शाहजहांपुर: इन छह नेताओं ने विधायक से सांसद बन केंद्र की राजनीति में बनाई पहचान

विधायक के बाद चुने गए सांसद, जिले से लेकर प्रदेश और फिर देश में जाने गए

शाहजहांपुर: इन छह नेताओं ने विधायक से सांसद बन केंद्र की राजनीति में बनाई पहचान

शाहजहांपुर, अमृत विचार। शहीदों की नगरी में तमाम ऐसे नेता हुए हैं जिन्होंने जिले से लेकर प्रदेश और फिर देश की राजनीति में अपनी धाक जमाई। पूर्व सांसद प्रेम किशन खन्ना, सत्यपाल यादव, कृष्णाराज, मिथिलेश कुमार और राममूर्ति सिंह वर्मा ऐसे ही नेता हैं, जिन्होंने पहले जिला, फिर प्रदेश और बाद में देश की राजनीति में जगह बनाई।

इनमें सत्यपाल सिंह यादव एक प्रमुख नाम हैं। वह पांच बार विधायक चुने गए और तीन बार सांसद रहे। यह एक रिकार्ड भी है, जिसे अब तक कोई नहीं तोड़ नहीं पाया है। इसके बाद दूसरे नंबर पर राममूर्ति सिंह वर्मा रहे, जो तीन बार जलालाबाद से और एक बार ददरौल से विधायक रहे। राममूर्ति सिंह वर्मा दो बार सांसद भी रहे। हालांकि अब जितेंद्र प्रसाद, सत्यपाल सिंह यादव और राममूर्ति सिंह वर्मा तीनों इस दुनिया में नहीं हैं। हालांकि नौ बार के विधायक सुरेश कुमार खन्ना ने भी 2004 में लोकसभा चुनाव लड़ा था, लेकिन तब वह जीत नहीं पाए थे। 

सत्यपाल सिंह यादवimage demo (90)
सत्यपाल सिंह तिलहर सीट से भारतीय जनसंघ से 1974 में, कांग्रेस के टिकट से 1977 में, 1980 में जेएनपी एससी से, 1985 में लोकदल से और 1991 में जनता दल से विधायक रहे। वह 1989 और 1991 में जनता दल के टिकट से सांसद बने। 1998 में भाजपा के टिकट पर सांसद चुने गए।

राममूर्ति सिंह वर्माimage demo (88)
उन्होंने जलालाबाद सीट से 1989 और 1991 में जनता दल के टिकट से विधायकी जीती। इसके बाद वह 1993 में सपा से विधायक बने। 1912 में सपा ने उन्हें ददरौल से टिकट दिया और चुनाव जीते। इस सफर के बीच में ही राममूर्ति सिंह 1996 में कांग्रेस के टिकट पर सांसद का चुनाव जीते। 2001 में लोकसभा के उपचुनाव में राममूर्ति सिंह वर्मा सपा के टिकट पर सांसद बने थे। राममूर्ति सिंह वर्मा आम आदमी की राजनीति करने में भरोसा करते थे।

सुरेंद्र विक्रम सिंह
सुरेंद्र विक्रम सिंह तिलहर क्षेत्र से राजनीति में सक्रिय हुए। कांग्रेस में उन्होंने कदम रखा। वह 1869 में कांग्रेस के टिकट पर विधानसभा का चुनाव लड़े और जीते। इसके बाद उन्होंने राजनीति में दोबारा पैर जमाने में लंबा संघर्ष करना पड़ा। 1989 में कांग्रेस ने उन पर दोबारा भरोसा जताया और लोकसभा का टिकट दिया। इस चुनाव में वह विजयी रहे थे।

प्रेम किशन खन्नाimage demo (89)
प्रेम किशन खन्ना पहली बार विधायक का चुनाव 1951 में पुवायां विधानसभा सीट से कांग्रेस से लड़े थे। वह जीते थे। इसके बाद प्रेम किशन खन्ना कांग्रेस के टिकट पर लोकसभा का चुनाव लड़े थे, उन्हें उस वक्त 40 हजार 31 वोट मिले थे, दूसरे नंबर पर निर्दलीय एमएस खान को 36 हजार 949 वोट मिले थे। तब कुल 12 प्रत्याशी चुनाव मैदान में थे। कुल वोटर 2 लाख 57 हजार 201 थे, जिसमें से 2 लाख 39 हजार 546 वोट पड़े थे।

मिथिलेश कुमारimage demo (91)
मिथिलेश कुमार ने 2002 में अपने दम पर पुवायां विधानसभा सीट जीती थी। इसके बाद उन्हें 2007 में सपा ने टिकट दिया, तब मिथिलेश कुमार पुवायां से लगातार दूसरी बार विधायक चुने गए। 2009 में लोकसभा चुनाव में सपा ने मिथिलेश कुमार को विधायक रहते हुए टिकट दिया, इसमें भी वह जीत कर संसद पहुंचे, तब उन्होंने विधानसभा की सदस्यता से इस्तीफा दे दिया था, 2009 में पुवायां विधानसभा सीट पर उपचुनाव हुआ था। अभी दो साल पहले मिथिलेश कुमार भाजपा से राज्यसभा सदस्य चुने गए।

कृष्णाराजimage demo (92)
भाजपा के टिकट पर कृष्णाराज पड़ोसी जिले लखीमपुर खीरी की मोहम्मदी विधानसभा सीट से तीन बार विधायक चुनी गईं। इसके बाद वह 2009 में शाहजहांपुर सीट से लोकसभा का चुनाव लड़ीं, लेकिन वह जीत नहीं सकीं। उन्हें तीसरे नंबर पर उन्हें संतोष करना पड़ा था, लेकिन 2014 में भाजपा के टिकट पर कृष्णाराज ने लोकसभा का चुनाव जीता। इस बीच वे एक बार खीरी की कस्ता विधानसभा सीट से किस्मत आजमाने गई थीं, लेकिन वहां वह सफल नहीं हो सकीं थीं।

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