कैंसर, अल्जाइमर और पार्किंसंस के उपचार में मिले नए विकल्प, IIT Kanpur के चमात्कारिक बायोमेडिकल शोध ने संभावनाओं के खोले नए द्वार

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Published By Nitesh Mishra
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आईआईटी कानपुर के चमात्कारिक बायोमेडिकल शोध ने संभावनाओं के खोले नए द्वार।

आईआईटी कानपुर के चमात्कारिक बायोमेडिकल शोध ने संभावनाओं के खोले नए द्वार। कैंसर, अल्जाइमर और पार्किंसंस के उपचार में भी नए विकल्प मिले।

कानपुर, अमृत विचार। यह खबर देश-दुनिया के उन मरीजों के लिए राहत भरी है, जो कैंसर, अल्जाइमर, पार्किंसंस या सिजोफ्रेनिया जैसी गंभीर बीमारी से जूझ रहे हैं। इसके साथही चिकित्सा विज्ञान के लिए नई उम्मीद जगाने वाली है। आईआईटी कानपुर ने बायोमेडिकल शोध में ऐसी ऐतिहासिक सफलता हासिल की है, जिसकी मदद से इन गंभीर बीमारियों के उपचार के नए विकल्प मिल गए हैं।

जी प्रोटीन युग्मित रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) और केमोकाइन रिसेप्टर डी-6 के अध्ययन के साथ संस्थान के शोधकर्ताओं ने कैंसर के अलावा दिमागी रोग अल्जाइमर, पार्किंसंस और सिजोफ्रेनिया के इलाज में संभावनाओं के नए द्वार खोल दिए हैं। 

पूरी दुनिया में कैंसर के साथ ही मस्तिष्क विकार के मरीजों की संख्या लगातार बढ़ रही है। कैंसर जहां जानलेवा है, वहीं अल्जाइमर रोग में मरीज की याददाश्त चली जाती है और उसके व्यक्तित्व में परिवर्तन होने लगता है। पार्किंसंस में कंपन और संतुलन खोने की समस्या होती है, जबकि सिजोफ्रेनिया व्यक्ति की स्पष्ट रूप से सोचने, महसूस करने और व्यवहार करने की क्षमता को प्रभावित करता है।

आईआईटी, कानपुर के जैविक विज्ञान और बायोइंजीनियरिंग विभाग के इन रोगों के निदान से संबंधित शोध को प्रतिष्ठित अंतर्राष्ट्रीय जर्नल ‘साइंस’ में प्रकाशित किया गया है।

संस्थान के निदेशक प्रो. एस गणेश ने बताया कि इस शोध से दुनिया भर में लाखों लोगों के लिए कैंसर और न्यूरोलॉजिकल समस्या में राहत के साथ निदान का समाधान मिल सकेगा। शोध को अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मान्यता मिली है। इस शोध के लिए संस्थान की टीम ने देश- विदेश में जाकर डाटा एकत्र किया। कई देशों के शोधकर्ताओं के साथ मिलकर काम किया।

शोध के निष्कर्षों से खुलेंगे प्रभावी उपचार के नए द्वार

यह शोध अत्यधिक दुख और आर्थिक बोझ का कारण बनने वाली लाइलाज बीमारियों का समाधान प्रदान करने की लक्षित चिकित्सा के लिए नए द्वार खोलने वाला है। शोध टीम के निष्कर्षों के आधार पर दुनिया कैंसर, अल्जाइमर, पार्किंसंस जैसी बीमारियों के प्रभावी उपचार का नया युग देख सकती है।  

शरीर में बीमारी बढ़ने की पड़ताल

जी प्रोटीन-युग्मित रिसेप्टर्स (जीपीसीआर) मस्तिष्क कोशिकाओं की सतह पर छोटे एंटीना की तरह होते हैं। यह मस्तिष्क  के कार्यों में महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं। जब ये रिसेप्टर्स ठीक से काम करना बंद कर देते हैं तो मस्तिष्क कोशिकाओं के बीच संचार में समस्या आने लगती है। इसी कारण अल्जाइमर और पार्किंसंस रोग उत्पन्न होते हैं। इसी तरह केमोकाइन रिसेप्टर डी-6 प्रतिरक्षा प्रणाली की महत्वपूर्ण घटक है। यह सूजन की प्रतिक्रिया में शामिल होता है। कैंसर में रिसेप्टर ट्यूमर के वातावरण को तेजी से प्रभावित करता है, जिससे कैंसर कोशिकाएं बढ़ती और फैलती हैं। 

क्रायो-ईएम तकनीक का कमाल

शोधकर्ताओं ने क्रायोजेनिक-इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी (क्रायो-ईएम) नामक एक उच्च तकनीकी पद्धति का उपयोग करके रिसेप्टर्स के विस्तृत त्रिआयामी चित्र बनाए। इसने उन्हें अणु स्तर पर रिसेप्टर्स के 3-डी चित्रों का अध्ययन करने में विस्तार से सहायता प्रदान की, जिससे रोग की स्थिति पैदा करने वाले इन रिसेप्टर्स के साथ समस्याओं को ठीक करने के लिए नई दवा-जैसे अणुओं की पहचान और डिजाइन करने में मदद मिली

जापान, कोरिया, स्पेन और स्विटजरलैंड का भी योगदान

आईआईटी कानपुर के प्रो. अरुण शुक्ला, डॉ. रामानुज बनर्जी, डॉ. मनीष यादव, डॉ. आशुतोष रंजन, जगन्नाथ महाराणा, मधु चतुर्वेदी, परिश्मिता सरमा, विनय सिंह, सायनतन साहा, गार्गी महाजन की शोध टीम को जापान से फुमिया सानो, वतरू शिहोया और ओसामु नुरेकी बार्सिलोना, स्पेन से टोमाज स्टेपन्यूस्की और जाना सेलेंट बेसल, स्विट्जरलैंड से मोहम्मद चामी और कोरिया गणराज्य के सुवोन से लोंघन डुआन और का यंग चुंग ने भी सहयोग प्रदान किया।

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