लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने किया CAA का विरोध, विरोध के दौरान कही ये बात

लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने किया CAA का विरोध, विरोध के दौरान कही ये बात

लखनऊ। लखनऊ विश्वविद्यालय के छात्रों ने केंद्र सरकार द्वारा लाए गए सिटीजनशिप अमेंडमेंट एक्ट यानी CAA का विरोध किया। छात्रों का कहना है कि दिसम्बर 2019 में पास किये गये भेदभावकारी और विभाजनकारी अन्यायपूर्ण नागरिकता संशोधन कानून को लागू करने वाली नियमावली की अधिसूचना 2024 चुनावों की अधिसूचना आने से ठीक पहले जारी करना एक राजनीतिक साजिश का संकेत है। 
छात्र संगठनों ने कही ये बात 
छात्र संगठनों ने बताया कि जैसा कि अमित शाह ने खुद सीएए की 'क्रोनोलॉजी' समझाते हुए कहा था कि इस कानून को लागू करने के बाद एनआरसी-एनपीआर को देशव्यापी स्तर पर लाया जायेगा जिसके माध्यम से दस्तावेज न दिखा पाने वाले नागरिकों को नागरिकता के अधिकार से वंचित कर दिया जायेगा। सीएए नागरिकों को धर्म के आधार पर बांटने के मकसद से लाया गया है, जो भ्रामक रूप से गैरमुस्लिम 'शरणार्थियों' को नागरिकता देने और मुसलमानों की नागरिकता छीनने, यहां तक कि देशनिकाला देने, तक की बात करता है। लेकिन असम में की गयी एनआरसी की कवायद और देश में जगह-जगह चलाये जा रहे बुलडोजर ध्वस्तीकरण अभियानों से स्पष्ट हो चुका है कि आदिवासियों और वनवासियों समेत सभी समुदायों के गरीब इससे प्रभावित होंगे। 

 

LUCKNOW2
चुनाव जीतना चाहती है भाजपा
आइसा लखनऊ विश्वविद्यालय इकाई संयोजक हर्ष ने इस मौके पर कहा कि ऐसे दौर में जब दिल्ली के बॉर्डर पर किसान अपने फसल का हक़ मांग रहे हैं, छात्र सड़कों पर रोज़गार मांग रहे है, महिलाएं समान वेतन और सुरक्षा की मांग कर रहीं हैं। ऐसे वक़्त में सरकार द्वारा लाया गया CAA कानून ये साफ़ दर्शाता है कि समाज को खण्डों में तोड़ कर ही भाजपा 2024 का चुनाव जीतना चाहती है। हम इस विभाजनकारी,मुस्लिम विरोधी, संविधान विरोधी कानून को वापस लेने मांग करते हैं।"
समाजवादी छात्र सभा ने रखा पक्ष 
समाजवादी छात्रसभा से तौकील गाजी़ ने कहा कि " जब समाज में विभिन्न समूहों की एकता बनती है। भाजपा सरकार इसको तोड़ने के लिए अलग अलग हथकंडे अपनाती रहीं है। क्योंकि इनकी राजनीति का आधारभूत ही साम्प्रदायिक नफ़रत और विभाजन पर टिका है। हम संविधान को मानने वाले लोग है और भारत का संविधान साम्प्रदायिक एकता और भाइचारे का प्रतीक है।
एनएसयूआई के पदाधिकारी ने कही ये बात 
एनएसयूआई से शुभम ने कहा कि" भारत का स्वतंत्रता इतिहास साम्प्रदायिक एकता पर टिका है। उस समय जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं थे वही लोग आज सत्ता में है। हमें एकताबद्ध होकर इस सरकार को 2024  के  चुनाव में हराना है। "

देश का लोकतांत्रिक अभिमत एवं संवैधानिक अधिकार आन्दोलन ने सीएए-एनआरसी के पूरे पैकेज को संविधान पर हमला बता कर खारिज कर दिया है। चुनाव से पहले सीएए नियमावली की अधिसूचना ने लोकतंत्र के संवैधानिक आधार को बचाने के जनआन्दोलन की अनिवार्यता को पुन: रेखांकित किया है। मोदी सरकार को आगामी आम चुनावों में सत्ताच्युत करना जरूरी हो गया है। हम अपने अधिकारों के लिए संघर्षरत समाज के सभी तबकों से एमएसपी के कानूनी अधिकार के लिए लड़ रहे किसानों, श्रम अधिकारों के लिए लड़ने वाला मजदूर वर्ग, और छात्रों, महिलाओं को साथ आने की अपील करते हैं।