बल्कि कुरुक्षेत्र से लेकर उत्तराखंड में भी बिकता था। शहद तैयार होते ही ट्रेडर्स खरीदने के लिए बरेली आ जाते थे, मधुमक्खी पालकों के अनुसार बरेली में कोई ट्रेडर्स नहीं है। पड़ोसी जिला बदायूं, रामपुर, सहारनपुर, हरियाणा के कुरुक्षेत्र, उत्तराखंड और राजस्थान तक के ट्रेडर्स संपर्क में रहते थे। शहद तैयार होने की देरी रहती थी, बिक्री फटाफट हो जाती थी।

लाइसेंस मिलना भी आसान नहीं
दिल्ली में नेशनल बी बोर्ड से मधुमक्खी पालकों को लाइसेंस मिलता है, लेकिन लाइसेंस मिलना भी आसान नहीं है। इसमें बरसों लग जाते हैं। इसी वजह से जिले में कुछ लोग ही लाइसेंस धारक हैं, बाकी बिना लाइसेंस के ही काम करते हैं। मधुक्रांति बीफार्मर्स वेल्फेयर सोसायटी के सचिव के मुताबिक इसीलिए संस्था बनाई गई।

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