नई हरित क्रांति की जरूरत

नई हरित क्रांति की जरूरत

बढ़ती आबादी के साथ खाद्यान्न की तेज होती मांग और कृषि उत्पादन बढ़ाने का दबाव सरकार पर है। आजादी के समय खाद्य सुरक्षा की समस्या देश को विरासत में मिली थी। पहली हरित क्रांति ने जहां एक तरफ देश को खाद्य सुरक्षा की समस्या से काफी हद तक निजात दिलाई और देश को एक खाद्यान्न आयातक देश से खाद्यान्न निर्यातक देश में बदल दिया।

परन्तु जैसे-जैसे हरित क्रांति आगे बढ़ती गई, ठीक उसी प्रकार उत्पादकता में ठहराव आता गया। ऐसे में भारत को दालों और खाद्य तेल जैसी कम पानी की खपत वाली फसलों की खेती को बढ़ावा देने के लिए द्वितीय हरित क्रांति की शुरुआत करने की जरूरत महसूस की गई।

देश में हरित क्रांति की शुरुआत 1966-67 में हुई थी।  खाद्यान्न उत्पादकता बढ़ाने के उद्देश्य से सरकार ने दो वर्ष पहले पूर्वी भारत में ब्रिगिंग ग्रीन रिवोल्यूशन इन ईस्टर्न इंडिया (बीजीआरईआई) कार्यक्रम शुरू किया था। यह कार्यक्रम सात राज्यों-असम, पश्चिम बंगाल, ओडिशा, बिहार, झारखंड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और छत्तीसगढ़ में चलाया जा रहा है।  

वर्ष 2000 के आसपास द्वितीय हरित क्रांति की चर्चा शुरू हो गई। 1998 में अटल बिहारी बाजपेयी ने सबसे पहले द्वितीय हरित क्रांति का उल्लेख किया। वर्ष 2000 में घोषित राष्ट्रीय कृषि नीति में भी द्वितीय हरित क्रांति शुरू करने पर बल दिया गया था।

2002 में एपीजे अब्दुल कलाम के राष्ट्रपति बनने पर इसे एक नया आयाम मिला। परन्तु मई 2004 में सत्ता परिवर्तन होने पर द्वितीय हरित क्रांति ठंडे बस्ते में चली। परन्तु यूपीए सरकार के दूसरे कार्यकाल में पुनः एक बार द्वितीय हरित क्रांति पर फोकस किया गया और इसकी शुरुआत पूर्वी भारत से हुई जिसे आशा और संभावनाओं दोनों ही दृष्टियों से देखा जा रहा है।            

आर्थिक शोध संस्थान ग्लोबल ट्रेड रिसर्च इनिशिएटिव (जीटीआरआई) ने गुरुवार को कृषि क्षेत्र के लिए मुफ्त बिजली को हतोत्साहित करने की बात कही। जीटीआरआई की रिपोर्ट में कहा गया है,  दलहन, तिलहन और सब्जियों जैसी कम पानी वाली फसलों को बढ़ावा देने की जरूरत है, जो पानी की मांग को काफी कम कर सकती हैं और सरकार इन फसलों पर एमएसपी की गारंटी दे सकती है।

ये सिफारिशें महत्वपूर्ण हैं क्योंकि कुछ राज्यों में किसान अपनी मांगों को लेकर विरोध प्रदर्शन कर रहे हैं, जिसमें फसलों के लिए  एमएसपी की कानूनी गारंटी और कृषि ऋण माफी शामिल है। ध्यान रहे छठे दशक में हरित कांति के दौरान पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश फले-फूले, वहीं दूसरी ओर इन तीनों राज्यों में क्षमता से अधिक दोहन के चलते जल संसाधनों की स्थिति खराब हुई है।

हरित क्रांति द्वितीय का स्वागत किया जाना चाहिए, लेकिन हमें कुछ अहम पहलुओं का ध्यान रखना होगा। सावधानी बरतनी होगी कि नई हरित क्रांति हमारे संसाधनों को नुकसान न पहुंचाए, बल्कि उनमें सुधार लाए।