स्थानीय बनाम बाहरीः पंत व कैप्टन के ‘पंजे‘ से फिसल गई थी जीत, गनपत सहाय ने निर्दलीय के रूप में लहराया था जीत का परचम

स्थानीय बनाम बाहरीः पंत व कैप्टन के ‘पंजे‘ से फिसल गई थी जीत, गनपत सहाय ने निर्दलीय के रूप में लहराया था जीत का परचम

मनोज कुमार मिश्र/ सुलतानपुर, अमृत विचार। सुलतानपुर के मतदाताओं ने कई चुनावों में बेहद रोचक नतीजे दिए हैं। यहां के मतदाताओं को हल्के में लेने की भूल कई बड़ी शख्सियतों को भारी पड़ी। स्थानीय बनाम बाहरी के मुद्दे ने जहां गोविंद बल्लभ पंत के पुत्र कृष्णचन्द्र पंत को धूल चटा दी, वहीं कैप्टन सतीश शर्मा को भी शिकस्त का मुंह देखना पड़ा। कृष्णचन्द्र पंत को जिले के मशहूर अधिवक्ता गनपत सहाय ने हरा दिया, वहीं कैप्टन सतीश शर्मा को मो. ताहिर खान से मुंह की खानी पड़ी। कैप्टन सतीश शर्मा चुनाव में तीसरे नंबर पर रहे।  

बाहरी और स्थानीय उम्मीदवार की लड़ाई का सबसे दिलचस्प नजारा इस सीट पर 1961 के उपचुनाव में देखने को मिला था। उस उपचुनाव की चर्चा से पहले इस सीट की सियासी पृष्ठभूमि को देखना दिलचस्प होगा। अमेठी नाम से संसदीय सीट के सृजन से पहले सुलतानपुर जिले में दो संसदीय सीटें थीं। 1951-52 के पहले आमचुनाव में सुलतानपुर सीट का नाम था सुलतानपुर जिला उत्तर साथ फैजाबाद जिला दक्षिण पश्चिम।

अमेठी सीट पहले चुनाव में सुलतानपुर (दक्षिण) और 1957 के दूसरे चुनाव में मुसाफिरखाना संसदीय क्षेत्र कहलाई। कांग्रेस ने दोनों ही चुनावों में दोनों ही सीटों पर बाहरी उम्मीदवार दिए और वे जीते। पहले आमचुनाव में सुलतानपुर सीट पर इलाहाबाद के एडवोकेट एमए काजमी कामयाब रहे। उन्हें 46,901 और सुरेंद्र प्रताप शाही (आरआरपी) को 27,324 वोट मिले थे। 1957 में इस सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार थे पंडित मदन मोहन मालवीय के पुत्र गोविंद मालवीय।

उनके विरुद्ध भारतीय जनसंघ के भास्कर प्रताप शाही चुनाव लड़ें थे। सफल मालवीय को 72,227 और निकटतम प्रतिद्वंद्वी शाही को 49,394 मत प्राप्त हुए। इन दोनों मौकों पर अमेठी सीट (पहले सुलतानपुर दक्षिण और फिर मुसाफिरखाना) में कांग्रेस ने महाराष्ट्रवासी बालकृष्ण विश्वनाथ केसकर को उम्मीदवार बनाया था। केसकर दोनों बार जीते  और पंडित नेहरू कैबिनेट में भी शामिल किए गए और लम्बे समय तक सूचना प्रसारण मंत्री रहे।

जिले की दोनों सीटों पर बाहरी प्रत्याशी थोपे जाने से खासतौर पर कांग्रेसी खेमे में असंतोष था। पंडित गोविंद मालवीय के असामयिक निधन के कारण 1961 में सुलतानपुर संसदीय सीट पर उपचुनाव हुआ। कांग्रेस ने फिर परंपरा दोहराई। इस बार उसकी ओर से उत्तर प्रदेश के प्रथम मुख्यमंत्री और बाद में केंद्र में गृहमंत्री रहे पंडित गोविंद बल्लभ पंत के पुत्र कृष्ण चंद्र पंत को उम्मीदवार बनाया गया। जिले के दिग्गज कांग्रेसी नेता और मशहूर एडवोकेट बाबू गनपत सहाय विद्रोही निर्दलीय उम्मीदवार के तौर पर मैदान में उतरे। वह सुलतानपुर जिला पंचायत अध्यक्ष, पालिकाध्यक्ष व विधायक रह चुके थे।

अधिवक्ता भी थे और उनकी जनता में खासी पकड़ थी। यह पंडित नेहरू और कांग्रेस के वर्चस्व का दौर था, लेकिन कड़े मुकाबले में बाबू गनपत सहाय ने जीत दर्ज करके प्रदेश और केंद्र में हलचल मचा दी थी। इस उपचुनाव में बाबू गनपत सहाय को 37,785 और पंत को 36,656 वोट मिले थे। इस नतीजे का असर यह रहा कि 1962 के चुनाव और बाद के कुछ चुनावों में जिले की दोनों सीटों पर कांग्रेस ने बाहरी उम्मीदवारों से परहेज किया। हालांकि, कुछ समय के बाद फिर से चुनावी सियासत उसी पुराने ढर्रे पर लौट गई। 

अब बात करते हैं नेहरू गांधी परिवार के खासमखास कैप्टन सतीश शर्मा की। कांग्रेस ने 2004 में कैप्टन साहब को सुलतानपुर सीट पर उतारा। बड़े-बड़े दिग्गज यहां प्रचार को आए। कैप्टन की बेटी सारिका शर्मा से लेकर राहुल गांधी और प्रियंका गांधी ने भी कार्यकर्ताओं में दम भरा। खूब खर्चे भी हुए। पर, नतीजा आया तो कांग्रेसी खेमे में मायूसी छा गई। इस चुनाव में कैप्टन सतीश शर्मा तीसरे नंबर पर रहे। बसपा से चुनाव मैदान में उतरे स्थानीय चेहरे मो. ताहिर खां के सिर पर जीत का सेहरा सजा। मो. ताहिर 2,61,564 वोट पाकर सांसद बन गए। दूसरे नंबर पर रहे समाजवादी पार्टी के स्थानीय उम्मीदवार शैलेंद्र प्रताप सिंह को 1,59,754 वोट मिले। कांग्रेस उम्मीदवार कैप्टन सतीश शर्मा को 1,54,245 मत ही प्राप्त हो सके। 

टेबल
सन- 1961 (उपचुनाव) 
बाबू गनपत सहाय-    निर्दलीय-         37,785
कृष्णचंद्र पंत-        कांग्रेस -    36,656

वर्षः 2004
मो. ताहिर- बसपा- 2,61,564
शैलेंद्र प्रताप सिंह- सपा- 1,59,754
कैप्टन सतीश शर्मा- कांग्रेस- 1,54,245
वीणा पांडेय- भाजपा-91328

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