प्रयागराज: हाईकोर्ट ने मनमाना आदेश पारित करने पर अधिकारियों को लगाई फटकार

प्रयागराज: हाईकोर्ट ने मनमाना आदेश पारित करने पर अधिकारियों को लगाई फटकार

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उपहार विलेख पर स्टांप ड्यूटी की मांग के मामले पर विचार करते हुए कहा कि संबंधित अधिकारियों ने मामले से जुड़े अन्य निर्णय पर ध्यान दिए बिना अपनी सनक और पसंद के आधार पर आदेश पारित कर दिया। प्राधिकारियों की यह जिम्मेदारी थी कि वह प्रासंगिक निर्णय पर पूर्ण रूप से विचार करते हुए एक तर्कसंगत आदेश पारित करें।

अधिकारियों को उनके द्वारा की जा रही अर्ध न्यायिक गतिविधियों में सतर्कतापूर्वक अपने न्यायिक दृष्टिकोण का इस्तेमाल करने का निर्देश देते हुए कोर्ट ने विभाग को याची द्वारा जमा की गई राशि को 5% ब्याज के साथ 6 सप्ताह के भीतर याची को वापस करने का निर्देश दिया है।

उक्त आदेश न्यायमूर्ति शेखर बी सराफ ने झांसी निवासी शील मोहन बंसल की याचिका को स्वीकार करते हुए पारित किया। कोर्ट ने माना कि भारतीय संविधान की धारा 226 के तहत दर्ज वर्तमान याचिका संबंधित प्राधिकारियों के लापरवाह रवैया को दर्शाती है।

दरअसल अधिकारियों ने इस आधार पर भूमि के एक भूखंड के उपहार विलेख के संबंध में अतिरिक्त स्टांप शुल्क का दावा किया है कि भूमि की क्षमता से भूमि के बाजार मूल्य में वृद्धि होगी यानी संबंधित भूमि के 200 मीटर के भीतर आवासीय क्षेत्र है और साथ ही 50 मीटर के भीतर एक पेट्रोल पंप है। अंत में कोर्ट ने निष्कर्ष निकाला कि जब उपहार विलेख स्वीकार और पंजीकृत कर लिया गया है तब उस दशा में भारतीय स्टांप अधिनियम, 1899 की धारा 47-ए के तहत अतिरिक्त स्टांप ड्यूटी की मांग नहीं की जा सकती है, जबकि अधिकारियों ने उक्त प्रावधान के आधार पर ही उपहार विलेख पर मनमानी स्टांप ड्यूटी लगाई थी।

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