बरेली: मोटापा बांझपन का मुख्य कारण, व्यायाम के साथ खानपान का रखें विशेष ध्यान

तीन दिवसीय 35 वीं प्रादेशिक वार्षिक गाइनी काॅन्फ्रेंस और हैंड्स ऑन कार्यशाला शुरू

बरेली: मोटापा बांझपन का मुख्य कारण, व्यायाम के साथ खानपान का रखें विशेष ध्यान

बरेली, अमृत विचार। बरेली ऑब्स्टेट्रिक्स एंड गाइनोकॉलोजिकल सोसायटी की ओर से शुक्रवार को 35वीं प्रादेशिक वार्षिक गाइनी काॅन्फ्रेंस और हैंड्स ऑन कार्यशाला की शुरुआत की गई। तीन दिवसीय काॅन्फ्रेंस का पहला सत्र बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के रोहिलखंड मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के सभागार में लाइव एंडोस्कोपी और क्रिटिकल केयर विधि के विषय पर हुआ। जिसका आरंभ बरेली इंटरनेशनल यूनिवर्सिटी के कुलाधिपति डॉ. केशव कुमार अग्रवाल, प्रति कुलाधिपति डॉ. अशोक कुमार अग्रवाल, कुलपति डॉ. लता अग्रवाल, प्रति कुलपति डॉ. किरण अग्रवाल, स्त्री एवं प्रसूति रोग विभाग की विभागाध्यक्ष डॉ. कंचन डालमिया, डॉ. कीर्ति दुबे, डॉ. भारती माहेश्वरी ने किया।

इस मौके पर कुलपति डॉ. लता अग्रवाल ने बताया कि कार्यशाला में वरिष्ठ डॉक्टरों ने मानव डमी पर गर्भावस्था के दौरान आने वाली जटिलताओं को किस प्रकार एंडोस्कोपी विधि से दूर किया जाता है, इसके संबंध में अहम जानकारी दी। वहीं, एक रिसोर्ट में  फिटल मेडिसिन, एआरटी कार्यशाला, कॉसमेटिक गाइनिकोलॉजी को लेकर पैनल डिस्कशन में वरिष्ठ डॉक्टरों ने अपने अनुभव साझा किए।

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काॅन्फ्रेंस की आयोजन सचिव डॉ. लतिका अग्रवाल ने बताया कि दिल्ली से आईं वरिष्ठ डॉ. आभा मजूमदार ने कृत्रिम गर्भाधान के बारे में जानकारी दी। उन्होंने बताया कि जिन महिलाओं की महावारी रुक गई हैं, जिनके अंडे विकसित नहीं हो रहे हैं, अब ऐसी दवाएं आ गई हैं, जिनसे अंडे विकसित किए जा सकते हैं। ऐसी महिलाएं भी अब मातृत्व सुख प्राप्त कर सकती हैं। मुंबई से आए डॉ. अमित पटकी ने कहा कि मोटापा आज भी बांझपन का सबसे मुख्य कारण है, इसलिए व्यायाम के साथ खानपान का विशेष ध्यान रखने की जरूरत है। सोसायटी की अध्यक्ष डॉ. मृदुला शर्मा, आयोजन सचिव डॉ. प्रगति अग्रवाल,  डॉ. रश्मि शर्मा,  डॉ. नीरा अग्रवाल, डॉ. भारती सरन, डॉ. गायत्री सिंह समेत अन्य लोग मौजूद रहे।

शादी में देरी करना गर्भधारण में बन रहा बाधक
दिल्ली से आईं वरिष्ठ स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. ज्योत्सना सूरी ने बताया कि अक्सर महिलाएं सही उम्र में शादी नहीं करती हैं, जिसका दुष्प्रभाव उनके मातृत्व सुख में बाधक बन रहा है। तमाम ऐसे मामले सामने आ चुके हैं, जिनमें महिलाओं ने 30 से 35 साल के बाद वैवाहिक जीवन में प्रवेश किया। बाद में गर्भधारण करने में उच्च जोखिम उठाना पड़ा, इसलिए जरूरी है कि सही समय पर शादी कर पहले साल में ही गर्भधारण करें। वहीं इस दौरान संयमित खानपान और दिनचर्या से सामान्य प्रसव होने के भी विकल्प काफी बढ़ जाते हैं।

खांसने पर पेशाब आए, पेट पर पड़ गए हैं निशान तो न घबराएं
गुरुग्राम से आए वरिष्ठ कॉसमेटिक गाइनिकोलॉजी विशेषज्ञ डॉ. नवनीत मग्गों ने बताया कि प्रसव के कुछ साल के बाद ही महिलाओं में खांसते, सोते या फिर कोई शारीरिक गतिविधि करते समय अचानक पेशाब आ जाता है, जिससे महिलाएं घबरा जाती हैं। दूसरों इस बारे में बताने पर भी संकोच करती हैं, इसके साथ ही प्रसव के कुछ दिनों बाद ही पेट पर निशान पड़ने की समस्या महिलाओं में सबसे अधिक है, लेकिन कॉसमेटिक गाइनिकोलॉजी विधि के माध्यम से इन बीमारियों का इलाज संभव है।

अवसाद, करियर की चिंता बिगाड़ रही दांपत्य जीवन
आगरा से आईं वरिष्ठ आईवीएफ विशेषज्ञ डॉ. जयदीप मल्होत्रा ने बताया कि इस बदलते परिवेश में गर्भधारण करना महिलाओं के लिए चुनौती बन गया है। भागदौड़ भरी जिंदगी और करियर की चिंता के चलते अधिकांश महिला और पुरुषों का दांपत्य जीवन प्रभावित हो रहा है।साथ ही फास्ट और जंक फूड, मोबाइल फोन का अत्यधिक उपयोग करना भी शुक्राणुओं की संख्या को प्रभावित कर रहा है, जिसमें सुधार करना बेहद आवश्यक है।

अब गर्भाशय में ही बच्चे को चढ़ाया जा सकता है ब्लड
नई दिल्ली स्थित एम्स की पूर्व प्रोफेसर डॉ. दीपिक डेका ने बताया कि चिकित्सा पद्धति में लगातार विस्तार हो रहा है। अगर किसी महिला के गर्भ में पल रहे शिशु की जांच करने पर वह एनीमिया (खून की कमी) से ग्रसित मिलता है तो इंट्रा यूट्राइन ब्लड ट्रांसफ्यूजन के माध्यम से गर्भाशय में ही बच्चे को ब्लड चढ़ाया जा सकता है। हालांकि, इस विधि से खून चढ़ाने की आवश्यकता अधिकांश जुड़वां बच्चों में होती है। वहीं अधिकांश मरीजों का अल्ट्रासाउंड जांच कराने पर जोर अधिक रहता है। इसलिए बिना कुशल डॉक्टर की सलाह के जांच न कराएं।

कांफ्रेंस में आज
आयोजन सचिव डॉ. लतिका अग्रवाल ने बताया कि शनिवार को पद्मश्री डॉ. ऊषा शर्मा, डॉ. अमित पटकी, डॉ. आभा मजूमदार, डॉ. शिखा सेठ अन्य डॉक्टरों के साथ अपने अनुभव साझा करेंगे।

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