सरकार मनरेगा सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं का ‘गला घोंटने’ की कोशिश कर रही है: माकपा

सरकार मनरेगा सहित अन्य कल्याणकारी योजनाओं का ‘गला घोंटने’ की कोशिश कर रही है: माकपा

नई दिल्ली। मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) ने आरोप लगाया है कि सरकार समय-समय पर बजट आवंटन में कटौती करके ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के साथ-साथ अन्य कल्याणकारी कार्यक्रमों का ‘‘गला घोंटने’’ की कोशिश कर रही है।

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वाम दल के मुखपत्र ‘पीपुल्स डेमोक्रेसी’ के नवीनतम संपादकीय में इस साल मोबाइल आधारित ऐप्लिकेशन ‘नेशनल मोबाइल मॉनिटरिंग सर्विस (एनएमएमएस)’ के माध्यम से योजना के तहत श्रमिकों द्वारा अनिवार्य रूप से उपस्थिति दर्ज किये जाने की शुरुआत की भी आलोचना की गई है।

इसमें दावा किया गया है, ‘‘इससे देशभर के कार्यस्थलों पर अव्यवस्था फैल गई है। खराब इंटरनेट कनेक्टिविटी के साथ, श्रमिकों को केवल अपनी उपस्थिति दर्ज कराने के लिए कई घंटों का समय लगने की सूचना है। यह उनके लिए जीवन और मरण का मुद्दा है, क्योंकि अपनी उपस्थिति दर्ज नहीं कराने का मतलब उन्हें उस दिन के वेतन का नुकसान होगा।’’

माकपा के मुखपत्र में कहा गया है कि इस तरह के कदमों को थोपना इस सरकार की एक चाल रही है। केंद्र की भाजपा सरकार पर निशाना साधते हुए इसमें कहा गया है कि 2014 में जब से नरेन्द्र मोदी सरकार सत्ता में आई है, तब से वह ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) का गला घोंटने की कोशिश कर रही है।

संपादकीय में यह भी दावा किया गया है कि इंटरनेट कनेक्टिविटी के मुद्दों के अलावा, बेमेल आधार, बेमेल बैंक खाता और फिंगरप्रिंट पहचान नहीं होने सहित कई ‘‘त्रुटियों’’ के कारण हजारों लोग सार्वजनिक वितरण प्रणाली (पीडीएस) राशन से वंचित हैं। इसमें कहा गया है कि मनरेगा में कामगारों को इसी तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ रहा है।

संपादकीय में यह भी कहा गया है कि इस योजना के तहत श्रमिकों को दिए गए काम के दिनों की औसत संख्या इस वर्ष सिर्फ 47 थी, हालांकि इस कानून के तहत न्यूनतम 100 दिनों के लिए काम मिलना अनिवार्य है। इसमें दावा किया गया है कि आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार, पिछले वर्ष के 10.6 करोड़ की तुलना में चालू वित्त वर्ष में लगभग 8.6 करोड़ लोगों को इस योजना के तहत काम मिला, जो कि पिछले वर्ष की तुलना में दो करोड़ या लगभग 20 प्रतिशत कम है।

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