Lok Sabha Chunav 2024: आधे से ज्यादा मतदाताओं का बन चुका मूड...किसको देना वोट, परिणाम चार जून को...

कानपुर में आधे से ज्यादा मतदाताओं का बन चुका मूड

Lok Sabha Chunav 2024: आधे से ज्यादा मतदाताओं का बन चुका मूड...किसको देना वोट, परिणाम चार जून को...

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मतदाता व्यवहार या मनोविज्ञान इस बात का संकेतक है कि एक मतदाता कब और कैसे इस बात का फैसला करता है कि उसे वोट किसे देना है। वह कौन सी परिस्थितियां, वातावरण, प्रभाव या कारक होते हैं, जिनके आधार पर वह यह निर्णय लेता है कि अमुक दल या प्रत्याशी को वोट देना है। वोट देने के दौरान उसके दिलो-दिमाग में क्या चल रहा होता है। अगर राजनीतिक दल प्रत्याशी चयन में जातीय, धार्मिक या सामुदायिक आधार को तरजीह देते हैं, तो मतदाता को भी वोट का फैसला लेने में सबसे ज्यादा यही बातें प्रभावित करती हैं। शहरी क्षेत्र के मुकाबले ग्रामीण इलाकों में मतदाताओं का एक बड़ा वर्ग जरूर देखता है कि उसका वोट किस जाति या समुदाय के उम्मीदवार को जा रहा है। 

कानपुर, (मनोज त्रिपाठी)। लोकसभा चुनाव में किसने किसको और कितने वोट दिए, इसका पता तो चार जून को परिणाम आने पर ही चलेगा, लेकिन आधे से अधिक 58 फीसदी मतदाता अपना मूड बना चुके हैं कि उन्हें ईवीएम पर किस खाने का बटन दबाना है। यह महत्पूर्ण तथ्य अमृत विचार की ओर से मतदाता संवाद और मतदान जागरूकता को लेकर किए गए संपर्क अभियान में सामने आया है। जिन 42 फीसदी लोगों ने अभी अपना वोट तय नहीं किया है, उनमें सबसे बड़ा हिस्सा 14 फीसदी उन लोगों का है।

जिनका कहना है कि वह मतदान के दिन ही अपना फैसला लेंगे। इसी तरह 21 फीसदी मतदाता ऐसे हैं, जिन्होंने अभी किसी दल या प्रत्याशी के पक्ष में मतदान का कोई निर्णय नहीं लिया है, इनमें से अधिकतर राजनीतिक दलों के वायदे, प्रचार अभियान, नेताओं के भाषण, मुद्दों और हवा का रुख परख रहे हैं और कहते हैं कि जल्दी ही किसी नतीजे पर पहुंच जाएंगे, जबकि सात फीसदी मतदाताओं का कहना है कि वह अपना वोट खराब नहीं करेंगे और उसके पक्ष में ही मतदान करेंगे जो जीतता हुआ नजर आएगा। 

58 फीसदी लोगों के यह राय जताने से कि वह अपने मत को लेकर फैसला कर चुके हैं, साफ है कि अधिकतर मतदाता जब मतदान केंद्र पर वोट देने पहुंचते हैं तो ईवीएम का बटन दबाने से पहले ही फैसला करके आते हैं कि उन्हें किसे वोट देना है। ओपिनियन पोल और एग्जिट पोल करने वाली एजेंसियों के लिए काम करने वाले भी इस बात की पुष्टि करते हैं कि अधिकतर मतदाता पहले ही तय कर चुके होते हैं कि उनका वोट किधर जाना है।

इसकी बड़ी वजह यह भी है कि वोट किसको जाएगा, इसका मूड बनाने वाले 58 फीसदी मतदाताओं में अधिकतर स्वीकार करते हैं कि वह किसी न किसी राजनीतिक दल के समर्थक हैं, या किसी खास विचारधारा से प्रभावित हैं। हालांकि इस तथ्य से इंकार नहीं किया जा सकता कि एक आम मतदाता जब वोट देने जाता है तो उस पर कई फैक्टर काम कर रहे होते हैं।

इनमें जाति, धर्म, समुदाय, फायदे वाली घोषणाएं, योजनाएं, भाषा, प्रत्याशी, प्रचार, मीडिया रिपोर्ट्स सभी कुछ होते हैं। अपना राजनीतिक दृष्टिकोण बनाने में वह इन सभी बातों का सहारा लेता है। लेकिन ऐसे मतदाताओं की संख्या अगर उन मतदाताओं के मुकाबले आधी है, जो पहले से ही अपने मत का फैसला किए बैठे हैं, तो परिणाम में बड़े उलटफेर की संभावना का प्रतिशत कम हो जाता है।

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