Uttarakhand : पिथौरागढ़ के 'पाताल भुवनेश्वर' गुफा मंदिर के बारे जानिए रोचक तथ्य

Uttarakhand : पिथौरागढ़ के 'पाताल भुवनेश्वर' गुफा मंदिर के बारे जानिए रोचक तथ्य

पिथौरागढ़। केंद्रीय संस्कृति मंत्रालय ने उत्तराखंड के पिथौरागढ़ स्थित भगवान शिव को समर्पित पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर की तस्वीरें शेयर की हैं। मंत्रालय ने बताया, इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में भी मिलता है...धार्मिक मान्यता है कि इसमें पांडवों ने तपस्या की थी...मंदिर में देवी-देवताओं की आकृतियों को बनाने के लिए चट्टानी पत्थरों को बेहद बारीकी से काटा गया है। पाताल भुवनेश्वर गुफा मंदिर उत्तराखण्ड के पिथौरागढ़ में स्थित है। भगवान शिव को समर्पित इस मंदिर में हमें भारत के आध्यात्मिक वैभव की एक अद्भुत पराकाष्ठा देखने के लिए मिलती है।

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जानिए इसके बारे में कुछ रोचक तथ्य
उत्तराखंड के पिथौरागढ़ में स्थित यह प्राचीन गुफा मंदिर भगवन शिव को समर्पित है। इस मंदिर का उल्लेख स्कंद पुराण में मिलता है। धार्मिक मान्यता है कि इस गुफा में पांडवों ने तपस्या की थी। इस मंदिर में देवी-देवताओं के आकृतियों को बनाने के लिए चट्टानी पत्थरों को बेहद बारीकी से काटा गया है।

पाताल भुवनेश्वर, जिसका शाब्दिक अर्थ है कि भगवान शिव के उप-क्षेत्रीय तीर्थस्थान, यह  एक गुफा मंदिर है जो पिथौरागढ़ से लगभग 91 किलोमीटर दूर और गंगोलीहट से 14 किलोमीटर उत्तर में स्थित है। मंदिर का रास्ता एक सुरंग के माध्यम से होता है जो एक गुफा में जाता है और पानी के एक संकीर्ण अंधेरे मार्ग से होता है।

उत्तराखंड के कुमाऊं मंडल के प्रसिद्ध नगर अल्मोड़ा से शेराघाट होते हुए 160 किलोमीटर की दूरी तय कर पहाड़ी वादियों के बीच बसे सीमान्त कस्बे गंगोलीहाट में स्थित है |पाताल भुवनेश्वर देवदार के घने जंगलों के बीच अनेक भूमिगत गुफ़ाओं का संग्रह है | जिसमें से एक बड़ी गुफ़ा के अंदर शंकर जी का मंदिर स्थापित है । यह संपूर्ण परिसर 2007 से भारतीय पुरातत्व विभागद्वारा अपने कब्जे में लिया गया है।

पाताल भुवनेश्वर गुफ़ा किसी आश्चर्य से कम नहीं है।यह गुफा प्रवेश द्वार से 160 मीटर लंबी और 90 फीट गहरी है । पाताल भुवनेश्वर की मान्यताओं के मुताबिक, इसकी खोज आदि जगत गुरु शंकराचार्य ने की थी । पाताल भुवनेश्वर गुफा में केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के दर्शन भी होते हैं।

पुराणों के मुताबिक पाताल भुवनेश्वर के अलावा कोई ऐसा स्थान नहीं है, जहां एकसाथ चारों धाम के दर्शन होते हों। यह पवित्र व रहस्यमयी गुफा अपने आप में सदियों का इतिहास समेटे हुए है। मान्यता है कि इस गुफा में 33 करोड़ देवी-देवताओं ने अपना निवास स्थान बना रखा है।

पुराणों मे लिखा है कि त्रेता युग में सबसे पहले इस गुफा को राजा ऋतूपूर्ण ने देखा था, द्वारपार युग में पांडवो ने यहः शिवजी भगवान् के साथ चौपाड़ खेला था और कलयुग में जगत गुरु शंकराचार्य का 722 ई के आसपास इस गुफा से साक्षत्कार हुआ तो उन्होंने यहः ताम्बे का एक शिवलिंग स्थापित किया | इसके बाद जाकर कही चंद राजाओ ने इस गुफा को खोजा | आज के समय में पाताल भुवानेश्वर गुफा सलानियो के लिए आकर्षण का केंद्र है | देश विदेश से कई सैलानी यह गुफा के दर्शन करने के लिए आते रहते है |

हिंदू धर्म में भगवान गणेशजी को प्रथम पूज्य माना गया है। गणेशजी के जन्म के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। कहा जाता है कि एक बार भगवान शिव ने क्रोध में  गणेशजी का सिर धड़ से अलग कर दिया था, बाद में माता पार्वतीजी के कहने पर भगवान गणेश को हाथी का मस्तक लगाया गया था, लेकिन जो मस्तक शरीर से अलग किया गया, माना जाता है कि वह मस्तक भगवान शिवजी ने पाताल भुवानेश्वर गुफा में रखा है। पाताल भुवनेश्वर की गुफा में भगवान गणेश कटे शिलारूपी मूर्ति के ठीक ऊपर 108 पंखुड़ियों वाला शवाष्टक दल ब्रह्मकमल के रूप की एक चट्टान है।

इससे ब्रह्मकमल से पानी भगवान गणेश के शिलारूपी मस्तक पर दिव्य बूंद टपकती है। मुख्य बूंद आदिगणेश के मुख में गिरती हुई दिखाई देती है। मान्यता है कि यह ब्रह्मकमल भगवान शिव ने ही यहां स्थापित किया था। इस गुफाओं में चारों युगों के प्रतीक रूप में चार पत्थर स्थापित हैं। इनमें से एक पत्थर जिसे कलयुग का प्रतीक माना जाता है, वह धीरे-धीरे ऊपर उठ रहा है। यह माना जाता है कि जिस दिन यह कलियुग का प्रतीक पत्थर दीवार से टकरा जायेगा उस दिन कलियुग का अंत हो जाएगा।

पाताल भुवनेश्वर का इतिहास और मान्यताएं 
इस गुफा के अंदर केदारनाथ, बद्रीनाथ और अमरनाथ के भी दर्शन होते हैं। बद्रीनाथ में बद्री पंचायत की शिलारूप मूर्तियां हैं। जिनमें यम-कुबेर, वरुण, लक्ष्मी, गणेश तथा गरूड़ शामिल हैं। तक्षक नाग की आकृति भी गुफा में बनी चट्टान में नजर आती है। इस पंचायत के ऊपर बाबा अमरनाथ की गुफा है तथा पत्थर की बड़ी-बड़ी जटाएं फैली हुई हैं। इसी गुफा में कालभैरव की जीभ के दर्शन होते हैं। इसके बारे में मान्यता है कि मनुष्य कालभैरव के मुंह से गर्भ में प्रवेश कर पूंछ तक पहुंच जाए तो उसे मोक्ष की प्राप्ति हो जाती है। गुफ़ा में घुसते ही शुरुआत में (पाताल के प्रथम तल) नरसिम्हा भगवान  के दर्शन होते हैं।

कुछ नीचे जाते ही शेषनाग के फनों की तरह उभरी संरचना पत्थरों पर नज़र आती है। मान्यता है कि धरती इसी पर टिकी है। गुफ़ाओं के अन्दर बढ़ते हुए गुफ़ा की छत से गाय की एक थन की आकृति नजर आती है। यह आकृति कामधेनु गाय का स्तन है कहा जाता था की देवताओं के समय मे इस स्तन में से दुग्ध धारा बहती है। कलयुग में अब दूध के बदले इससे पानी टपक रहा है।

इस गुफा के अंदर आपको मुड़ी गर्दन वाला गौड़ (हंस) एक कुण्ड के ऊपर बैठा दिखाई देता है। यह माना जाता है कि  शिवजी ने इस कुण्ड को अपने नागों के पानी पीने के लिये बनाया था। इसकी देखरेख गरुड़ के हाथ में थी। लेकिन जब गरुड़ ने ही इस कुण्ड से पानी पीने की कोशिश की तो शिवजी ने गुस्से में उसकी गर्दन मोड़ दी। (हंस की टेड़ी गर्दन वाली मूर्ति। ब्रह्मा के इस हंस को शिव ने घायल कर दिया था क्योंकि उसने वहां रखा अमृत कुंड जूठा कर दिया था।

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