आज ही के दिन जंग का मैदान बना था हरदोई, दिल्ली फतेह को भिड़े थे शेरशाह सूरी और हुमायूं…
आज ही के दिन 17 मई 1540 को बिलग्राम का युद्ध शेरशाह सूरी और मुग़ल बादशाह हुमायूं के बीच लड़ा गया। इसे कन्नौज का युद्ध भी कहते है जहां जंग लड़ी गयी वो जगह अब हरदोई में आती है। 1539 में चौसा की जंग के बाद हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच दूसरी जंग थी। …
आज ही के दिन 17 मई 1540 को बिलग्राम का युद्ध शेरशाह सूरी और मुग़ल बादशाह हुमायूं के बीच लड़ा गया। इसे कन्नौज का युद्ध भी कहते है जहां जंग लड़ी गयी वो जगह अब हरदोई में आती है। 1539 में चौसा की जंग के बाद हुमायूं और शेरशाह सूरी के बीच दूसरी जंग थी। दिल्ली पर क़ब्ज़ा करने के लिए शेरशाह सूरी की सेना बिहार से दिल्ली की तरफ बढ़ रही थी। अफ़ग़ान सेना बनारस इलाहाबाद पार करते हुए कन्नौज पहुचीं वहां मुग़ल सेना भी हुमायूं को रोकने के लिये पहुंच चुकी थी।
दोनों सेनाओं ने बिलग्राम में पड़ाव डाला और क़रीब एक महीने तक कोई हमला नही हआ। दोनों एक दूसरे के पहले हमला करने का इंतज़ार करते रहे। वक़्त लम्बा खिंचता देख मुग़ल सेना की एक 3000 सैनिकों की अफ़ग़ान टुकड़ी ने हुमायूं का साथ छोड़ दिया। हुमायूं का एक सैन्य कमांडर बक्श खान भी शेरशाह सूरी के साथ मिल गया।
सेना बिखरती देख हुमायूं ने शेरशाह पर हमला कर दिया। जिसमें हुमायूं को बुरी तरह से हार का सामना करना पड़ा और दिल्ली पर फिर से अफ़ग़ानों का राज हो गया। हुमायूं के पास अब कोई राज्य नही बचा था दिल्ली छोड़कर सिंध चला गया, तक़रीबन 15 साल तक एक आम इंसान की तरह ज़िंदगी गुजारी।
