सहयोग बढ़ाना जरूरी
दुनिया की सबसे अधिक आबादी वाला भारत स्वास्थ्य के कई मसलों से जूझ रहा है। हालांकि दुनिया की आधी से अधिक आबादी को आवश्यक स्वास्थ्य सेवाओं तक पूर्ण पहुंच की आवश्यकता है। भारत में समावेशी स्वास्थ्य सेवा प्राप्त करने की राह की चुनौतियां कम होने का नाम नहीं ले रही हैं। इनमें संक्रामक रोगों से लेकर गैर संक्रामक बीमारियां शामिल हैं। टीबी और मलेरिया जैसी संक्रामक बीमारियां तो बनी ही हुई हैं।
इनके साथ साथ जीवनशैली से जुड़े रोगों जैसे कि डायबिटीज़ और दिल की बीमारियों के मरीजों की संख्या भी बढ़ती जा रही है। कुपोषण और स्वास्थ्य सेवाओं तक पहुंच का अभाव, खासतौर से ग्रामीण क्षेत्रों में अभी भी बना हुआ है। वास्तविक स्वास्थ्य समानता, गरीबी, भेदभाव, उच्च गुणवत्तापूर्ण शिक्षा तक सीमित पहुंच, स्वस्थ आहार, स्वच्छ जल, स्वच्छ हवा और आवास जैसी स्वास्थ्य असमानताओं के मूल कारणों को संबोधित करती है तथा स्वास्थ्य देखभाल तक समान पहुंच प्रदान करती है।
स्वास्थ्य समानता यह सुनिश्चित करती है कि प्रत्येक व्यक्ति को अपनी उच्चतम स्वास्थ्य क्षमता प्राप्त करने का समान अवसर मिले, चाहें उनकी परिस्थितियां कुछ भी हों। यह स्वीकार करते हुए कि सामाजिक, आर्थिक और पर्यावरणीय कारक स्वास्थ्य परिणामों को प्रभावित करते हैं, यह विचार आनुवंशिकी तक सीमित नहीं है। विश्व स्वास्थ्य संगठन का मिशन विभिन्न सामाजिक और आर्थिक श्रेणियों के बीच स्वास्थ्य क्षेत्र में विद्यमान अनुचित एवं निवारण योग्य असमानताओं को समाप्त करना है।
भारत सरकार ने 2013 में राष्ट्रीय स्वास्थ्य मिशन की शुरुआत की थी। इसकी रूपरेखा में पहले यानी 2005 में स्थापित किए गए राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन और 2013 में शुरू किए गए राष्ट्रीय शहरी स्वास्थ्य मिशन को शामिल किया गया है। स्वास्थ्य की तमाम चुनौतियों के बावजूद जनता की सेहत को बेहतर बनाने का लक्ष्य लेकर शुरू की गई आयुष्मान भारत योजना दुनिया में स्वास्थ्य की सबसे महत्वाकांक्षी योजनाओं में से एक है।
इसके तहत दो मुख्य कार्यक्रमों-हेल्थ ऐंड वेलनेस केंद्रों और प्रधानमंत्री जन आरोग्य योजना के जरिए देश के 50 करोड़ कमजोर लोगों को वित्तीय संरक्षण देना है। फिर भी भारत जैसे बहुसांस्कृतिक देश में विशेष रूप से स्वास्थ्य समानता की राह कठिनाइयों से भरी है जिसमें गहराई तक व्याप्त सामाजिक अन्याय से लेकर वैश्विक प्रणालीगत स्वास्थ्य संबंधी चिंताएं शामिल हैं।
भारत के लिए ये सुनिश्चित करना जरूरी है कि आम लोगों को उचित कीमत पर स्वास्थ्य की देख-रेख की अच्छी सुविधा मिल सके। स्वास्थ्य सेवा के मूलभूत ढांचे में निवेश और कर्मचारियों की तादाद बढ़ाने और सरकारी संस्थाओं, नागरिक संगठनों और निजी भागीदारों के बीच सहयोग बढ़ाना भी जरूरी है।