मदद के नए रास्ते

मदद के नए रास्ते

भारत बड़ी शक्तियों के साथ स्वयं को सुपर पावर के रूप में स्थापित करने का संतुलित प्रयास कर रहा है। इस बात में भी कोई शक नहीं है कि भारत शीघ्र ही विश्व की चौथी बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। इसी के चलते भारत पड़ोसी देशों को प्राकृतिक आपदाओं से बचाने में मदद करेगा और बड़े भाई की भूमिका निभाएगा।

विश्व मौसम संगठन की रिपोर्ट के अनुसार प्राकृतिक आपदाओं की संख्या में तेजी आई है। 1970 से 2019 के बीच पानी संबंधी आपदाओं में पांच गुना बढ़ोतरी हुई है। 1970 से 2021 के बीच पानी संबंधी आपदाओं में 20 लाख लोगों की मौत हुई है और 4.3 ट्रिलियन डॉलर का नुकसान हुआ है। विश्व मौसम संगठन (डब्ल्यूएमडी)की रिपोर्ट के अनुसार, 101 देशों में अभी भी मौसम को लेकर प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली मौजूद नहीं है। आशंका है कि 2030 तक दुनिया में 560 मध्यम से बड़ी आपदाएं हर साल आ सकती हैं। डब्ल्यूएमडी उन विश्वव्यापी प्रयासों का समन्वय करता है जो सटीक और समय पर मौसम के पूर्वानुमान के उत्पादन के लिए आवश्यक हैं।

सोमवार को भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) के प्रमुख मृत्युंजय महापात्र ने कहा है कि नेपाल, मालदीव, श्रीलंका, बांग्लादेश के साथ ही मॉरीशस को भारत समय-पूर्व चेतावनी प्रणाली विकसित करने में मदद कर रहा है ताकि वह मौसम संबंधी प्रतिकूल घटनाओं के कारण जान-माल के नुकसान को कम कर सकें। इन देशों को अपने मौसम संबंधी पर्यवेक्षण को बढ़ाने के लिए वित्तीय और तकनीकि सहायता की जरुरत है। 

गौरतलब है कि संयुक्त राष्ट्र ने सभी के लिए प्रारंभिक चेतावनी नाम से एक अभियान शुरू किया है। यह अभियान साल 2022 में शुरू किया गया था, जिसमें साल 2027 तक सभी देशों को प्राकृतिक आपदाओं से लोगों को बचाने पर केंद्रित किया गया है। अभियान के पहले चरण के तहत चिन्हित किए गए 30 देशों में से पांच की मदद भारत करेगा।

प्रारंभिक चेतावनी प्रणाली खतरे की निगरानी, पूर्वानुमान और भविष्यवाणी, आपदा जोखिम मूल्यांकन, संचार और तैयारी गतिविधियों, प्रणालियों एवं प्रक्रियाओं की एक एकीकृत प्रणाली है जो खतरनाक घटनाओं से पहले आपदा जोखिमों को कम करने के लिए समय पर कार्रवाई करने में सक्षम बनाती है। अब पूर्व चेतावनी प्रणालियों के माध्यम से सबको खतरनाक मौसम, पानी या जलवायु संबंधी घटनाओं से सुरक्षित किया जा सकेगा। राहत की बात है कि जमीन स्तर पर मुश्किलों से जूझ रहे लोगों तक मदद पहुंचाने के लिए कुछ नए रास्ते तलाशे जा रहे हैं। इससे आपदाओं से उभरने के लिए समय रहते बेहतर संसाधनों का निर्माण संभव हो सकेगा।