बरेली: खाद्य तेलों के 60 फीसदी नमूने मिलावटी और घटिया, बाजार में 60 फीसदी खाद्य तेल मिलावटी

सिस्टम की नजर सिर्फ जीएसटी पर, तीन सालों में एफएसडीए की ओर से कराई गई सैंपलों की जांच का नतीजा पेश कर रहा है मिलावट की भयावह तस्वीर, रिफाइंड पाम ऑयल और ब्रॉन ऑयल के तीन सालों में भरे गए 178 सैंपल,103 सैंपल निकले मिलावटी

बरेली: खाद्य तेलों के 60 फीसदी नमूने मिलावटी और घटिया, बाजार में 60 फीसदी खाद्य तेल मिलावटी

बरेली,अमृत विचार : जीएसटी कलेक्शन के लगातार बढ़ते आंकड़ों पर वाहवाही लूट रही अफसरशाही खाद्य तेलों में बड़े पैमाने पर मिलावट से बेपरवाह है। खाद्य तेलों में मिलावट के पिछले तीन सालों के सरकारी आंकड़े ही बता रहे हैं कि यह समस्या कितनी भयावह हो चुकी है। इस बीच खाद्य सुरक्षा एवं औषधि प्रशासन (एफएसडीए) की ओर से लैब में जांच के लिए भेजे गए रिफाइंड पाम ऑयल और राइस ब्रांज ऑयल के 60 फीसदी सैंपल मिलावटी और घटिया पाए गए हैं।

खाद्य तेल आम आदमी की सेहत का किस कदर सत्यानाश कर रहे हैं, इसकी पुष्टि सरकारी आंकड़ों से ही हो रही है। एफएसडीए का रिकॉर्ड बता रहा है कि बरेली में लोगों को किस कदर मिलावटी तेल खिलाया जा रहा है। इस रिकॉर्ड के मुताबिक एफएसडीए ने जनवरी 2020 से मार्च 2023 तक रिफाइंड पाम ऑयल और राइस ब्रान ऑयल के 178 नमूने लेकर जांच के लिए भेजे थे।

लैब से आई रिपोर्ट के मुताबिक इनमें से 103 तेल के नमूने मिलावटी, कम गुणवत्ता के यानी घटिया और मिसब्रांड पाए गए। रिकॉर्ड के मुताबिक 2021 में एफएसडीए ने रिफाइंड और ब्रॉन ऑयल के 56 नमूने भरकर जांच के लिए भेजे थे। इसके बाद 2022 में 74 और 2023 में अब तक 48 नमूने लेकर उनकी जांच कराई है।

चिंताजनक बात यह है कि रिफाइंड पाम ऑयल और राइस ब्रांज ऑयल का सर्वाधिक इस्तेमाल आम लोगों के घरों में होता है। सरकार खाद्य तेल का कारोबार करने वालों से जीएसटी तो वसूल कर रही है लेकिन तेल में मिलावट और उसकी गुणवत्ता का ख्याल किसी स्तर पर नहीं रखा जा रहा है।

तीन सालों में पकड़े गए मिलावट के सभी मामले न्यायालय में बताए जा रहे हैं जिनमें अब तक कोई निर्णय नहीं हो पाया है। उधर, अफसरशाही का हाल यह है कि इतने बड़े पैमाने पर खाद्य तेलों में मिलावट मिलने के बाद भी मिलावटखोरों के खिलाफ कोई सख्त कार्रवाई नहीं हुई है।

कंपनियों के दावों पर अगर आंख मूंदकर, यकीन किया तो बन जाएंगे हृदयरोगी: बरेली जैसे शहर में भी रिफाइंड पाम ऑयल और राइस ब्रान ऑयल की सालाना खपत हजारों टन में है।कंपनियां ग्राहकों को लुभाने के लिए अपना ब्रांड बाजार में उतारने के साथ करोड़ों रुपये विज्ञापनों पर फूंकती हैं। खाद्य तेलों में कई तरह विटामिन होने के साथ सेहतमंद रखने के तमाम गुणों का भी दावा किया जाता है।

ज्यादातर लोग रिफाइंड और राइस ब्रॉन ऑयल का इस्तेमाल उसे कोलेस्ट्रॉल फ्री मानकर करते हैं लेकिन असलियत में यह तेल लोगों को बीमार बना रहा है। डॉक्टरों का मानना है कि जो लोग पहले से बीमार हैं, ऐसा तेल खाकर उनकी हालत और ज्यादा गंभीर हो सकती है।

किन कंपनियों के तेल में मिलावट, बताने को तैयार नहीं एफएसडीए के अफसर: बताया जा रहा है कि रिफाइंड पाम ऑयल और ब्रॉन ऑयल के जिन नमूनों में मिलावट पाई गई है, उनमें कई मशहूर कंपनियों के भी हैं लेकिन एफएसडीए के अफसर इन कंपनियों के नाम सार्वजनिक करने को तैयार नहीं हैं।

कुछ समय पहले इस संबंध में एक आरटीआई दाखिल कर कंपनियों के नामों की जानकारी मांगी गई थी लेकिन अफसरों के इसके जवाब में गोलमोल सूचना दे दी और मिलावट के साथ घटिया गुणवत्ता का तेल बेचने वाली कंपनियों का नाम बताने से कन्नी काट ली।

आइसक्रीम फैक्ट्रियों पर छापे मारने की तैयारी: एफएसडीए जल्द ही आइसक्रीम फैक्ट्रियों पर छापे मारकर सैंपल भरने की तैयारी कर रहा है। कहा जा रहा है कि गर्मी के सीजन में तमाम अवैध फैक्ट्रियां बगैर गुणवत्ता और मानक सुनिश्चित किए आइसक्रीम का उत्पादन कर रही हैं। इनके खिलाफ जल्द ही अभियान शुरू होगा। इसके अलावा सड़ेगले फलों की बिक्री रोकने के लिए अभियान चलाया जाएगा।

वैसे उत्तर भारत का प्रमुख तेल सरसों का तेल है। अगर कोलस्ट्रॉल की दिक्कत नहीं है तो सरसों का तेल इस्तेमाल किया जा सकता है लेकिन कोलस्ट्रॉल की दिक्कत से बचने के लिए रिफाइंड ऑयल खाने की सलाह दी जाती है। अगर इस तेल में भी मिलावट है तो सेहत को गंभीर नुकसान पहुंच सकता है। - डॉ. अनुपम शर्मा, सीनियर फिजीशियन

पिछले तीन साल में राइस ब्रॉन ऑयल और पाम ऑयल के लिए गए नमूनों में से आधे से ज्यादा मिलावटी या घटिया पाए गए हैं। मिलावट के खिलाफ अभियान चलता रहता है। - धर्मराज मिश्र, सहायक आयुक्त खाद्य द्वितीय

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