कड़ी चेतावनी
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देश के धर्मनिरपेक्ष ताने-बाने को बनाए रखने के लिए नफरती भाषण देने वालों के खिलाफ कार्रवाई की जानी चाहिए, भले ही वे किसी भी धर्म के हों। जब तक विभिन्न धर्मों के लोग सद्भाव के साथ रहने में सक्षम नहीं होंगे, तब तक बंधुत्व नहीं हो सकता है। मंगलवार को उच्चतम न्यायालय ने कहा कि देश में सांप्रदायिक सद्भाव बनाए रखने के लिए नफरती भाषण का त्याग करना मूलभूत आवश्यकता है। न्यायमूर्ति केएम जोसेफ और न्यायमूर्ति बीवी नागरत्ना की पीठ ने नफरती भाषण के खिलाफ एक याचिका पर सुनवाई करते हुए यह टिप्पणी की।
सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने पीठ को बताया कि देश में नफरती भाषणों के संबंध में 18 प्राथमिकी दर्ज की गई हैं। पीठ ने कहा कि केवल शिकायत दर्ज करने से इस समस्या का समाधान नहीं होने वाला है। पिछले वर्ष अक्टूबर में उच्चतम न्यायालय ने संविधान में भारत के धर्मनिरपेक्ष राष्ट्र की परिकल्पना का हवाला देते हुए दिल्ली, उत्तर प्रदेश और उत्तराखंड सरकारों को निर्देश दिया था कि वे नफरत भरे भाषणों के दोषियों के खिलाफ शिकायत दर्ज होने का इंतजार किए बिना सख्त कार्रवाई करें।
शीर्ष अदालत ने 20 फरवरी को भी घृणास्पद भाषण के एक मामले में प्राथमिकी दर्ज करने में देरी और जांच में ठोस प्रगति नहीं होने पर दिल्ली पुलिस के प्रति नाराजगी जताई थी। याचिका में दावा किया गया था कि घटना के ठीक बाद भाषण सार्वजनिक रूप से उपलब्ध थे लेकिन उत्तराखंड पुलिस और दिल्ली पुलिस ने अपराधियों के खिलाफ कार्रवाई नहीं की। याचिका में आरोप लगाया गया है कि 17 दिसंबर से 19 दिसंबर 2021 तक हरिद्वार में और 19 दिसंबर 2021 को दिल्ली में आयोजित ‘धर्म संसद’ में नफरती भाषण दिए गए थे।
वास्तव में सांप्रदायिक सद्भाव के लिए घृणास्पद भाषण एक बड़ा ख़तरा बन गया है। इसे रोकना होगा। भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता बहुत ही महत्वपूर्ण है और सरकार को वास्तव में इसमें हस्तक्षेप किए बिना कुछ कार्रवाई करनी होगी। अच्छी बात है कि अदालत ने अपनी टिप्पणी के माध्यम से नफरती भाषण देने वालों के लिए एक कड़ा और बड़ा संदेश दिया है।