नक्सलवाद बड़ी चुनौती
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छत्तीसगढ़ में नक्सली समस्या से निपटना बड़ी चुनौती बना हुआ है। वास्तव में नक्सली समस्या छत्तीसगढ़ जैसे एक राज्य की नहीं पूरे राष्ट्र की समस्या है। मंगलवार को छत्तीसगढ़ के नक्सल प्रभावित कांकेर जिले में मुठभेड़ में 18 नक्सली मारे गए। सुरक्षा बलों ने भारी मात्रा में हथियार बरामद किए हैं। मुठभेड़ में नक्सल कमांडर शंकर राव भी मारा गया है। उस पर 25 लाख का ईनाम था।
पुलिस ने बताया कि छोटेबेठिया क्षेत्र में सीमा सुरक्षा बल और जिला रिजर्व गार्ड के एक संयुक्त दल को नक्सल विरोधी अभियान पर रवाना किया गया था। सुरक्षा बलों और नक्सलियों के बीच मुठभेड़ ऐसे समय हुई है, जब तीन दिन के बाद वहा पहले चरण का मतदान होने वाला है। निश्चित रुप से सुरक्षाबलों के लिए यह बड़ी कामयाबी है। भारत के 12 राज्यों के 220 जिलों में नक्सली फैल चुके है।
यह बात सत्य है कि छत्तीसगढ़ में नक्सल प्रभावित सभी जिले इसी श्रेणी में है। साथ ही नक्सली समस्या पनपने में कहीं न कहीं दोष प्रशासनिक असमानताओं का भी है। यह दोष एवं असमानताएं राजनैतिक प्राशासनिक सामाजिक कुछ भी हो सकता है। देश की आंतरिक सुरक्षा के लिए सबसे बड़ा खतरा बन चुके नक्सलवाद से निपटने की रणनीति को अमल में लाते-लाते देश और प्रदेश की सरकारें सही पर सफल क्रियान्वयन चाहती हैं।
मगर किस तरह से नक्सली समस्या को समाप्त किया जा सकेगा इसका दावा करना मुश्किल है। सवाल उठ हैं कि आखिर छत्तीसगढ़ में नक्सल ऑपरेशन की क्या स्थिति है। सरकार कह रही है कि नक्सली बैकफुट पर हैं। आखिर इसमें कितनी सच्चाई है। इसके अलावा नक्सलियों के खिलाफ बनाई गई रणनीति कारगर है या फिर इसमें बदलाव की जरूरत है।
देश की सभी प्रांतों की सरकार संयुक्त प्रयास से नक्सलियों को जड़ से समाप्त करने में अपनी शक्ति लगाएं। शिक्षा का, प्रसार स्वास्थ्य सुविधाओं का विस्तार, सड़कों का निर्माण जैसी बुनियादी आवश्यकताओं की पूर्ति करना आवश्यक है। इन सब गतिविधियों के संचालन में प्रत्येक प्रांत के सरकार अपनी राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता भुलाकर सार्थक प्रयास करें।
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