जीवेम शरदः शतम, हे सूर्य हम सौ वर्ष तक जीवित रहें…

जीवेम शरदः शतम, हे सूर्य हम सौ वर्ष तक जीवित रहें…

जीवेम शरदः शतम- मानव की आकांक्षा होती है की वह सौ वर्ष तक जीवित रहे वह अपने स्वजनों को शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए भी यही कामना करता है। अथर्ववेद -19 /67 /1 -8 के मन्त्रों में वेदपाठी सूर्य से प्रार्थना करता है — जीवेम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्ष तक जीवित रहें। पश्येम …

जीवेम शरदः शतम- मानव की आकांक्षा होती है की वह सौ वर्ष तक जीवित रहे वह अपने स्वजनों को शुभकामनाएं व्यक्त करते हुए भी यही कामना करता है। अथर्ववेद -19 /67 /1 -8 के मन्त्रों में वेदपाठी सूर्य से प्रार्थना करता है —

जीवेम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्ष तक जीवित रहें।
पश्येम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्षों तक देखते रहे।
बुध्येम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्ष तक बुद्धि युक्त रहे।
रोहेम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्ष तक वृद्धि करते रहे।
पुषेम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्ष तक पुष्ट रहें।
भवेम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्षों तक पुत्र आदि से युक्त रहें।
भुयेम शरदः शतम- हे सूर्य हम सौ वर्षों तक संतान वाले रहें।
भूयसी शरदः शतात- हे सूर्य हम सौ वर्षों से भी अधिक समय तक जीवित रहें।

अथर्ववेद के मंत्रदृष्टा ऋषि पूर्ण आयु के लिए देवगणो से प्रार्थना करते हैं –19 /69 /1 -4
जीवा स्थ जीव्यासं सर्वमायूरजीव्यासम- हे देवगण आप आयु वाले हैं ,आप की कृपा से मैं भी आयुवाला बनूं ,मैं पूर्ण आयु अर्थात सौ वर्ष तक जीवित रहूं।

उपजीवा स्थोप जीव्यासं सर्वमायूरजीव्यासम- हे देवगण ,आप अधिक जीवन वाले हैं ,आपकी कृपा से मैं भी अधिक जीवन वाला बनूँ ,सौ वर्ष तक जीवित रहूं।

संजीवा स्थ सं जीव्यासं सर्वमायूरजीव्यासम- हे देवगण ,आप जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ नहीं करते हैं ,मैं भी आपकी कृपा से जीवन का एक क्षण भी व्यर्थ न करूँ ,मैं भी सौ वर्ष तक जीवित रहूं।

जीवला स्थ जीव्यासं सर्वमायूरजीव्यासम-हे देवगण ,तुम सभी ऐश्वर्य के प्रकाशक हो ,मैं भी तुम्हारी कृपा से पूर्ण ऐश्वर्य का प्रकाशक बनूं ,मैं भी सौ वर्ष तक जीवित रहूं।

मानव की इस कामना को पूर्ण करने के लिए मंत्रदृष्टा ऋषियों ने उद्घोष किया-
उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते देवान यज्ञेन बोधय
आयुः प्राणं प्रजां पशुन कीर्ति यजमानं च वर्धय
देवगण ,ब्रह्मणस्पति अर्थात ब्रह्म को जानने वालों के जगने ,उठाने का आवाहन कर रहे हैं। ये ब्रह्म के जाननेवाले बुद्धिजीवी है ,ज्ञानी हैं ,वैज्ञानिक है जो सो रहे हैं- इनके जगने से ही सम्भव है की देवों को उनका हवि मिले और वे जीवित रह सके। जब देवत्व जीवित रहेगा तभी यजमान भी आयु ,प्राण ,प्रजा ,पशु कीर्ति में वृद्धि कर सकेंगे।

अथर्ववेद के एक मन्त्र –19 /70 /1 में ऋषियों ने उद्घोष किया है-
इंद्र जीव सूर्य जीव देवा जीवा जिव्यासमहम सर्वमयूरजीव्यासम- अर्थात हे इंद्र तुम जीवित रहो ,हे सूर्य तुम जीवित रहो ,समस्त देव तुम जीवित रहो। तुम्हारे जीवित रहने पर ही तुम्हारी कृपा से मैं भी जीवित रहूं। मैं पूर्ण आयु अर्थात सौ वर्ष तक जीवित रहूं।
वर्त्तमान सन्दर्भों में महामारी के इस युग में –जीवेम शरदः शतम कैसे चरितार्थ हो ,जबकि ब्रह्मणस्पति सो रहे हैं वे जागृत नहीं है –हम हवि देवताओं बजाय दानवों ,राक्षसों को सौप रहे हैं ,देवत्व बलहीन होता जा रहा है।

आत्ममंथन की आवश्यकता है- उत्तिष्ठ ब्रह्मणस्पते। देवत्व को उसका हवि समर्पित करायो- मानव को अकाल मृत्यु से त्राण दिलायो। कभी कोविड,कभी डेंगू कभी कोई दूसरा वायरस आक्रमण करता ही जा रहा है।

  • डाॅ. चन्द्रविजय चतुर्वेदी, प्रयागराज