हल्द्वानी: नोटा का 'प्रत्याशी' हर चुनाव में उम्मीदवारों को दे रहा मात
हल्द्वानी, अमृत विचार। पूरे देश में साल 2014 के लोकसभा चुनाव में मतदाताओं को नोटा (इनमें से कोई नहीं) का विकल्प मिला, तब से उसने कई उम्मीदवारों से कई गुना ज्यादा वोट प्राप्त किए। साल 2014 के हुए लोकसभा चुनाव में नैनीताल सीट पर नोटा ने 11 उम्मीदवारों को हराया और साल 2019 के चुनाव में वह वोट बटोरने में 4 प्रत्याशियों से काफी आगे रहा।
नैनीताल सीट में साल 2014 के लोकसभा चुनाव में कुल 15 उम्मीदवारों ने भाग्य आजमाया था, जिसमें कुल 11,01934 लोगों ने मतदान किया लेकिन केवल 4 उम्मीदवार ही नोटा से आगे रहे और 11 उम्मीदवारों को नोटा से हार का सामना करना पड़ा।
इस चुनाव में भाजपा प्रत्याशी भगत सिंह कोश्यारी विजयी रहे, जिन्हें 6,36,769 वोट मिले। इसके बाद कांग्रेस प्रत्याशी केसी सिंह बाबा को 3,52,052, बसपा प्रत्याशी लईक अहमद को 59,245 और आप प्रत्याशी बल्ली सिंह चीमा को 13,472 वोट मिले। इनके अलावा, कोई प्रत्याशी दो हजार तो कोई चार हजार वोटों में सिमट गया, जबकि नोटा को 10, 328 वोट मिले।
बीसीपी की प्रत्याशी महज 802 वोट ला पाईं। हालांकि सपा प्रत्याशी अवतार सिंह ने नोटा को टक्कर देने की कोशिश जरूर की लेकिन वह भी 9,825 वोटों पर ढेर हो गए।
इसी तरह साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव में भी कई प्रत्याशियों के मुकाबले नोटा का दबदबा बरकरार रहा और पिछले चुनाव की तुलना में उसे 280 वोट अधिक मिले। इस चुनाव में 7 प्रत्याशी मैदान में थे, जिनमें से केवल भाजपा, कांग्रेस व बसपा के उम्मीदवार नोटा से आगे रहे, जबकि चार प्रत्याशी नोटा से ही मात खा गए। चुनाव में नोटा को 10608 वोट पड़े, जबकि सीपीआई (एमएल) के डॉ. कैलाश पांडे को 5488, बीएमयूपी के ज्योति प्रकाश टम्टा को 2053, पीएलएम के प्रेम प्रसाद आर्य को 3339 और आईएनडी के सुकुमार विश्वास को 3333 वोटों में ही सिमट गए।
राजनीतिक जानकारों का कहना है कि मतदाताओं को नोटा को वोट करना सत्ता पक्ष की कार्यशैली से नाखुशी जताने का तरीका है। साथ ही, अन्य विकल्प भी पसंद न होने से लोग नोटा का बटन दबाते हैं।
मत देना का फैसला मतदाता का स्वयं का है। हमारी कोशिश निर्वाचन आयोग के 75 प्रतिशत मतदान के लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए लोगों को मतदान के लिए प्रेरित करना है।
- सुरेश अधिकारी, जिला समन्वयक, स्वीप