Exclusive: उन्नाव में विश्वनाथ ने महापुरुषों की प्रतिमा स्थापना में लगा दी पूरी कमाई...पत्नी सहित स्वयं भी हुए स्थापित
उन्नाव में विश्वनाथ ने महापुरुषों की प्रतिमा स्थापना में लगा दी पूरी कमाई
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उन्नाव, (धर्मशील शुक्ला)। अंग्रेजी सहित दो विषयों से परास्नातक दस्तावेज नवीस विश्वनाथ ने दलित उद्धारक सोच रखने वाले संतों, माता-पिता व सास-ससुर का मंदिर निर्मित कराने में जीवन में कमाई पूंजी खर्च करने से गुरेज नहीं किया, जहां समाज में जन्मी लोना देवी, संत रविदास, कबीर साहब सहित माता-पिता और सास-ससुर की प्रतिमाएं भी स्थापित हैं।
करीब 81 बसंत देख चुके दस्तावेज नवीस के मुताबिक बच्चों की परिवरिश और शिक्षित बनाने के बाद उन्होंने आत्मसुख के लिए मंदिर बनवाया, क्योंकि सामर्थ्यवान बच्चों के लिए संचित पूंजी मायने नहीं रखती। वह दावे के साथ कहते हैं लोनादेवी संत रविदास की पत्नी थीं।
कबीरपंथी परिवार होने से गांव में प्रायः साधुओं की मंडली पहुंचती रहती थी, जो डेरा जमाकर कबीरवाणी का पाठ करते थे। इसलिए सत्य-असत्य के प्रति रुचि बनी रही, जिससे पेशे से दस्तावेज नवीस होने के बावजूद स्वाध्याय जारी रखा। बच्चों के शिक्षित हो जाने पर बुजुर्गों की स्मृतियां संजाने की इच्छा बलवती होती रही।
इसलिए निवास स्थान के भूतल के एक हिस्से पर बौद्ध विहार स्थापित कर लोनी देवी सहित कबीर साहब की प्रतिमा स्थापित कराई। वह बताते हैं कि लोना देवी का जिक्र परिवार सहित बिरादरी में गाए जाने वाले लोकगीतों में अब भी होता है। साथ ही जिले में लोन नदी का अस्तित्व भी रहा है।
इसलिए लोना देवी के विषय में जानकारी जुटाने पर ज्ञात हुआ कि वह संत शिरोमणि रविदास की पत्नी हैं। वह मीरा को संत शिरोमणी की शिष्या बताते हुए कहते हैं कि इसीलिए यहां तीनों प्रतिमाएं स्थापित कराई हैं। इसी तरह समाज से जुड़े सम्बूक ऋषि, अनुसइया माता, शेवरी व रूपा ऋषि की प्रतिमा भी स्थापित हैं। पिता गजराज व मां रहासा के साथ पत्नी पिता कल्लू व मां की प्रतिमाओं को सम्मान दिया।
स्वालंबी हैं सभी उत्तराधिकारी
दस्तावेज नवीस का एक बेटा प्रवीन दत्त आयकर अधिकारी पद पर तैनात है, जबकि दूसरे बेटे सुनील दत्त को उन्होंने अपने पेशे से जोड़ रखा है। इसी तरह बेटियां ऊषा, निशा व आशू भी अपने-अपने परिवारों में सुखी व स्वालंबी जीवन यापन कर रही हैं।
प्रतिदिन चार घंटे देते हैं समय
बौद्ध विहार का निर्माण कराने के साथ विश्वनाथ प्रतिदिन करीब चार घंटे का समय यहां देते हैं। उन्होंने बताया कि नियमित रूप से सुबह-शाम करीब सात से आठ बजे तक यहां स्थापित प्रतिमाओं की आरती व स्मरण करते हैं। इसके अलावा बाबा साहब की जयंती आदि अवसर अन्य आयोजन भी होते हैं।
पत्नी सहित स्वयं भी हुए स्थापित
विश्वनाथ ने जीवित रहते स्वयं सहित पत्नी की प्रतिमा भी यहां स्थापित करा रखी है। उन्होंने बताया कि स्थापित मूर्तियों के पास हमेशा नहीं बने रहा जा सकता है। इसलिए प्रतिमा रूप में निरंतर सानिध्य बनाए रखने के लिए ऐसा किया है। इससे जीवन न रहने के बाद भी बौद्ध विहार में वह स्थापित प्रतिमाओं के साथ बने रह सकेंगे।
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