बरेली: बैंकिंग कर्मचारियों की नजर देश में जारी उथल-पुथल पर, जनिए क्या बोले बैंककर्मी?
बरेली, अमृत विचार। बैंकिंग सेक्टर आमतौर पर चुनावों में ज्यादा दिलचस्पी नहीं लेता लेकिन इस लोकसभा चुनाव में ऐसा नहीं है। पुरानी पेंशन स्कीम समेत बैंकों में काम करने वालों की तमाम अपनी मांगें तो हैं ही, इसके साथ देश में चल रही उथलपुथल पर भी उनकी नजर है। दुष्प्रभावों की चिंता किए बगैर निजीकरण पर जोर दिया जाना उनके लिए सर्वाधिक चिंता का विषय है। महंगाई और बढ़ते टैक्स को वे इसी का साइड इफेक्ट करार दे रहे हैं। कहते हैं, आम आदमी की जेब से सौ रुपये निकल जाते हैं, राहत के नाम पर उन्हें सिर्फ एक रुपया मिलता है। यह गरीबों को और गरीब बना रहा है।
जनिए क्या बोले बैंककर्मी
1- इस लोकसभा चुनाव में पुरानी पेंशन हम सभी कर्मचारियों का मुद्दा है। सप्ताह में पांच दिवसीय बैंकिंग भी पुरानी मांग है। अब हम यह भी मांग कर रहे हैं कि बैंकों के डिफाल्टरों के नाम भी उसी तरह से उजागर किए जाएं, जैसे इलेक्टोरल बॉन्ड खरीदने वालों के किए गए हैं। उद्योगपतियों के जो लोन माफ किए जाते हैं, वह पैसा गरीब जनता का होता है। इसी वजह से महंगाई की मार पड़ती है और गरीब और गरीब हो जाता है। हम चाहते हैं कि उद्योगपतियों का सरकार पर दबाव खत्म हो- चरण सिंह यादव, पंजाब नेशनल बैंक।
2- निजीकरण को प्राथमिकता दिए जाने का खामियाजा जनता को भुगतना पड़ रहा है। महंगाई बढ़ने का भी यह एक प्रमुख कारण जो आम लोगों की जेब पर लगातार बढ़ते बोझ की तरह है। कॉरपोरेट सेक्टर के लोन माफ कर दिए जाने की नीति आम जनता के सीधे तौर पर खिलाफ है। आखिर में इसकी भरपाई जनता पर ही तमाम अतिरिक्त चार्ज लगाकर की जाती है। मैं समझता हूं कि बैंक कर्मचारियों की अपनी मांगें तो हैं ही, हर कर्मचारी इस लोकसभा चुनाव में इन मुद्दों का भी ख्याल रखेगा - नवींद्र कुमार, भारतीय स्टेट बैंक।
3- बैंकिंग सेक्टर में काम करने वाले लोग अच्छी तरह समझते हैं कि बड़े उद्योगपति एक बार फिर देश को गुलामी की जंजीर में जकड़ने की ओर बढ़ रहे हैं। रोजगार, महंगाई और गरीबी का जमीनी स्तर भी अंग्रेजों के जमाने जैसा होता जा रहा है। इसका असर बैंकिंग सेक्टर पर भी पड़ रहा है, इसलिए बैंक कर्मचारियों के इस चुनाव में यही मुद्दे हैं। जनता को भी समझ में आना चाहिए कि कौन से मुद्दे उसके हित में हैं और कौन से मुद्दे सिर्फ उसे गुमराह करने के लिए लाए जाते हैं- शुभम सक्सेना, भारतीय स्टेट बैंक।
4- निजीकरण की नीति बैंक कर्मचारियों के खिलाफ है। बैंकिग सेक्टर में वेतन समझौते के तहत सभी बैंक कमियों को जो एरियर मिला था, वह सब टैक्स में चला गया। सरकार को 10 लाख तक की आय टैक्समुक्त करनी चाहिए। कॉरपोरेट का टैक्स 30 प्रतिशत से घटाकर 22 प्रतिशत किया गया है जिसकी पूर्ति सरकारी कर्मियों से टैक्स वसूलकर की जा रही है। एनपीए रिकवरी पर भी सरकार कारपोरेट को लगातार छूट दे रही है, इसकी सीधी चोट बैंकों पर पड़ रही है- पीके माहेश्वरी, यूनियन बैंक ऑफ इंडिया।
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