हल्द्वानी: क्या आपने सुनी है महासू देवता और नगरास के फूलों की कहानी....!

हल्द्वानी: क्या आपने सुनी है महासू देवता और नगरास के फूलों की कहानी....!

हल्द्वानी, अमत विचार। जनजातीय क्षेत्र जौनसार-बावर के हनोल स्थित पांडव कालीन महत्व के मंदिर में विराजमान 'महासू देवता' लाखों श्रद्धालुओं की आस्था का केंद्र है। क्षेत्रवासियों के कुल देवता महासू मंदिर के पास स्थित फुलवारी, जिसे स्थानीय भाषा में कुंगवाड कहते हैं की कहानी काफी रोचक है। 

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दरअसल इस के पीछे एक कहानी काफी प्रचलित है कि सैकड़ों वर्ष पहले महासू मंदिर हनोल के देव फुलवारी की खुदाई एक जंगली जानवर रात में आकर करता था। कहते हैं प्रतिवर्ष सावन मास के 25 गते की रात को ये जंगली जानवर हनोल मंदिर के देव फुलवारी को रातों रात अपने पंजों से खोदकर सुबह होने से पहले गायब हो जाता था। गांव के लोग जब सुबह उठते थे तो देव फुलवारी की खुदाई देख हैरान रह जाते। 

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बताते हैं यहां की खुदाई का ये सिलसिला कई वर्षों तक यूं ही चलता रहा। मान्यतानुसार स्थानीय तांदूर मुहासों ने इसकी जासूसी करना शुरू कर दी। सावन मास के 25 गते की रात्रि को तांदूर मुहासे हथियारों से लैस होकर मंदिर के पास घात लगाकर बैठे रहे। तभी जंगली सुअर आकर पंजों से देव फुलवारी की खुदाई करने लगा। तांदूर मुहासों ने जंगली जानवर पर हमला बोल उसे मार गिराया, जिससे कई वर्षों तक देव फुलवारी की खुदाई नहीं होने से नगरास के फूल नहीं उग पाए।

परिणाम स्वरुप देवता का दोष तांदूर मुहासों को झेलना पड़ा। दोषमुक्त होने के लिए तांदूर मुहासों ने महासू देवता की शरण में आकर फरियाद की। कहते हैं देवता ने उन्हें सिर्फ एक शर्त पर माफी दी कि जंगली जानवर के बजाय अब तांदूर मुहासे फावड़े-कुदाल से उसी तिथि को देव फुलवारी की खुदाई करेंगे। देवता के कहे अनुसार तांदूर मुहासे दोष से बचने के लिए हर साल 25 गते सावन मास को अपने घरों से फावड़े-कुदाल लेकर देव फुलवारी की खुदाई करने हनोल मंदिर आते हैं, जहां राजगुरु के शंखनाद करने से ढोल-बाजे के साथ यहां की खुदाई परंपरागत तरीके से की जाती है।

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करीब एक बीघा जमीन की खुदाई करने में जुटे 10 से 15 लोगों को फुलवारी खोदने में पांच से सात घंटे लगते हैं। खुदाई के बाद महासू मंदिर की देव फुलवारी में अक्टूबर से जनवरी माह के बीच सफेद व हल्के पीले रंग के सुगंधित नगरास के फूल उगते हैं। इसकी भव्यता देखते ही बनती है। देव फुलवारी के खुदाई की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। यहां हर वर्ष सावन मास के 25 गते को देव फुलवारी की खुदाई होने के बाद अक्टूबर से नगरास के फूल उगने शुरू होते हैं, जिसकी पातरी तीन माह तक हर दिन मंदिर में शाम को होने वाली चौथे पहर की पूजा में चढ़ती है। बिना बीज-पौध लगाए नगरास के सुगंधित फूल खिलने को लोग महासू देवता का दैविक चमत्कार मानते हैं। बताते हैं कि हनोल मंदिर के अलावा नगरास फूल देवलाड़ी माता और बाशिक महासू मंदिर मैंद्रथ, पवासी महासू मंदिर देवती-देववन और कुल्लू कश्मीर में उगते हैं।