नगालैंड में हत्याओं के बाद पूर्वोत्तर में AFSPA हटाने की मांग ने फिर पकड़ा जोर, जानिए क्या है आफस्पा?

नगालैंड में हत्याओं के बाद पूर्वोत्तर में AFSPA हटाने की मांग ने फिर पकड़ा जोर, जानिए क्या है आफस्पा?

गुवाहाटी/शिलांग। नगालैंड में सुरक्षा बलों द्वारा 13 नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम,1958 को वापस लेने की मांग रविवार को नए सिरे से जोर पकड़ने लगी है। नागरिक संस्था समूह और अधिकार कार्यकर्ता व क्षेत्र के राज नेता वर्षों से अधिनियम की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा ज्यादती का आरोप …

गुवाहाटी/शिलांग। नगालैंड में सुरक्षा बलों द्वारा 13 नागरिकों की हत्या के कारण पूर्वोत्तर से सशस्त्र बल (विशेषाधिकार) अधिनियम,1958 को वापस लेने की मांग रविवार को नए सिरे से जोर पकड़ने लगी है। नागरिक संस्था समूह और अधिकार कार्यकर्ता व क्षेत्र के राज नेता वर्षों से अधिनियम की आड़ में सुरक्षा बलों द्वारा ज्यादती का आरोप लगाते हुए “कठोर” कानून को वापस लेने की मांग कर रहे हैं।

आफस्पा असम, नगालैंड, मणिपुर (इंफाल नगर परिषद क्षेत्र को छोड़कर), अरुणाचल प्रदेश के चांगलांग, लोंगडिंग और तिरप जिलों के साथ असम की सीमा से लगे अरुणाचल प्रदेश के जिलों के आठ पुलिस थाना क्षेत्रों में आने वाले इलाकों में लागू है। क्षेत्र के छात्र संघों के एक छत्र निकाय ‘नॉर्थ ईस्ट स्टूडेंट्स ऑर्गनाइजेशन’ (एनईएसओ) ने कहा कि अगर केंद्र पूर्वोत्तर के लोगों के कल्याण और कुशलता के बारे में चिंतित है तो उसे कानून को निरस्त करना चाहिए।

एनईएसओ के अध्यक्ष सैमुअल बी जेयरा ने कहा, “अन्यथा यह क्षेत्र के लोगों को सिर्फ और अलग-थलग करेगा।” उन्होंने कहा, “सशस्त्र बल पूर्वोत्तर में सजा से मुक्ति के साथ काम कर रहे हैं और उन्हें सशस्त्र बल विशेषाधिकार अधिनियम, 1958 (आफस्पा) के रूप सख्त कानून लागू होने से और बल मिल गया है।” उन्होंने दावा किया कि नगालैंड के मोन की घटना से अतीत की भयानक यादें ताजा हो गईं जब कई मौकों पर सुरक्षा बलों ने उग्रवाद से लड़ने के नाम पर “नरसंहार किया, निर्दोष ग्रामीणों को प्रताड़ित किया और महिलाओं से दुष्कर्म किया”।

टीआईपीआरए के अध्यक्ष प्रद्योत देब बर्मा ने कहा कि जिम्मेदार लोगों को जवाबदेह ठहराया जाना चाहिए और अफस्पा जैसे कानूनों को निरस्त किया जाना चाहिए। असम से राज्यसभा सदस्य और वरिष्ठ पत्रकार अजीत कुमार भुयान ने कहा कि ग्रामीणों की हत्या सभी के लिए आंखें खोलने वाली होनी चाहिए। उन्होंने कहा, “इस तरह की घटनाओं के कारण ही हम कठोर आफस्पा के नवीनीकरण के खिलाफ लगातार विरोध कर रहे हैं। यह पहली घटना नहीं है, लेकिन मुझे उम्मीद है कि यह आखिरी होगी।”

ऑल असम स्टूडेंट्स यूनियन (एएएसयू) के मुख्य सलाहकार समुज्जल कुमार भट्टाचार्य ने कहा, “सुरक्षा बलों की कार्रवाई एक अक्षम्य और जघन्य अपराध है।” उन्होंने आरोप लगाया कि यह घटना क्षेत्र में शांति और स्थिरता के लिए सरकार की अनिच्छा को दर्शाती है। उन्होंने कहा कि नागरिकों की सुरक्षा के लिए “कठोर और अलोकतांत्रिक” आफस्पा को निरस्त किया जाना चाहिए।

‘मणिपुर वीमेन गन सर्वाइवर्स नेटवर्क’ और ‘ग्लोबल अलायंस ऑफ इंडिजिनस पीपल्स’ की संस्थापक बिनालक्ष्मी नेप्राम ने सरकार पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि इस क्षेत्र के नागरिकों और स्थानीय लोगों को मारने में शामिल किसी भी सुरक्षा बल पर कभी आरोप नहीं लगाया गया और न ही गलती के लिये उन्हें सलाखों के पीछे डाला गया। आफस्पा को “औपनिवेशिक कानून” बताते हुए, नेप्राम ने कहा कि यह सुरक्षा बलों को “हत्या करने का लाइसेंस” देता है।

जानिए क्या है आफस्पा
सशस्त्र सेना विशेषाधिकार कानून (आफस्पा) की जरूरत उपद्रवग्रस्त पूर्वोत्तर में सेना को कार्यवाही में मदद के लिए 11 सितंबर 1958 को पारित किया गया था। जब 1989 के आस पास जम्मू-कश्मीर में आतंकवाद बढ़ने लगा तो 1990 में इसे वहां भी लागू कर दिया गया था।

किसी क्षेत्र विशेष में आफस्पा तभी लागू किया जाता है जब राज्य या केंद्र सरकार उस क्षेत्र को “अशांत क्षेत्र कानून” अर्थात डिस्टर्बड एरिया एक्ट घोषित कर देती है। आफस्पा कानून केवल उन्हीं क्षेत्रों में लगाया जाता है जो कि अशांत क्षेत्र घोषित किये गए हों। इस कानून के लागू होने के बाद ही वहां सेना या सशस्त्र बल भेजे जाते हैं।

आफस्पा को सितंबर 1958 को अरुणाचल प्रदेश, असम,त्रिपुरा, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम और नगालैंड सहित पूरे पूर्वोत्तर भारत में लागू किया गया था पूर्वोत्तर राज्यों में हिंसा रोकने के लिए इसे लागू किया गया था।