जेल से छूटी खुशी दुबे बोली- थाने में कैसे काटे दिन, मैं ही जानती हूं, अब पढ़ाई कर जिंदगी में बढूंगी आगे
कानपुर में खुशी दुबे ने कहा कि निर्दोष होने के बाद भी ढाई साल तक जेल में रहना पड़ा।
कानपुर में जेल से छूटी खुशी दुबे ने कहा कि थाने में कैसे काटे दिन, मैं ही जानती हूं। निर्दोष होने के बाद भी ढाई साल तक जेल में रहना पड़ा। समय आने पर पुलिस की प्रताड़ना सबके सामने रखूंगी। वहीं, खुशी की मां ने कहा कि मेरा सबने साथ दिया।
कानपुर, अमृत विचार। चौबेपुर थाने में चार दिन कैसे काटे, मैं ही जानती हूं। मेरे लिए काफी दुखद है, शायद मैं इसे जाहिर भी नहीं कर सकती हूं। थाने के वो चार दिन ढाई साल पर भारी हैं। जेल से छूटने के बाद अभी बीमार हूं, पीठ में काफी दर्द है, कुछ कहने की क्षमता नहीं है। समय आने पर सब बताऊंगी और पुलिस ने जो-जो किया सामने रखूंगी।
छूटने के बाद मेरा मकसद है कि पढ़ाई करूं और जिंदगी में आगे बढूं। यह बात जेल से बाहर आई कुख्यात गैंगस्टर Vikas Dubey के भतीजे Amar Dubey की पत्नी Khushi Dubey ने जेल से बाहर आने के बाद घर पर अमृत विचार संवाददाता से कही। खुशी के वकील शिवाकांत दीक्षित ने बताया कि निचली अदालत से लेकर सुप्रीम कोर्ट तक करीब 95 तरीखों पर सुनवाई के बाद सुप्रीम कोर्ट ने खुशी को जमानत दी।
ये ढाई साल कैसे बीते?
ढाई साल जिस तरह से जिया है, यह मैं और मेरा परिवार ही जानता है। यह जिंदगी के इन सालों में मुझे काफी कड़ा संघर्ष करना पड़ा।
थाने में चार दिन आपको रखा गया, कैसे व्यवहार रहा?
थाने में मुझे चार दिन रखा गया है। वहां पर जो भी पुलिस ने मेरे साथ व्यवहार किया मैं अभी बताने की स्थिति में नहीं हूं। किस तरह एक-एक मिनट काटा है, मेरा दिल जानता है।
बिकरू कांड की रात क्या हुआ?
उस रात गांव में क्या हुआ उसे नहीं पता। वह घर पर सो रही थी। अचानक तेज पटाखों की आवाजें महसूस होने लगी। इसके बारे में ज्यादा नहीं पता है।
भविष्य की क्या योजना है?
जेल से बाहर आने के बाद अब वह अपने भविष्य को बेहतर बनाने के लिए मेहनत से पढ़ाई करेगी। साथ ही परिवार के सभी कामों में हाथ बटाएगी।
सबसे ज्यादा मदद को कौन आगे रहा?
मेरी और मेरे परिवार की मदद के लिए सबसे ज्यादा धन्यवाद मीडिया का करना चाहती हूं। इसके चलते मैनें कभी उम्मीद नहीं छोड़ी। कुछ राजनैतिक दलों ने भी कंधे से कंधा मिलाकर मेरी लड़ाई को लड़ा है।
मुझे न्यायपालिका पर पूरा भरोसा
खुशी की मां गायत्री देवी ने कहा कि न्यायपालिका पर भरोसा है, जिसके चलते उन्हें इंसाफ मिला। वहीं बहन नेहा का कहना था कि खुशी के जेल से छूटने के बाद वह बहुत खुश हैं। निर्दोष होने के बाद भी जेल में खुशी को ढाई साल रहना पड़ा। ईश्वर न करे कि ऐसा संकट किसी के परिवार पर पड़े।
खुशी का ठिकाना नहीं, मिलने का सिलसिला जारी
खुशी दुबे को ढाई साल बाद सुप्रीम कोर्ट से चार जनवरी को जमानत मिल गई थी। जमानत की सभी औपचारिकताएं पूरी होने के बाद 21 जनवरी की शाम को उन्हें कानपुर देहात की माती जेल से रिहा कर दिया गया। ढाई साल बाद जेल से छूटने के बाद खुशी और उनके परिवार की खुशी का ठिकाना नहीं था। जेल में शनिवार रात से रविवार रात तक रिश्तेदार और इलाके के लोगों के आने का सिलसिला चलता रहा।
गतिविधियों पर पुलिस की नजर
रिहाई की खबर के बाद से शनिवार को पूरा दिन पुलिस की निगाह क्षेत्र की गतिविधियों पर बनी रहे। पनकी इंस्पेक्टर व एसीपी फोर्स के साथ लगातार क्षेत्र के आसपास राउंड लगाते रहे। पुलिस की गाड़ी क्षेत्र में आते ही लोगों को लगता था खुशी आ गई है।
विकास के बराबर खुशी पर भी लगी हैं धाराएं
बिकरू कांड में विकास दुबे के बराबर ही, खुशी दुबे को भी दोषी बनाया गया है। गैंगस्टर विकास दुबे और उसके गैंग की तरह 17 धाराओं में खुशी को भी चौबेपुर थाने की पुलिस ने गिरफ्तार करके जेल भेजा और मुकदमें को चार्जशीट किया है।
कारतूस देने के आरोप में बराबर का बनाया था आरोपी
वर्ष 2020 में दो जुलाई की रात चौबेपुर के बिकरू गांव में दबिश देने गई पुलिस पर कुख्यात गैंगस्टर विकास दुबे ने अपने गैंग के साथ हमला कर दिया था। इस घटना में में डिप्टी एसपी देवेंद्र मिश्रा समेत 8 पुलिस कर्मी शहीद हो गए थे। मामले में विकास दुबे का भतीजा अमर दुबे भी आरोपी था। अमर की 29 जून को पनकी निवासी खुशी दुबे से शादी हुई थी।
बिकरू कांड में गैंगस्टर विकास और उसके भतीजे अमर को पुलिस ने एनकाउंटर में मार गिराया था। लेकिन पुलिस ने अमर की पत्नी खुशी दुबे को भी आरोपी बनाया था। पुलिस का आरोप था कि जब अमर दुबे अपनी छत पर पुलिस पर ताबड़तोड़ गोलियां चला रहा था तब खुशी उसे कारतूस उठाकर दे रही थी। इस पर पुलिस ने उसको बराबर का आरोपी बनाया है।
नाबालिग होने के साक्ष्य रखे थे
वकील शिवाकांत दीक्षित ने पुलिस की कार्रवाई पर खुशी को नाबालिग बताया था। कोर्ट के सामने नाबालिग होने संबंधित साक्ष्य रखे थे। इसके बाद कोर्ट के आदेश पर खुशी का मेडिकल हुआ और अक्टूबर 2020 में नाबालिग कोर्ट ने 16 साल 10 महीने की खुशी को नाबालिग मान लिया था। इसके बाद से उसे सीतापुर बालिका गृह भेजा गया था। जहां बालिग होने पर उन्हें कानपुर देहात की माती जेल में शिफ्ट किया गया था।
