बाराबंकी: 60-70 के दशक में चुनाव की जान हुआ करते थे नारे, पहले नहीं थी कोई आचार संहिता, शिष्टाचार का होता था पालन

बाराबंकी: 60-70 के दशक में चुनाव की जान हुआ करते थे नारे, पहले नहीं थी कोई आचार संहिता, शिष्टाचार का होता था पालन

रीतेश श्रीवास्तव/बाराबंकी, अमृत विचार। नारे हमेशा चुनाव की जान हुआ करते हैं लेकिन साठ-सत्तर के दशक में लोक संस्कृति से निकलने वाले नारों का रस ही अलग था। रोवय लगीं राजा क रानी, बलम मूसदानी में फंस गए न...। अतीत को याद करते हुए दरियाबाद निवासी मैंकू प्रसाद कहते हैं कि रोचक नारे जनता के मन-मस्तिक पर प्रभाव डालते थे। अब डाटा पेश करने का तकनीकि युग है, नारों में में पुरानी जैसी बात नहीं।

वहीं मुरारपुर गांव निवासी 95 वर्षीय देवी चंद्र वर्मा, फतेहपुर कस्बा निवासी शिक्षक शंभू शरण, देवा के रज्जू व राजाराम आदि ने बताया कि एक बार कांग्रेस कार्यकताओं ने प्रचार के लिए एक गीत बनाया, जिसका मुखड़ा था, ऐ जनसंघ तेरी पतंग का उड़ना बेकार है, कांग्रेस का मंझा सद्​दी भी उधार है। इसके जवाब में जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने एक गीत पढ़ा था- जिन उठावा परेशानी हे बगुला  भगत, आखिर हो जइबा बेपानी हे बगुला भगत। 

वहीं राकेश और मोती लाल ने बताया कि साठ के दशक में जब जनसंघ का चुनाव चिन्ह दीपक था। उस समय कांग्रेस कार्यकर्ताओं ने एक नारा दिया था कि इस दीपक में तेल नहीं, सरकार बदलना खेल नहीं। इसके जवाब में जनसंघ के कार्यकर्ताओं ने दो बैलों की जोड़ी है...पर नारा बनाया था। 

बदलूराम का कहना है कि नारे और गीत ऐसे होते थे कि भावनाओं को ठेस न पहुंचे। कोई आचार संहिता नहीं थी लेकिन कार्यकर्ता शिष्टाचार का पालन करते थे। प्रचार के दौरान आमने-सामने होने पर एक दूसरे का कुशल-क्षेम पूछा जाता था। कोठी के बुजुर्ग शिवशंकर बताते हैं कि आज चुनाव प्रचार भले ही हाईटेक हो गया हो लेकिन प्रचार के पुराने तरीके आज भी याद आते हैं।

दादी को याद आती है बैलगाड़ी, ढोल-मजीरा

दरियाबाद क्षेत्र के ग्राम जठौती कुर्मियान निवासी 80 वर्षीय सुंदारा देवी बताती हैं कि तब कार्यकर्ताओं की टोलियां ढोल-मजीरा लेकर बैलगाड़ियों से गांव-गांव घूमकर प्रचार करती थीं। कहते हैं कि अब चुनाव प्रचार में पहले जैसी बात नजर नहीं आती है। पहले कार्यकर्ताओं में उमंग और उल्लास दिखाई पड़ता था। उनके तेवर भी आक्रामकक होते थे। तरह-तरह के चुनावी नारे कार्यकर्ताओं में जोश भरा करते थे। पर आज का चुनाव एक दम बदल चुका है। बड़ी-बड़ी गाड़ियों में बैठकर नेता आते हैं मीटिंग करते हैं और चले जाते हैं।

सोशल मीडिया के सहारे होते हैं चुनाव

बदलते समय में अब सभी चुनाव सोशल मीडिया के सहारे होने लगे हैं। टिकट घोषित होने से लेकर जीत का स्वाद चखने तक हर चुनावी गतिविधियां दलों व प्रत्याशियों द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर डाला जाता है। वोट मंगा जाता है। यही वजह है कि भाजपा, सपा, कांग्रेस और बसपा समेत कई अन्य दल अपनी आईटी विंग बनाए हुए हैं। यहां तक की जिले स्तर पर सोशल मीडिया वांलेंटियर युवा टीम का गठन भी  किया हुआ है।

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