Unnao में ऐसा रहस्यमयी मंदिर जहां रोज सुबह पूजित मिलता है शिवलिंग; नजारा देखकर सभी हो जाते हैरान...द्वापर युग से जुड़ा मंदिर का इतिहास

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Published By Deepak Shukla
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द्वापर युग से जुड़ा है बिल्लेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास

उन्नाव, अमृत विचार। भगवान भोलेनाथ का प्रसिद्ध बिल्लेश्वर महादेव मंदिर का इतिहास द्वापर युग से जुड़ा है। इस प्राचीन मंदिर में पूजा अर्चना कर सच्चे मन से मांगी गई भक्तों की हर मुराद पूरी होती है। यहां की विशेषता यह है कि यहां पर शिवलिंग रोजाना सुबह पूजित मिलता है। इससे यहां पर भक्तों की आस्था और भी बढ़ जाती है।

उन्नाव में शिव मंदिर 2

बता दें पुरवा-मौरावां रोड पर मुख्यालय से 32 किमी दूर पुरवा कस्बे के पास स्थित द्वापर में महाभारतकालीन बिल्लेश्वर महादेव मंदिर भक्तों की आस्था का केंद्र बना हुआ है। खास बात यह है कि मंदिर परिसर में स्थापत्यकला व द्वादश ज्योतिर्लिंग के प्रतिरूप विराजमान देवाधिदेव महादेव भक्तों को मनवांछित फल प्रदान करते हैं। सावन माह और शिवरात्रि में कांवड़ यात्रियों की उपस्थिति में महाआरती के बाद प्रसाद वितरण होता हैं। 

इस मंदिर का इतिहास द्वापर युग में महाभारत काल से जुड़ा है। बुजुर्ग बताते हैं कि भगवान श्रीकृष्ण ने खुद मिट्टी का शिवलिंग बनाकर यहां पूजन किया था। महाभारत युद्ध शुरू होने से पूर्व भगवान श्रीकृष्ण अर्जुन के साथ राजा मौरध्वज के यहां परीक्षा लेने के लिए राज्य में गये। जो आज मौरावां नाम से जाना जाता है। यात्रा के दौरान उनका काफिला पुरवा कस्बे के बाहर एक घने जंगल में रुका था। सूर्य देव अस्ताचल की ओर पहुंच चुके थे। 

संध्या वंदन का समय हो गया था। जिस पर श्रीकृष्ण ने अर्जुन से जल की व्यवस्था करने को कहा। लेकिन जंगल में आसपास जल की व्यवस्था न होने पर अर्जुन ने धरती में तीर चला दिया। जिससे जमीन से जल की तेज धारा निकली। उसकी तीब्रता रोकने के लिए धनुष रख दिया था। बिल्लेश्वर मंदिर के सामने धनुष के आकार का बना तालाब आज उन्हीं घटनाओं का प्रमाण है। धनुष आकार का तालाब आज भी वहां स्थित है। 

यह तालाब आज भी लोगों के लिए आस्था का केंद्र बना हुआ है। सावन माह में स्थानीय लोगों के अलावा आसपास के जिलों से भक्त शिवलिंग का जलाभिषेक करने आते हैं। सावन के हर सोमवार को मंदिर परिसर में भक्तों के लिए लाइन लगाकर उन्हें भोलेनाथ के दर्शन कराने की व्यवस्था की जाती है। इस मौके पर भंडारा भी आयोजित होता है। इसके साथ ही पेयजल की भी व्यवस्था की जाती है। मंदिर की सफाई व्यवस्था का भी ध्यान रखा जाता है। पुलिस प्रशासन भी तैनात रहता है।

शिवलिंग की पूजा बनी है रहस्य 

बुजुर्ग बताते हैं कि बिल्व पत्र की झाडिय़ों में बंजारों की गाय द्वारा दूध गिराने पर बंजारों ने शिवलिंग खोजा था। आश्चर्यजनक बात यह है कि शिवलिंग की प्रथम पूजा का रहस्य आज तक कोई नहीं जान पाया। मान्यता यह है कि अजर अमर अश्वत्थामा द्वारा शिवलिंग की प्रथम पूजा प्रातः काल ही कर दी जाती है। यही कारण है कि भक्तगण सुबह चार बजे के बाद ही मंदिर में दर्शन के लिए जाते हैं। मंदिर के पुजारी गुड्डू गोस्वामी बाबा बताते हैं कि शिवलिंग सुबह पूजित मिलता है। 

तालाब में स्नान करते हैं श्रद्धालु 

मुख्य मंदिर के एक ही चबूतरे पर चारों ओर अर्धचंद्राकार रचना में एक दर्जन मंदिर बने हैं। मुख्य मंदिर के सामने धनुषाकार सरोवर में कमल के पुष्पों की छटा बड़ी ही दर्शनीय रहती है। तालाब को पाप को हरने वाला कुंड कहा जाता है। जिसमे तीन तरफ पक्की सीढिय़ां बनी हैं। यहां आने वाले भक्त सरोवर में स्नान करना नहीं भूलते हैं। सरोवर के बीच में मंदिर व तीर आकार का एक पुल बना है। 

प्रदेश सरकार ने जीर्णोद्धार के लिये स्वीकृत किये थे 50 लाख 

कुछ वर्ष पूर्व प्रदेश सरकार द्वारा अति प्राचीन शिव मंदिर के जीर्णोंद्धार के लिए 50 लाख रुपये स्वीकृत किये गये थे। जिसमें सीढ़ियों में टाइल्स और बरादरी बनवाने के साथ अन्य कार्य कराए गए थे। जिससे मंदिर परिसर में लगी लाइटों व सावन मास और शिवरात्रि सहित अन्य पर्व पर मन्दिर की सजावट से मंदिर की शोभा बढ़ जाती हैं। हालांकि स्थानीय लोगों का आरोप है कि पुलिस प्रशासन के रात्रि में न रुकने से यहां अराजक तत्वों का जमावड़ा लगा रहता है।

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