SC ने तमिलनाडु राज भवन से कहा- मुख्यमंत्री के साथ गतिरोध समाप्त करने को 

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Published By Om Parkash chaubey
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नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय ने शुक्रवार को व्यवस्था दी कि राज्य विधानसभा द्वारा पारित और पुन: अपनाए गए विधेयकों को राज्यपाल द्वारा राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए नहीं भेजा जा सकता। न्यायालय ने तमिलनाडु के राज्यपाल आर एन रवि से कहा कि मुख्यमंत्री एम के स्टालिन के साथ बैठक करें और राज्य विधानसभा द्वारा पारित 10 लंबित विधेयकों पर बने गतिरोध को सुलझाएं। रवि और स्टालिन के बीच ऐसे अनेक मुद्दों पर गतिरोध बना हुआ है।

प्रधान न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ और न्यायमूर्ति जे बी पारदीवाला तथा न्यायमूर्ति मनोज मिश्रा की पीठ ने राज्य सरकार की ओर से वरिष्ठ अधिवक्ता अभिषेक सिंघवी की दलीलों पर संज्ञान लिया कि राज्यपाल ने अब पुन: अपनाए गए विधेयकों को राष्ट्रपति के पास विचार के लिए भेज दिया है। पीठ ने कहा, ‘‘हम चाहेंगे कि राज्यपाल गतिरोध को सुलझा लें।

यदि राज्यपाल मुख्यमंत्री के साथ गतिरोध को सुलझा लेते हैं तो हम इसे सराहेंगे। मुझे लगता है कि राज्यपाल को मुख्यमंत्री को आमंत्रित करना चाहिए और वे बैठ कर इस बारे में चर्चा करें।’’ राज्यपाल के कार्यालय पर ‘संवैधानिक हठ’ का आरोप लगाते हुए सिंघवी ने कहा कि राज भवन ने विधेयकों को लंबे समय तक लंबित रखने के बाद 28 नवंबर को राष्ट्रपति को भेजा जो संवैधानिक नियमों का उल्लंघन है।

राज्यपाल के कार्यालय की ओर से पक्ष रख रहे अटॉर्नी जनरल आर वेंकटरमणी ने दलील दी कि जब राज्यपाल किसी विधेयक को विधानसभा को वापस भेजते हैं तो वह मंजूरी को रोक नहीं रहे हैं बल्कि केवल सदन से उस पर पुनर्विचार करने को कह रहे हैं। शीर्ष विधि अधिकारी ने कहा कि जब विधानसभा कहती है कि वह विधेयक पर अपना रुख नहीं बदलेगी तो राज्यपाल इसे मंजूरी के लिए राष्ट्रपति को भेज सकते हैं।

प्रधान न्यायाधीश ने संविधान के अनुच्छेद 200 का जिक्र करते हुए कहा, ‘‘राज्यपाल को पहली बार में इसे राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए सुरक्षित रखना चाहिए। अगर उन्होंने इसे विधानसभा को वापस भेज दिया है और इसे पुन: अपनाया गया है तो राज्यपाल इसे राष्ट्रपति को नहीं भेज सकते।’’

उन्होंने कहा, ‘‘संविधान के अनुच्छेद 200 के अनुसार, राज्यपाल के पास तीन विकल्प हैं - वह अनुमति दे सकते हैं या अनुमति रोक सकते हैं या वह विधेयक को राष्ट्रपति के लिए सुरक्षित रख सकते हैं। ये सभी विकल्प हैं। इस मामले में, राज्यपाल ने शुरू में कहा कि मैं अनुमति रोकता हूं। एक बार जब वह सहमति रोक लेते हैं, तो इसे राष्ट्रपति के लिए आरक्षित करने का कोई सवाल ही नहीं उठता। वह नहीं कर सकते।

उन्हें तीन विकल्पों में से एक का पालन करना होगा - सहमति, सहमति रोकना या इसे राष्ट्रपति के पास भेजना।’’ शीर्ष अदालत तमिलनाडु सरकार की याचिका पर सुनवाई कर रही थी जिसमें राज्यपाल रवि द्वारा विधेयकों को मंजूरी देने में देरी का आरोप लगाया गया था।

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