हल्द्वानी: उत्तराखंड की जेल में अंग्रेजों का रूल, पांच असलहों से पहरेदारी
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हल्द्वानी, अमृत विचार। हल्द्वानी में अंग्रेजों की बनाई जेल का विस्तार तो कर लिया गया, लेकिन अब भी कई नियम अंग्रेजों के बनाए ही चल रहे हैं। इन्हीं नियमों से एक है असलहा। ब्रिटिश काल में भी जेल में आठ असलहे रखने की अनुमति थी और अब भी यही नियम चल रहा है। हालांकि इन्हें 8 के बजाय पांच असलहा कहना ठीक होगा, क्योंकि काम के पांच ही हैं। वर्तमान जेल में क्षमता से ढाई गुना कैदी और बंदी बंद हैं। ऐसे में सुरक्षा पर सवाल उठना वाजिब है।
हल्द्वानी उपकारागार के सटी ब्रिटिश कालीन जेल आज भी मौजूद है। इसी जेल में अंग्रेजों ने सुल्ताना डाकू को भी कैद किया गया था। हल्द्वानी उप कारागार का इतिहास वर्ष 1903 का है। तब इस जेल की क्षमता 71 कैदियों की थी और इसी आधार पर सुरक्षा व्यवस्था को लेकर मैन्युअल तैयार किया गया था।
चार मस्कट बंदूक, लेकिन काम की सिर्फ एक
जेल की सुरक्षा के लिए वर्तमान में जेल प्रशासन के पास एक पिस्टल है. जो जेल अधीक्षक के लिए है। तीन रायफल, जो जेल के मुख्य द्वार पर तैनात संतरी संभालते हैं। सदियों पहले इस्तेमाल की जाने वाली चार मस्कट बंदूक भी हैं, लेकिन उनमें से केवल एक ही चलने की स्थिति में है। हालांकि जरूरत के वक्त ये मस्कट भी काम आएगी या नहीं, कहा नहीं जा सकता।
बंदी रक्षकों के पास हथियार के नाम पर लाठी
बंदी रक्षकों के पास लाठियां ही सुरक्षा का सहारा हैं। जेलकर्मियों के पास चेस्ट गार्ड और हेलमेट तक नहीं हैं। दो वर्ष पहले शासन ने जेल के सुधारीकरण, सुरक्षा इंतजाम पुख्ता करने के निर्देश दिए थे। कोविड के चलते प्रक्रिया लटक गई। बताया जा रहा है कि असलहों की मांग जेल मुख्यालय भेजी गई है। वहां से अनुमति आते ही आधुनिक असलहे और सुरक्षा उपकरण मिलेंगे।
हमारी तरफ से सुरक्षा उपकरणों की मांग मुख्यालय को भेज दी गई है। नए वित्तीय सत्र में निरीक्षण के बाद व्यवस्थाएं बदलेंगी। नए सुरक्षा उपकरणों के जल्द मिलने की उम्मीद है। फिलहाल मौजूदा उपकरणों से भी सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत बनाया जा रहा है।
- प्रमोद पांडे, जेल अधीक्षक