सरकारी राशि के नुकसान के लिए देयता तय होने तक वसूली अवैध :इलाहाबाद हाईकोर्ट

सरकारी राशि के नुकसान के लिए देयता तय होने तक वसूली अवैध :इलाहाबाद हाईकोर्ट

प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने अपने एक महत्वपूर्ण फैसले में कहा कि कर्मचारी के खिलाफ वसूली तब तक नहीं की जा सकती, जब तक कि उस पर सरकारी राशि के नुकसान के प्रभाव के लिए देयता तय नहीं होती है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति राजीव जोशी की एकल पीठ ने चीफ पोस्ट मास्टर, कानपुर द्वारा पारित आदेश दिनांक 06.05.2011 को निरस्त करते हुए दिया है। वर्तमान याचिका चीफ पोस्ट मास्टर, कानपुर द्वारा पारित आदेश दिनांक 6/5/2011 के खिलाफ दायर की गई है, जिसके तहत रु. 7,57,500 भू-राजस्व के बकाए के रूप में याची से वसूल किये जाने का निर्देश दिया गया है। 

अभिलेख से पता चलता है कि याची ने प्रधान डाकघर, बांदा में डाक सहायक के पद पर दिनांक 24/9/1983 को कार्यभार ग्रहण किया। बाद में उसी पद पर उनका तबादला कानपुर कर दिया गया। दिनांक 17.03.2003 को जब वे कोषाध्यक्ष के कार्यालय में डाक सहायक के रूप में अपने कर्तव्यों का पालन कर रहे थे, उस समय वहां कार्यरत एक अन्य कर्मचारी शैलेन्द्र कुमार दीक्षित की गैरजिम्मेदारी के कारण विभाग में  आठ लाख रुपए की हानि हुई।  याची के खिलाफ विभागीय कार्यवाही शुरू की गई।

वर्ष 2003 में चीफ पोस्ट मास्टर के आदेशानुसार तत्काल प्रभाव से याची के खिलाफ 88,032/- रुपये की वसूली की गई। उक्त आदेश से व्यथित होकर याची ने निदेशक, डाक सेवाएं, कानपुर के समक्ष एक अपील दायर की, जिस पर याची द्वारा कई बार याद दिलाने के बावजूद अपीलीय प्राधिकारी द्वारा निर्णय नहीं लिया गया। अंत में याची ने वर्ष 2004 में केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष वसूली के आदेश को रद्द करने के लिए आवेदन दिया था। जिसके सापेक्ष न्यायाधिकरण ने अपील के निस्तारण तक उक्त आदेश के क्रियान्वयन पर रोक लगा दी। अनुशासनात्मक अधिकारी ने संबंधित तथ्यों पर बिना विचार किए ढाई लाख रुपये की वसूली का आदेश दे दिया। इससे आहत होकर याची सुशील कुमार बाजपेयी ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण में उक्त आदेश को रद्द करने के लिए याचिका दायर की। तत्पश्चात अपीलीय प्राधिकारी ने उपरोक्त आदेश द्वारा ढाई लाख रुपये की वसूली की सजा को संशोधित किया और इसे डेढ़ लाख रुपये कर दिया। 

याची ने केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के समक्ष वर्ष 2009 में अपीलीय प्राधिकारी द्वारा पारित उक्त आदेश को फिर से चुनौती दी, जिसे अंतिम रूप से निस्तारित करते हुए अपीलीय प्राधिकारी द्वारा कानून के अनुसार पूरे मामले पर पुनर्विचार करने और तीन महीने की अवधि के भीतर एक तर्कपूर्ण और स्पष्ट आदेश पारित करने के लिए मामले को वापस भेज दिया और आगे अपील की लंबित अवधि के दौरान याची के खिलाफ वसूली पर रोक लगा दी गई। 

याची के अधिवक्ता का कहना है कि याची के खिलाफ अनुशासनात्मक कार्यवाही और विभागीय जांच की गई थी, जिसमें याची के खिलाफ आरोपों की पुष्टि नहीं की गई है| अधिवक्ता ने आगे कहा कि पब्लिक अकाउंटेंट डिफॉल्ट एक्ट, 1850 के तहत की गई वसूली पूरी तरह से अवैध है और याची से भू-राजस्व के बकाया के रूप में उक्त राशि की वसूली नहीं की जा सकती है। इसके साथ ही आक्षेपित आदेश पारित करने से पूर्व याची को सुनवाई का कोई अवसर प्रदान नहीं किया गया है।

ये भी पढ़ें - केजीएमयू : मरीज भर्ती की दलाली में ट्रामा सेंटर के स्वास्थ्यकर्मी और निजी अस्पताल संचालक के बीच हुई हाथापाई, वीडियो वायरल