जैव ईंधन पर जोर

जैव ईंधन पर जोर

पश्चिम एशिया में भूराजनीतिक तनाव के चलते जीवाश्म ईंधन की आपूर्ति श्रृंखला संकट का सामना कर रही है। ऊर्जा और जलवायु परिवर्तन राजनीतिक रूप से ध्रुवीकरण करने वाले मुद्दे बने हुए हैं। जबकि अंतर्राष्ट्रीय ऊर्जा एजेंसी (आईईए) ने कहा है कि शहरीकरण और औद्योगीकरण के कारण वर्ष 2030 तक भारत की ऊर्जा मांग प्रति वर्ष तीन प्रतिशत से अधिक तक बढ़ सकती है।

तेजी से उभर रही अर्थव्यवस्था में परिवहन ईंधन के लिए भारत में मांग का बढ़ना जारी रहेगा। जबकि अन्य देशों में यह स्थिर है या इसमें गिरावट आ रही है। भारत अपनी तेल आवश्यकताओं के 80 प्रतिशत भाग का आयात करता है और दुनिया में तीसरा सबसे बड़ा तेल उपभोक्ता है। इसके साथ ही, भारत की ऊर्जा खपत के अगले 25 वर्षों तक प्रत्येक वर्ष 4.5 प्रतिशत की दर से बढ़ने का अनुमान किया जाता है।

यानि 2030 तक भारत दुनिया का सबसे बड़ा तेल आयातक बन सकता है। 2030 तक भारत में प्रतिदिन तेल की खपत 66 लाख बैरल हो जाएगी। कहा जा सकता है कि सरकार ने जीवाश्म ईंधन के विकल्पों पर जोर देकर सही किया है।

गौरतलब है कि जी-20 शिखर सम्मेलन के मौके पर भारत के नेतृत्व वाले समूह, ग्लोबल बायोफ्यूल एलायंस ने पेट्रोलियम जैसे जीवाश्म ईंधन के विकल्प के रूप में जैव ईंधन के उत्पादन और उपयोग को बढ़ावा देने का निर्णय लिया था। जैव ईंधन बायोमास से बने ईंधन हैं, जैसे कि पौधे या अपशिष्ट पदार्थ जिन्हें ऊर्जा में परिवर्तित किया जा सकता है।

जैव ईंधन के समर्थकों का तर्क है कि वे जीवाश्म ईंधन के विपरीत ऊर्जा का एक स्थायी और नवीकरणीय स्रोत हैं जो सीमित हैं और अंततः समाप्त हो जाएंगे। इसके अतिरिक्त, यह भी कहा जाता है कि जैव ईंधन जीवाश्म ईंधन की तुलना में कम ग्रीन हाउस गैसों का उत्सर्जन करता है, जिससे यह अधिक पर्यावरण-अनुकूल विकल्प बन जाता है।

जीवाश्म ईंधन दुनिया भर में 70 प्रतिशत कार्बन डाई आक्साइड उत्सर्जन के लिए जिम्मेदार है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि वायु प्रदूषण प्रतिवर्ष होने वाली 80 लाख मौतों के लिए जिम्मेदार है।

इस परिदृश्य में ऊर्जा सुरक्षा के निरंतर जोखिमों को कम करने के लिए नवीकरणीय स्रोतों की ओर संक्रमण में तेजी लाना और जीवाश्म ईंधन की प्रमुखता को तेजी से समाप्त करना भारत की ऊर्जा सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए आवश्यक है। हालांकि सरकार का लक्ष्य तेल की खोज में निजी क्षेत्र का निवेश बढ़ाने का है। ऐसे में भारत घरेलू उत्पादन और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखला मजबूत करने पर ध्यान दे।