नवरात्रि विशेष: माता के नौ स्वरूपों की आराधना से बनेंगे भक्तों के बिगड़े काम, जानें घटस्थापना का मुहूर्त

मंगलवार 9 अप्रैल से होगा चैत्र नवरात्रि का शुभारंभ

नवरात्रि विशेष: माता के नौ स्वरूपों की आराधना से बनेंगे भक्तों के बिगड़े काम, जानें घटस्थापना का मुहूर्त

दीपक मिश्र, मोहनपुरा। नवरात्रि का नाम सुनते ही मन में पावन उमंग का संचार उमड़ पड़ता है। यह हिंदू धर्म का एक अति पावन पर्व माना जाता है। इस दौरान चारों तरफ भक्तिमय माहौल छाया रहता है। माता दुर्गा के मंदिर साज सज्जा से होने से आकर्षण का केंद्र बन जाते हैं। शंख की ध्वनि, घंटो की टंकार से साधकों में आस्था की ज्योति जलने लगती है। भागवत पुराण के अनुसार प्रतिवर्ष ऋतु चक्रों पर आधारित चार नवरात्रों का आगमन होता है, जिसमें से दो गुप्त नवरात्रि होते हैं। बाकी चैत्र एवं शारदीय नवरात्रों में सनातन धर्मी मां दुर्गा के अलग अलग नौ स्वरूपों की पूजा अर्चना कर माता की कृपा प्राप्त करते हैं।

चैत्र नवरात्रि का धार्मिक एवं आध्यात्मिक महत्व
प्रधानाचार्य से सेवानिवृत शिक्षाविद् एवं साधक सत्य प्रकाश मिश्र ने बताया कि शारदीय एवं चैत्र नवरात्रों में से चैत्र नवरात्रि का धार्मिक रूप से विशेष महत्व है। चैत्र नवरात्रि के प्रथम दिन ही आदिशक्ति मां जगदम्बा प्रकट हुई थी। उनके प्रादुर्भाव के उपरांत देवी के कहने पर ही ब्रह्मा जी ने सृष्टि निर्माण का शुभ कार्य प्रारंभ किया था। इसलिए चैत्र शुक्ल प्रतिपदा से हिंदू नव वर्ष प्रारंभ होता है। इसके अतिरिक्त तृतीया को भगवान विष्णु ने मत्स्य रूप में अपना प्रथम अवतार, एवं नवमी को भगवान राम के रूप में सातवां अवतार लिया था। इसलिए धार्मिक दृष्टि से चैत्र नवरात्रि का अधिक महत्व है। इसी दौरान सूर्य का राशि परिवर्तन भी होता है। सूर्य सभी बारह राशियों का चक्र पूर्ण करने में बाद पुनः में राशि में प्रवेश करते हैं। इसलिए ज्योतिषीय दृष्टि से भी चैत्र नवरात्रि का महत्व है।

ये हैं माता के नौ स्वरूप

श्री दुर्गा सप्तशती में माता के सभी नौ रूपों का वर्णन करते हुए लिखा गया है।

प्रथम शैलपुत्री च द्वितीयं ब्रह्मचारिणी।

तृतीयं चन्द्रघण्टेति कूष्माण्डेति चतुर्थकम् ।।

पंचमं स्कन्दमातेति षष्ठं कात्यायनीति च।

सप्तमं कालरात्रीति महागौरीति चाष्टमम् ।।

नवमं सिद्धिदात्री च नवदुर्गा: प्रकीर्तिता:।

उक्तान्येतानि नामानि ब्रह्मणैव महात्मना ।।

शैलपुत्री, ब्रह्मचारिणी, चंद्रघंटा, कूष्मांडा, स्कंदमाता, कात्यायनी, कालरात्रि, महागौरी एवं सिद्धिदात्री ये माता के क्रमशः नौ दिनों के अलग अलग स्वरूप हैं।

घटस्थापना का शुभ मुहूर्त
आचार्य पंडित दिवाकर पचौरी पुरोहित ने बताया कि चैत्र शुक्ल प्रतिपदा की तिथि 8 अप्रैल को रात्रि 11.51 बजे प्रारंभ होकर अगले दिन 9 अप्रैल को रात्रि 8.30 बजे समाप्त होगी। हिंदू पंचांग में उदयातिथि प्रभावी होती है अतः नवरात्रि की पूजा अर्चना एवं घटस्थापना मंगलवार 9 अप्रैल को होगी। प्रातः 07.30 बजे तक पंचक काल है जिसमें पूजन शुभ नहीं होता है। पंचक समाप्ति के उपरांत शुभ मुहूर्त चंचल बेला में प्रातः 09.12 बजे से 10.47 बजे तक तदोपरांत लाभ बेला में 10.47 बजे से 12.22 बजे तक है।

कार्यों के शुभारंभ के लिए सर्वोत्तम समय
सनातन संस्कृति में नवरात्रि को अत्यंत पावन माना जाता है। ऐसी मान्यता है कि नवीन कार्यों के आरंभ के लिए नवरात्रों में किसी विशेष मुहूर्त की आवश्कता नहीं है। विवाह संबंधी क्रियाकलाप, नवीन प्रतिष्ठान, भूमि पूजन, भवन निर्माण, नवीन वाहन की खरीद, धार्मिक आयोजन एवं अनुष्ठान आदि के लिए नवरात्रों के समय को सर्वोत्तम माना जाता है।

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