इतिहास के पन्नें में दर्ज है मिर्ज़ा और साहिबा की अनोखी प्रेम कहानी…
यह कहानी है दानाबाद गांव में पैदा हुए खरल कबीले के एक लड़के मिर्ज़ा और उसके मामा की बेटी साहिबा की। मिर्ज़ा बचपने से ही अपने मामा के यहां रहता था। मिर्ज़ा और साहिबा बचपन से एक दूसरे के साथ खेल कूद कर बड़े हुए। बचपन का ये साथ जवानी तक पहुंचते पहुंचते मोहब्बत में …
यह कहानी है दानाबाद गांव में पैदा हुए खरल कबीले के एक लड़के मिर्ज़ा और उसके मामा की बेटी साहिबा की। मिर्ज़ा बचपने से ही अपने मामा के यहां रहता था। मिर्ज़ा और साहिबा बचपन से एक दूसरे के साथ खेल कूद कर बड़े हुए। बचपन का ये साथ जवानी तक पहुंचते पहुंचते मोहब्बत में बदल गया था।
शायद मिर्ज़ा साहिबा एक हो जाते अगर घर के बेटों का दखल इसमें ना बढ़ता तो। वंजल खान इस रिश्ते को अपना सकता था लेकिन साहिबा के भाई शमीर को ये रिश्ता किसी कीमत पर मंज़ूर नहीं था। एक तरफ जहां मिर्ज़ा को अपनी महब्बत सबसे बड़ी लगती थी वहीं दूसरी तरफ शमीर मानता था कि उसका अपनी बहन के लिए प्यार तथा परिवार की इज्जत मिर्ज़ा की मोहब्बत पर भारी पड़ेगी।
शमीर ने जैसे तैसे मिर्ज़ा को उसके गांव दानाबाद भेज दिया और इधर साहिबा की शादी कहीं और तय कर दी। इस बात का पता जब मिर्ज़ा को लगा तो उसने जोश में आकर अपना घोड़ा तैयार कर लिया और निकल पड़ा साहिबा को अपनी बनाने। मिर्ज़ा साहिबा को भगाने में कामयाब हो गया। दोनों काफी दूर निकल आए थे।
मिर्ज़ा रास्ते में एक जगह आराम करने के लिए रुका। एक पेड़ की छांव में साहिबा के साथ सुकून से बैठा मिर्ज़ा कुछ देर के लिए सो गया। इस बीच साहिबा ने अपने भाइयों को बचाने के लिए मिर्ज़ा के तीर तोड़ दिए। दरअसल वो मिर्ज़ा की ताकत को जानती थी। उसे पता है कि उसके तीरों के सामने उसके भाई नहीं टिकेंगे। दूसरी ओर उसे विश्वास था कि वो अपने भाइयों को मना लेगी।
इतनी ही देर में मिर्जा को चारों तरफ से घेर लिया गया। मिर्ज़ा अपने तीर खोजता रहा मगर सारे तीर टूटे चुके थे। वो समझ गया कि ये साहिबा का किया है। इधर मिर्जा मौत के घाट उतार दिया गया। साहिबा उसकी मौत को बर्दाश्त नहीं कर सकी तथा उसने खुद को मार लिया। साहिबा बेवफा नहीं थी बस वो सही गलत तय ना कर पाई। उसे मिर्ज़ा और अपने भाइयों दोनों से प्यार था।
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