लखनऊ: फेफड़ों के कैंसर की सटीक पहचान में देरी मौत का बड़ा कारण, हर साल जाती है 18 लाख लोगों की जान
लखनऊ, अमृत विचार। फेफड़ों के कैंसर और टीबी के लक्षण अक्सर मिलते-जुलते होते हैं। धूम्रपान के कारण सांस की नलियों में होने वाले विकार को पल्मोनरी टीबी का लक्षण समझकर गलत निदान शुरू कर दिया जाता है। इन्हीं समान लक्षणों के कारण फेफड़ों के कैंसर की मरीज की पहचान में देरी मौत का बड़ा कारण बनती है। इसीलिए कहा जाता है कि जैसे- "हर चमकती चीज सोना नहीं होती, उसी तरह चेस्ट एक्स-रे का हर धब्बा टीबी नहीं होता।”
यह जानकारी केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन विभाग के अध्यक्ष डॉ. सूर्यकान्त ने दी है। उन्होंने कहा कि भारत में फेफड़ों का कैंसर लगभग सभी तरह के कैंसरों का 6% और कैंसर संबंधित मौतों का 8% हिस्सा है। वैश्विक रूप से हर साल करीब 20 लाख फेफड़ों के कैंसर के नए मरीज चिन्हित किये जाते हैं, जिनमें से 18 लाख हर साल मर जाते हैं। वह आईएमए भवन में आयोजित कार्यशाला को संबोधित कर रहे थे।
दरअसल, फेफड़ों के कैंसर से जुड़ी जानकारियों को साझा करने और बीमारी की जल्द पहचान व बेहतर इलाज के लिए आईएमए भवन में कार्यशाला आयोजित की गयी। कार्यशाला का आयोजन इंडियन सोसायटी फॉर स्टडी ऑफ़ लंग कैंसर (आईएसएसएलसी) के तत्वावधान में केजीएमयू के रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट, लखनऊ चेस्ट क्लब, और इंडियन चेस्ट सोसायटी यूपी चैप्टर के सहयोग से किया गया। कार्यशाला में ख्याति प्राप्त पल्मोनाजिस्ट के साथ आंकोलाजिस्ट, शोधकर्ताओं के अलावा स्वास्थ्य सेवा प्रदान करने वालों का जमावड़ा रहा। कार्यशाला का उद्देश्य फेफड़ों के कैंसर के नवीनतम निदान, उपचार और प्रबंधन की तैयारियों पर विचार-विमर्श और नए शोध पर मंथन करना था।
इस अवसर पर पद्मश्री डॉ. डी. बेहरा,डॉ. दीप्ति मिश्रा, डॉ. शिव राजन, डॉ. ज्योति बाजपेयी, डॉ. राजेंद्र प्रसाद, डॉ. केबी गुप्ता, डॉ. सुरेश कुमार और डॉ. शैलेंद्र यादव शामिल रहे । इसके अलावा डॉ. हेमंत कुमार लखनऊ के डॉ आरएमएल संस्थान से, डॉ. आनंद गुप्ता बलरामपुर जिला अस्पताल से, डॉ. सुशील चतुर्वेदी, डॉ. डीके वर्मा, डॉ. अस्थाना और रेस्परेटरी मेडिसिन डिपार्टमेंट केजीएमयू से डॉ. आरएस कुशवाहा, डॉ. संतोष कुमार, डॉ. राजीव गर्ग, डॉ. दर्शन बजाज, डॉ. आनंद श्रीवास्तव कार्यशाला में शामिल हुये।
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