विलुप्त होते संस्कार

विलुप्त होते संस्कार

हमारे शास्त्रों में विवाह को संस्कार का दर्जा दिया गया है, जिसमें शास्त्रोक्त विधि,लोकरीति व कुल परिवार की रीति, तीनों का समावेश रहता था। पारंपरिक रूप से शादी ब्याह मे पंडित व नाई की व इससे संबंधित मांगलिक कार्यों में समाज के अन्य वर्गों मनिहारिन, मालिन आदि की भी सहभागिता रहती थी। परिवार की बड़ी बूढ़ी महिलाएं पारिवारिक परंपराओं का अनुपालन सुनिश्चित कराती थीं।

नए परिवेश में पुरोहित की आंशिक भूमिका के अतिरिक्त समाज के अन्य वर्गों की भूमिका गांव देहात में भी लगभग समाप्ति की ओर ही है। पंडित जी की भी भूमिका द्वारपूजा व अग्नि के समक्ष वर-वधू के सात फेरे कराने तक सीमित हो रही है। देर रात तक जयमाल के फोटो-सेशन व हाई टेबल डिनर के पश्चात थके-थकाए वर-वधू सहित दोनों के परिवारों द्वारा विवाह की औपचारिकता शीघ्र पूरी कराने का पुरोहित पर दबाव आम बात हो गई है। हंसी मजाक में ही सही, पुरोहित को इस कार्य के लिए अतिरिक्त दक्षिणा की पेशकश की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। अपवादों को छोड़ दें, तो अब पुरोहित भी यजमान को इस मामले मे निराश नहीं करते।

विवाह संस्कार समारोह में परिवर्तित हो चुका है। बड़े-बड़े- बड़े शहरों मे पुरोहित नाई आदि की भूमिका का अधिग्रहण इवेंट मैनेजमेंट कंपनी ने कर लिया है। प्री वेडिंग सेशन व जयमाल शूटिंग  सर्वोच्च प्राथमिकता वाले कार्यक्रम हैं,जो कभी कभार फूहड़ता की हद को पार कर जाते हैं। वर-वधू उनके इशारे पर चलने को विवश हैं। विवाह व बारात आदि की तैयारी में ब्यूटी पार्लर व चुनिंदा फिल्मी गीतों पर नृत्य प्रशिक्षण प्राथमिकता में आ गए हैं। पाणिग्रहण के पूर्व कन्या व वर की लक्ष्मी - नारायण के रूप में स्वीकार्यता व तदनुसार पूजन बीते दिनों की बात हो चुकी है। दान पुण्य को तिलांजलि देकर शाहखर्ची एवं आडंबर पर जोर है।

कभी-कभी होटल व बारातघर में एक साथ तीन चार बारातों की बुकिंग हो जाती है। डेढ़ दो सौ वर्गमीटर क्षेत्र में ही दो-दो वेडिंग लॉन व हॉल बने हुए हैं। इतने सीमित क्षेत्र में चार-चार बारातों के निकलने पर चौक वाले ट्रैफिक जाम का नजारा देखने को मिलता है। पिछले दिनों एक बारात में शामिल होने का मौका मिला। जिस होटल में शादी थी, उसमें लॉन व हॉल मिलाकर  एक साथ तीन विवाह कार्यक्रम आयोजित हो सकते थे।

कन्या पक्ष वालों ने तीनों कार्यक्रम स्थल के साथ पूरा होटल बुक करा रखा था ताकि किसी प्रकार का बाहरी व्यवधान न हो। दिन भर के विविध कार्यक्रम और धमा-चौकड़ी के बाद रात लगभग बारह बजे बारात द्वार पूजा के लिए आई तो दोनों पक्ष के मिलाकर थके मांदे लगभग सौ सवा सौ लोग उपस्थित थे।

बड़ी भव्य व व्यापक सजावट व अन्य व्यवस्थाएं थीं, पर जंगल में मोर नाचा, किसने देखा- जैसा अहसास हो रहा था। होटल मालिक ने पूछने पर बताया कि होटल बुकिंग, साज-सज्जा व खान पान का बजट लगभग एक करोड़ का होगा। सप्ताह में औसतन एकाध बुकिंग इसी स्तर की होती रहती है। बिहार में नशाबंदी होने के कारण वहां के सीमावर्ती कई अभिजात्य लोग वाराणसी में ही शादी-ब्याह के कार्यक्रम पसंद करते हैं।

शादी-ब्याह में मेहमान लोग खाने की बर्बादी भी खूब करते हैं। पिछले दिनों एक वीडियो देखा। एक शादी समारोह में खाने के बाद प्लेट जमा करने वाले टब के पास एक सम्भ्रांत से अधेड़ सज्जन खड़े थे। कई मेहमान प्लेट में तिहाई-चौथाई खाना लिए उसे टब में रखने आए। वे मुस्कुराकर  हाथ जोड़कर प्लेट का खाना समाप्त करने का अनुरोध कर रहे थे। देखकर अच्छा लगा।

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