अपोलो परियोजना के 50 साल बाद नासा के नए चंद्र रॉकेट ने भरी उड़ान, दिसंबर में पृथ्वी पर लौटेगा

अपोलो परियोजना के 50 साल बाद नासा के नए चंद्र रॉकेट ने भरी उड़ान, दिसंबर में पृथ्वी पर लौटेगा

केप केनावेरल। नासा के नये चंद्र रॉकेट ने बुधवार तड़के तीन परीक्षण डमी के साथ अपनी पहली उड़ान भरी, जिससे अमेरिका 50 साल पहले अपने अपोलो कार्यक्रम की समाप्ति के बाद पहली बार अंतरिक्ष यात्रियों को चंद्रमा की सतह पर भेजने की दिशा में आगे बढ़ा है। यदि तीन-सप्ताह की परीक्षण उड़ान सफल हुई तो रॉकेट चालक दल के एक खाली कैप्सूल को चंद्रमा के चारों ओर एक चौड़ी कक्षा में ले जाएगा और फिर कैप्सूल दिसंबर में प्रशांत क्षेत्र में पृथ्वी पर वापस आ जाएगा। 

कई साल की देरी और अरबों से ज्यादा की लागत लगने के बाद, अंतरिक्ष प्रक्षेपण प्रणाली रॉकेट ने कैनेडी स्पेस सेंटर से उड़ान भरी। ओरियन कैप्सूल को रॉकेट के शीर्ष पर रखा गया था, जो उड़ान के दो घंटे से भी कम समय में पृथ्वी की कक्षा से निकलकर चंद्रमा की ओर जाने के लिए तैयार था। यह मिशन अमेरिका के प्रोजेक्ट अपोलो का अगला चरण है। प्रोजेक्ट अपोलो में 1969 से 1972 के बीच 12 अंतरिक्षयात्रियों ने चंद्रमा पर चहलकदमी की थी। इस प्रक्षेपण से नासा के आर्टेमिस चंद्र अन्वेषण अभियान की शुरुआत मानी जा रही है। यह नाम पौराणिक मान्यता के अनुसार अपोलो की जुड़वां बहन के नाम पर रखा गया है। 

नासा का उद्देश्य 2024 में अगली उड़ान में चंद्रमा के आसपास अपने चार अंतरिक्ष यात्रियों को भेजने का और फिर 2025 में आम लोगों को वहां उतारने का है। नासा की चंद्रमा पर एक बेस बनाने तथा 2030 एवं 2040 के दशक के अंत तक मंगल पर अंतरिक्षयात्रियों को भेजने की भी है। नासा ने अपोलो के चंद्र लैंडर की तरह 21वीं सदी में स्टारशिप विकसित करने के लिए एलन मस्क के स्पेसएक्स को किराये पर लिया है। 

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